2027 का रण: भदोही सदर सीट पर सपा के कोर वोट बैंक में नाराजगी, परिवर्तन की मांग तेज़!

समाजवादी पार्टी भदोही के विधायक के प्रति इस तरह की नाराजगी से भदोही दो अन्य विधानसभा सीटों पर प्रभाव पड़ेगा।
भदोही : उत्तर प्रदेश की राजनीति हमेशा से ही देश के सियासी मानचित्र पर एक निर्णायक भूमिका निभाती रही है। यह राज्य न केवल देश को प्रधानमंत्री देता है, बल्कि यहाँ का जातीय और क्षेत्रीय समीकरण ही राष्ट्रीय राजनीति की दिशा तय करता है। हाल के वर्षों में, समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने अपने रणनीति को 'PDA' (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) नाम दिया है। 2024 के लोकसभा चुनाव में इस फार्मूले की सफलता के बाद, सपा का पूरा ध्यान अब 2027 के आगामी विधानसभा चुनाव पर है, जहाँ 'PDA' को सत्ता में वापसी का मुख्य हथियार माना जा रहा है। अखिलेश यादव का यह दांव है कि अगर समाज के इन बहुसंख्यक वर्गों को एकजुट किया जाए।
हालांकि, हर राजनीतिक रणनीति की अपनी चुनौतियाँ होती हैं और ज़मीनी हकीकत अक्सर बड़े नारों से भिन्न होती है। इस 'PDA' समीकरण की पहली और बड़ी परीक्षा अब उन विधानसभा क्षेत्रों में दिखाई दे रही है, जहाँ स्थानीय स्तर पर गठबंधन के प्रमुख घटकों के बीच ही असंतोष पनप रहा है।
ऐसा ही एक महत्वपूर्ण सियासी केंद्र है भदोही जिसे अक्सर 'कालीन नगरी' या 'कारपेट सिटी' के नाम से जाना जाता है, उत्तर प्रदेश के सबसे छोटे जनपदों में से एक है। 30 जून 1994 को यह जिला वाराणसी से अलग होकर अस्तित्व में आया था और बाद में मायावती सरकार में इसका नाम संत रविदास नगर कर दिया गया था, जिसे अखिलेश यादव ने पुनः भदोही कर दिया। यह भौगोलिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान पर स्थित है, क्योंकि इसकी सीमाएँ वाराणसी, जौनपुर, मिर्ज़ापुर और प्रयागराज जैसे बड़े और राजनीतिक रूप से सक्रिय जिलों को स्पर्श करती हैं।
यह क्षेत्र न केवल हस्तनिर्मित कालीनों के उद्योग के लिए विश्व विख्यात है, बल्कि इसका राजनीतिक महत्व इसलिए भी अधिक है क्योंकि यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी और केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल के क्षेत्र मिर्ज़ापुर के बिलकुल पड़ोस में है। अतीत में यह लोकसभा क्षेत्र मिर्ज़ापुर का हिस्सा हुआ करता था, जहाँ से एक बार डकैत फूलन देवी भी समाजवादी पार्टी के टिकट पर सांसद बनी थीं, जो इस क्षेत्र के उतार-चढ़ाव भरे सियासी इतिहास को दर्शाता है।
भदोही लोकसभा क्षेत्र और तीनों विधानसभाओं का वर्तमान राजनीतिक गणित
वर्तमान में, भदोही एक स्वतंत्र लोकसभा क्षेत्र है, जिसमें भदोही जिले की तीनों विधानसभा सीटें हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के विनोद बिंद ने यह सीट जीती, जबकि 2022 के विधानसभा चुनाव में भदोही की 3 विधानसभा सीटों में से सपा ने 1 और 1 एनडीए गठबंधन (भाजपा और निषाद पार्टी) और 1 भजपा ने सीटें जीती थीं।
भदोही सदर (393): वर्तमान में समाजवादी पार्टी के विधायक जाहिद बेग के पास।
ज्ञानपुर (394): निषाद पार्टी (एनडीए गठबंधन) के विधायक विपुल दुबे के पास।
औराई (395): यह सीट सुरक्षित (SC) है और वर्तमान में भाजपा के विधायक दीनानाथ भास्कर के पास है।
भदोही यह परिणाम स्पष्ट करता है कि यहाँ किसी एक पार्टी का वर्चस्व नहीं है और हर सीट पर मुकाबला कड़ा है, जहाँ जातिगत समीकरण और स्थानीय उम्मीदवार का प्रभाव निर्णायक होता है।
भदोही सदर विधानसभा: जाहिद बेग की राह मुश्किल, यादव मतदाताओं का असंतोष
भदोही सदर विधानसभा सीट, जो वर्तमान में समाजवादी पार्टी के खाते में है, अब 2027 के चुनाव से पहले सबसे अधिक चर्चा का विषय बन गई है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव जिस 'PDA' की बदौलत सत्ता वापसी का स्वप्न देख रहे हैं, उसी फार्मूले को उनके विधायक के क्षेत्र में ज़बरदस्त चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।
इस सीट पर विधायक जाहिद बेग की दो बार की जीत के बाद, अब पिछड़े वर्ग के एक महत्वपूर्ण हिस्से, विशेषकर यादव मतदाताओं में उनके प्रति गहरी नाराज़गी देखने को मिल रही है। यादव मतदाता, जो परंपरागत रूप से का एक मज़बूत आधार रहे हैं।
समाजवादी पार्टी के कर वोट बैंक यादव मतदाताओं की माने तो उनकी नाराज़गी पार्टी या अखिलेश यादव से नहीं, बल्कि विधायक जाहिद बेग के व्यक्तिगत कार्यशैली से है। मतदाताओं का आरोप है कि विधायक ने अपने कार्यकाल में यादव समुदाय के लोगों को न तो आगे बढ़ने का मौका दिया और न ही तमाम महत्वपूर्ण कार्यों में उनकी पर्याप्त भागीदारी सुनिश्चित की। उनकी भागीदारी लगभग शून्य रही है, जिससे इस प्रमुख ओबीसी वर्ग में उपेक्षा का भाव पनप गया है।
'PDA' फार्मूले पर संकट और सपा के लिए नए विकल्प की मांग
यादव समुदाय की यह नाराज़गी केवल विधायक तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समाजवादी पार्टी के लिए ज़मीनी स्तर पर एक गंभीर राजनीतिक संकेत है। यदि पिछड़े वर्ग का एक निर्णायक और कोर वोट बैंक (यादव) ही विधायक से विमुख हो जाए, तो 'पिछड़ा' घटक (P) ही कमज़ोर हो जाता है। ऐसे में, अखिलेश यादव का 'PDA' फार्मूला भदोही में विफल हो सकता है।
स्थानीय जनता की मांग है कि समाजवादी पार्टी यदि भदोही सदर से विधायक जाहिद बेग के स्थान पर किसी अन्य ओबीसी उम्मीदवार को टिकट देती है, तो 'PDA' का फॉर्मूला न केवल प्रभावी रूप से लागू होगा, बल्कि यह सकारात्मक लहर पूरे जिले में फैलेगी। लोगों का मानना है कि एक नया, ज़मीनी स्तर पर जुड़ा हुआ ओबीसी चेहरा, यादव मतदाताओं के असंतोष को खत्म कर सकता है और मुस्लिम-ओबीसी एकता को मज़बूती दे सकता है। स्थानीय लोगों का कहना है कि भदोही सदर विधानसभा से अब तक किसी यादव प्रत्याशी को मौका नहीं मिला है अधिकांश बार यादव वोटर मुस्लिम प्रत्याशी को वोट देता आया है अब मुस्लिम मतदाताओं को अपने प्रतिबद्धता सिद्ध करने के लिए किसी गैर मुस्लिम पिछड़े वर्ग के प्रत्याशी को वोट देना चाहिए अगर समाजवादी पार्टी गैर मुस्लिम पिछड़े वर्ग खासतौर पर यादव को टिकट देती है तब।
यह असंतोष केवल भदोही सदर तक सीमित नहीं रहेगा; इसका असर पड़ोसी विधानसभा सीटों ज्ञानपुर और औराई पर भी पड़ना तय है। यदि सपा अपने कोर वोट बैंक के असंतोष को दूर करने में विफल रहती है, तो यह पूरे जिले में एक राजनीतिक झटके का कारण बन सकती है और 2027 के विधानसभा चुनाव में सत्ता में वापसी की सपा की राह को और अधिक कठिन बना सकती है। ऐसे में, समाजवादी पार्टी नेतृत्व के लिए भदोही सदर सीट पर उम्मीदवार का चयन 2027 की लड़ाई के लिए एक महत्वपूर्ण परीक्षा साबित होगा।
