अनुच्छेद 243-O का हवाला: पंचायत चुनाव में 'SIR' लागू करने की मांग खारिज, HC ने चुनाव प्रक्रिया में हस्तक्षेप से किया इनकार

इस याचिका के खारिज होने के साथ ही उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनावों का रास्ता पूरी तरह साफ हो गया है।
लखनऊ : इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने उत्तर प्रदेश में आगामी त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों को लेकर एक बड़ा और महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया है।
अदालत ने पंचायत चुनावों में 'स्टेट्यूटरी इंटरवेंशन रिपोर्ट' (SIR) या इसी तरह के वैधानिक हस्तक्षेप को लागू करने की मांग वाली याचिका को पूरी तरह से खारिज कर दिया है। न्यायमूर्ति की अध्यक्षता वाली पीठ ने स्पष्ट किया कि संवैधानिक प्रावधानों के तहत चुनाव प्रक्रिया शुरू होने के बाद न्यायिक हस्तक्षेप की सीमाएं तय हैं।
इस फैसले के बाद अब यह साफ हो गया है कि प्रदेश में पंचायत चुनाव पूर्व निर्धारित नियमों और प्रक्रियाओं के आधार पर ही संपन्न कराए जाएंगे, जिससे चुनाव की तैयारियों में जुटी राज्य सरकार और चुनाव आयोग को बड़ी राहत मिली है।
याचिका का मुख्य आधार और मांग
यह मामला हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका के जरिए पहुंचा था, जिसमें मांग की गई थी कि पंचायत चुनावों की पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए 'SIR' जैसी व्यवस्था लागू की जाए।
याचिकाकर्ता का तर्क था कि जमीनी स्तर पर चुनाव सुधारों की आवश्यकता है और मौजूदा व्यवस्था में कुछ खामियां हैं जिन्हें इस विशेष रिपोर्ट या हस्तक्षेप के जरिए सुधारा जा सकता है।
याचिका में चुनाव की अधिसूचना से पहले कुछ विशिष्ट नियमों को अनिवार्य बनाने का आग्रह किया गया था ताकि चुनाव प्रक्रिया को और अधिक प्रभावी बनाया जा सके।
हाईकोर्ट का सख्त रुख और कानूनी तर्क
मामले की सुनवाई के दौरान इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कड़ा रुख अपनाते हुए कहा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 243-O के तहत चुनावी मामलों में अदालती हस्तक्षेप पर स्पष्ट रोक लगाई गई है।
अदालत ने टिप्पणी की कि एक बार जब चुनाव की प्रक्रिया या उसकी तैयारी अंतिम चरण में होती है, तो किसी भी प्रकार का नया वैधानिक अनिवार्य नियम लागू करना चुनाव में अनावश्यक देरी का कारण बन सकता है।
पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि चुनाव आयोग एक स्वायत्त संस्था है और उसे अपने तरीके से चुनाव संपन्न कराने का संवैधानिक अधिकार प्राप्त है, जिसमें अदालत बिना किसी ठोस कानूनी उल्लंघन के दखल नहीं दे सकती।
राज्य सरकार और चुनाव आयोग की दलीलें
सरकार की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ताओं ने अदालत में दलील दी कि चुनाव की तैयारियां अपने अंतिम चरण में हैं और इस समय किसी भी नए नियम या रिपोर्टिंग सिस्टम को लागू करना प्रशासनिक रूप से संभव नहीं है।
चुनाव आयोग ने भी अपना पक्ष रखते हुए कहा कि पंचायत चुनाव की नियमावली पहले से ही विस्तृत है और इसमें निष्पक्ष चुनाव कराने के पर्याप्त प्रावधान मौजूद हैं।
सरकार का तर्क था कि याचिका का उद्देश्य केवल चुनावी प्रक्रिया को बाधित करना है, क्योंकि 'SIR' जैसी किसी व्यवस्था का वर्तमान पंचायत राज अधिनियम में कोई उल्लेख नहीं है जो चुनाव के दौरान अनिवार्य हो।
चुनाव की भविष्य की दिशा और प्रभाव
इस याचिका के खारिज होने के साथ ही उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनावों का रास्ता पूरी तरह साफ हो गया है।
अब राज्य निर्वाचन आयोग बिना किसी कानूनी अड़चन के सीटों के आरक्षण, मतदाता सूची के पुनरीक्षण और मतदान की तारीखों की घोषणा की दिशा में तेजी से आगे बढ़ सकेगा।
इस फैसले का दूरगामी प्रभाव यह होगा कि भविष्य में भी चुनाव प्रक्रिया के बीच में इस तरह के प्रशासनिक बदलावों की मांग को हतोत्साहित किया जाएगा।
अब सभी राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों की नजरें आयोग द्वारा जारी होने वाली आधिकारिक अधिसूचना पर टिकी हैं, क्योंकि चुनावी मशीनरी अब पूरी तरह से सक्रिय मोड में आ गई है।
