जौनपुर की ऐतिहासिक 'बेनीराम इमरती': 169 सालों से बरकरार है शुद्धता और बेमिसाल स्वाद का जादू!

169 सालों से बरकरार है शुद्धता और बेमिसाल स्वाद का जादू!
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विशिष्ट गुणवत्ता के कारण जौनपुर की इस इमरती को 'जीआई टैग' प्राप्त है, जो इसकी क्षेत्रीय मौलिकता को प्रमाणित करता है।

जीआई टैग प्राप्त यह ऐतिहासिक जायका अपनी विशिष्ट गुणवत्ता के कारण आज वैश्विक स्तर पर जौनपुर की पहचान बन चुका है।

जौनपुर : उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक शहर जौनपुर की पहचान केवल उसके शाही स्मारकों से ही नहीं, बल्कि यहा की गलियों में महकती 'बेनीराम की इमरती' से भी है।


सन् 1855 से शुरू हुआ यह जायका आज एक वैश्विक पहचान बन चुका है। अपनी पारंपरिक निर्माण शैली और शुद्ध देसी घी की खुशबू के कारण यह मिठाई देश-दुनिया के पर्यटकों और खास मेहमानों की पहली पसंद बनी हुई है।

आधुनिकता के इस दौर में भी अपनी जड़ों से जुड़ी बेनीराम की इमरती आज भी उसी पुराने अंदाज में तैयार की जा रही है, जो इसे अन्य मिठाइयों से अलग बनाता है।


ब्रिटिश काल से शुरू हुआ एक स्वर्णिम सफर

बेनीराम की इमरती का इतिहास बेहद दिलचस्प है। इसकी शुरुआत बेनीराम मौर्य ने की थी, जो कभी डाक विभाग में कार्यरत थे। इतिहास के पन्नों के अनुसार, एक अंग्रेज अधिकारी उनकी बनाई इमरती के स्वाद से इतना प्रभावित हुआ कि उसने बेनीराम जी को अपना निजी व्यवसाय शुरू करने के लिए प्रोत्साहित किया।


1855 में शाही पुल के पास एक छोटी सी दुकान से शुरू हुआ यह सफर आज जौनपुर की सबसे बड़ी पहचान बन चुका है। वर्तमान में परिवार की पांचवीं पीढ़ी इस विरासत को उसी निष्ठा के साथ आगे बढ़ा रही है।

सिल-बट्टे की पिसाई और लकड़ी की आंच का कमाल

आज जहा हर तरफ मशीनों का बोलबाला है, वहीं बेनीराम की दुकान पर परंपरा को जीवित रखा गया है। इमरती बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाली हरी उड़द की दाल को आज भी सिल-बट्टे पर पीसा जाता है ताकि उसका प्राकृतिक स्वाद बना रहे।


इसके बाद, इसे शुद्ध देसी घी में लकड़ी की धीमी आंच पर तला जाता है। इस धीमी आंच की सिकाई ही इमरती को वह खास बनावट और रंग देती है, जिसे देखकर ही मुंह में पानी आ जाए।

केमिकल और कृत्रिम रंगों से कोसों दूर

बेनीराम की इमरती की सबसे बड़ी विशेषता इसकी शुद्धता है। इसमें किसी भी तरह के 'फूड कलर' या कृत्रिम सुगंध का उपयोग नहीं किया जाता। इसे मीठा करने के लिए साधारण चीनी के बजाय विशेष 'खांडसारी' चीनी का उपयोग होता है।


यही कारण है कि यह इमरती खाने में बहुत हल्की होती है और स्वास्थ्य के लिहाज से भी अन्य मिठाइयों के मुकाबले बेहतर मानी जाती है। इसकी ताजगी का आलम यह है कि यह 10 से 15 दिनों तक बिना खराब हुए अपनी मिठास बरकरार रखती है।

जीआई टैग और वैश्विक मंच पर बढ़ती धमक

अपनी विशिष्ट गुणवत्ता के कारण जौनपुर की इस इमरती को 'जीआई टैग' प्राप्त है, जो इसकी क्षेत्रीय मौलिकता को प्रमाणित करता है।

भारत के पूर्व प्रधानमंत्रियों से लेकर फिल्मी सितारों तक, शायद ही कोई ऐसी बड़ी शख्सियत हो जिसने जौनपुर आकर इस इमरती का लुत्फ न लिया हो।

आज यह मिठाई केवल जौनपुर तक सीमित नहीं है, बल्कि विदेशों में रहने वाले भारतीय भी इसे बड़े चाव से मंगवाते हैं, जिससे यह जौनपुर की संस्कृति का वैश्विक ब्रांड बन गई है।


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