दिल्ली ब्लास्ट: नेपाल से खरीद गए फोन, UP से 17 सिम कार्ड और 10 दिन तक छिपा रहा आत्मघाती डॉ. उमर उन नबी!

नेपाल से खरीद गए फोन, UP से 17 सिम कार्ड और 10 दिन तक छिपा रहा आत्मघाती डॉ. उमर उन नबी!
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आतंकियों ने सिम-फ्री एन्क्रिप्टेड मैसेजिंग सेवा जैसे 'थ्रीमा' (Threema) का इस्तेमाल किया था।

दिल्ली ब्लास्ट मामले में खुलासा हुआ है कि आत्मघाती हमलावर डॉ. उमर उन नबी ने ऑपरेशन के लिए नेपाल से 6 सेकंड हैंड फोन और यूपी के कानपुर से 17 सिम कार्ड खरीदे थे।

लखनऊ: राष्ट्रीय राजधानी को दहलाने वाले हालिया कार बम धमाके की जांच में एक बेहद सनसनीखेज खुलासा हुआ है। जांच एजेंसियों ने पाया है कि हमले को अंजाम देने वाला आत्मघाती हमलावर डॉ. उमर उन नबी ने अपने पाकिस्तानी हैंडलर्स से बात करने और खुद को ट्रैक होने से बचाने के लिए सीक्रेट नेटवर्क का इस्तेमाल किया था।

विस्फोट की साजिश रचने के लिए फरीदाबाद के अल-फलाह यूनिवर्सिटी कैंपस से लेकर नेपाल की सीमा और उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले तक कनेक्शन मिले हैं।

नेपाल और कानपुर से जुटाए गए थे मोबाइल और 17 सिम कार्ड

जांच में सामने आया है कि आतंकी मॉड्यूल ने यह सुनिश्चित करने के लिए सभी प्रयास किए कि उनकी संचार प्रणाली का पता न लगाया जा सके। हमले के लिए विशेष रूप से नेपाल से 6 सेकंड हैंड मोबाइल फ़ोन खरीदे गए थे। कुल 17 सिम कार्ड का इस्तेमाल किया गया, जिनमें से 6 सिम कार्ड उत्तर प्रदेश के कानपुर से खरीदे गए थे।

आत्मघाती हमलावर डॉ. उमर नबी अकेले ही हमले के दौरान दो अलग-अलग फोन और पांच सिम कार्ड का इस्तेमाल कर रहा था, ताकि किसी भी फोन पर लंबी बातचीत न हो और वह ट्रैकिंग से बच सके। आतंकियों ने सिम-फ्री एन्क्रिप्टेड मैसेजिंग सेवा जैसे 'थ्रीमा' (Threema) का इस्तेमाल किया, जिससे वे सुरक्षित रूप से और बिना किसी ट्रेसिंग के निर्देश प्राप्त कर सकें।

डॉ. उमर के 10 दिन का 'सेफ हाउस' और 16 घंटे की ड्राइव

यूनिवर्सिटी परिसर में आतंकी मॉड्यूल का पर्दाफाश होने के बाद मुख्य आत्मघाती हमलावर डॉ. उमर उन नबी गिरफ्तारी से बचने के लिए कई दिनों तक छिपा रहा। अपने सहयोगी, आमिर राशिद अली की मदद से, डॉ. उमर नूंह की हिदायत कॉलोनी में एक किराए के मकान में लगभग 10 दिनों तक छिपा रहा।

इस ठिकाने को ही बाद में 'सेफ हाउस' के रूप में पहचाना गया, जहां उसने विस्फोट की अंतिम योजना को अंतिम रूप दिया। जब उसके एक अन्य सहयोगी, डॉ. मुजम्मिल अहमद गनई, को गिरफ्तार किया गया, तो उमर घबरा गया और सबूत मिटाने की कोशिश में 16 घंटे तक दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में बेतरतीब ढंग से कार चलाता रहा।

जांच में पता चला है कि उमर ने शुरुआत में लाल किले जैसी भीड़-भाड़ वाली जगह को निशाना बनाने की योजना बनाई थी, लेकिन भीड़ कम होने के कारण उसने मेट्रो स्टेशन के पास कार में ही विस्फोट कर दिया।

डीएनए पुष्टि, शू-बॉम्बर का शक और पाक-तुर्की से हैंडलर कनेक्शन

जांच एजेंसियों को डॉ. उमर की पहचान और आतंकी साजिश के अंतरराष्ट्रीय लिंक के बारे में निर्णायक सबूत मिले हैं। घटनास्थल से बरामद मानव अवशेषों का डीएनए टेस्ट डॉ. उमर की माँ के सैंपल से पूरी तरह मेल खा गया है, जिससे यह पुष्टि हुई है कि विस्फोट के समय कार में वही मौजूद था।

सबसे बड़ा नया खुलासा यह है कि जांच एजेंसी को घटनास्थल से बरामद जूते में एक धातु जैसा पदार्थ मिला है, जिससे यह आशंका जताई जा रही है कि उमर ने अपने जूते में कोई ट्रिगर मैकेनिज्म छिपा रखा था और वह 'शू बॉम्बर' की तरह काम कर रहा था।

इस हमले के तार पाकिस्तान से जुड़े जैश-ए-मोहम्मद के हैंडलर डॉ. हाशिम उर्फ आरिफ निसार और तुर्की के 'UKasa' (संभावित कोडनेम) जैसे विदेशी आकाओं से जुड़े हैं, जो एन्क्रिप्टेड ऐप जैसे 'सेशन' और 'टेलीग्राम' के माध्यम से निर्देश दे रहे थे। इस ऑपरेशन के लिए मॉड्यूल को एक गिरफ्तार महिला डॉक्टर के माध्यम से 20 लाख रुपये की फंडिंग भी रूट की गई थी।

हमले में शामिल उच्च-शिक्षित सहयोगी और सीक्रेट लैब

जांच एजेंसियों ने इस आतंकी मॉड्यूल से जुड़े कई अन्य उच्च-शिक्षित व्यक्तियों को भी गिरफ्तार किया है। आमिर राशिद अली ने डॉ. उमर को सुरक्षित ठिकाना और लॉजिस्टिक सहायता प्रदान की थी, और विस्फोट में इस्तेमाल की गई कार भी उसी के नाम पर रजिस्टर्ड थी।

एक अन्य गिरफ्तार सहयोगी, दानिश, कथित तौर पर डॉ. उमर के साथ साजिश में शामिल था और ड्रोन को रॉकेट जैसे हमले के लिए मॉडिफाई करने की तैयारी कर रहा था। खुलासा हुआ है कि डॉ. उमर ने अल-फलाह यूनिवर्सिटी के पास अपने घर पर एक सीक्रेट लैब बनाई थी, जहाँ वह पाकिस्तानी हैंडलर्स के निर्देशों पर आईईडी (IED) बनाने के तरीके सीख रहा था और उनका अभ्यास कर रहा था।

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