काम की खबर: उत्तर प्रदेश में प्रदूषण रोकने की अनूठी पहल- 15 दिसंबर तक पराली दो, जैविक खाद लो

इस पहल से जैविक और टिकाऊ खेती को भी बढ़ावा मिलेगा।
लखनऊ : उत्तर प्रदेश सरकार ने पराली जलाने की गंभीर समस्या से निपटने और किसानों को पर्यावरण-अनुकूल विकल्प प्रदान करने के लिए एक विशेष 'पराली के बदले गोबर खाद' अभियान शुरू किया है। यह अभियान गो आश्रय स्थलों के माध्यम से चलाया जा रहा है और इसकी समय सीमा 15 दिसंबर तक निर्धारित की गई है।
इस पहल का मुख्य उद्देश्य किसानों को अपनी फसल के अवशेष को जलाने से रोकना है, जो वायु प्रदूषण का एक बड़ा कारण बनता है। इसके बदले किसानों को उच्च गुणवत्ता वाली गोबर की जैविक खाद मुफ्त में उपलब्ध कराई जाएगी, जिससे खेतों की उर्वरता बढ़ेगी और रासायनिक खादों पर उनकी निर्भरता कम होगी।
पशुधन मंत्री धर्मपाल सिंह ने इस अभियान की सफलता सुनिश्चित करने के लिए अधिकारियों को प्रतिदिन इसकी समीक्षा करने के सख्त निर्देश दिए हैं, ताकि यह योजना हर गांव तक पहुंच सके।
अभियान की कार्ययोजना और किसानों को दोहरा लाभ
पशुधन विभाग की यह योजना किसानों और पर्यावरण दोनों के लिए दोहरा लाभ सुनिश्चित करती है। इस योजना के तहत, किसान अपनी पराली को आस-पास के गो आश्रय स्थलों या निर्धारित संग्रह केंद्रों पर जमा करा सकते हैं।
गोशालाओं में इस पराली का उपयोग मवेशियों के लिए बिछावन और पशु आहार के रूप में किया जाएगा। इस प्रकार, यह योजना निराश्रित गोवंश के लिए चारे और प्रबंधन की समस्या को भी हल करती है।
इस पराली को जमा कराने के बदले में, किसानों को गोशालाओं से प्राप्त होने वाली उच्च गुणवत्ता की गोबर खाद प्रदान की जाएगी। यह जैविक खाद न केवल मिट्टी के स्वास्थ्य को सुधारेगी, बल्कि किसानों की फसल उत्पादन लागत को भी कम करेगी।
पशुधन मंत्री ने अधिकारियों को स्पष्ट निर्देश दिया है कि वे किसानों को पराली जलाने के नुकसान और इस नई पहल के फायदों के बारे में जागरूक करें, ताकि अधिक से अधिक किसान इस अभियान से जुड़ सकें। इसके साथ ही, कई स्थानों पर किसान हेल्पलाइन नंबर 1962 पर कॉल करके पराली उठाने की सुविधा भी प्राप्त कर सकते हैं।
पशुधन मंत्री धर्मपाल सिंह ने इस महत्वपूर्ण अभियान की गंभीरता को समझते हुए अधिकारियों को हर दिन इसकी समीक्षा करने के निर्देश दिए हैं।
पर्यावरण संरक्षण और जैविक खेती को प्रोत्साहन
यह 'पराली के बदले गोबर खाद' योजना उत्तर प्रदेश सरकार की एक व्यापक रणनीति का हिस्सा है जिसका लक्ष्य राज्य में पराली जलाने की घटनाओं को शून्य स्तर पर लाना है।
पराली जलाने से वायुमंडल में हानिकारक धुए और प्रदूषकों का उत्सर्जन होता है, जिससे खासकर सर्दियों के मौसम में लोगों को साँस संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इस पहल से जैविक और टिकाऊ खेती को भी बढ़ावा मिलेगा।
