सत्ता के गलियारों में 'कुटुंब' बनाम 'सहभोज': यूपी में ब्राह्मण विधायकों की डिनर डिप्लोमेसी ने दिए बड़े राजनीतिक संकेत

इस बैठक का नाम 'सहभोज' रखा गया, लेकिन इसके भीतर 2027 के चुनावी समर की पूरी पटकथा नजर आई।
लखनऊ : उत्तर प्रदेश की राजनीति में इन दिनों 'भोज' के बहाने शक्ति प्रदर्शन का दौर शुरू हो गया है। हाल ही में ठाकुर विधायकों की 'कुटुंब' बैठक ने जिस तरह से सियासी चर्चाओं को जन्म दिया था, ठीक उसी तर्ज पर अब भाजपा के ब्राह्मण विधायकों की एकजुटता सामने आई है।

कुशीनगर से विधायक पीएन पाठक के आवास पर आयोजित हुए इस 'सहभोज' ने शासन से लेकर संगठन तक खलबली मचा दी है। इसे 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले ब्राह्मण समाज के नेताओं की लामबंदी और प्रशासनिक उपेक्षा के खिलाफ एक सामूहिक आवाज के रूप में देखा जा रहा है।
ठाकुरों के 'कुटुंब' के बाद ब्राह्मणों सहभोज
उत्तर प्रदेश के सियासी गलियारों में यह चर्चा आम है कि ब्राह्मण विधायकों की यह बैठक पिछले दिनों हुई ठाकुर विधायकों की बैठक की अगली कड़ी है। जिस तरह ठाकुर विधायकों ने एकजुट होकर अपनी ताकत दिखाई थी, उसके बाद ब्राह्मण विधायकों का करीब 32 से 40 की संख्या में जुटना एक बड़ा संदेश देता है।

हालांकि आयोजकों ने इसे केवल एक सामाजिक मिलन बताया है, लेकिन राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यह पार्टी के भीतर अपना वर्चस्व बनाए रखने और आगामी चुनावों के लिए अपनी जमीन मजबूत करने की एक सोची-समझी रणनीति है।
अफसरों की मनमानी और प्रशासनिक रवैये पर तकरार
बैठक के दौरान सबसे ज्यादा चर्चा यूपी की ब्यूरोक्रेसी और अधिकारियों के व्यवहार पर हुई। विधायकों ने अपनी पीड़ा साझा करते हुए कहा कि कुछ IAS और IPS अधिकारी अपनी मनमानी कर रहे हैं और जन प्रतिनिधियों की बातों को अनसुना किया जा रहा है।
प्रशासनिक अधिकारियों और विधायकों के बीच समन्वय की भारी कमी पर चिंता जताई गई। विधायकों का मानना है कि अगर अधिकारियों का यही रवैया रहा तो जनता के बीच उनकी पकड़ कमजोर हो सकती है, इसलिए अब हर महीने ऐसी बैठकें करने पर सहमति बनी है ताकि सामूहिक रूप से अपनी बात सरकार तक पहुंचाई जा सके।
सहभोज के बहाने 2027 के चुनावी रण की तैयारी
इस बैठक का नाम 'सहभोज' जरूर रखा गया, लेकिन इसके भीतर 2027 के चुनावी समर की पूरी पटकथा नजर आई। पीएन पाठक के आवास पर हुए इस आयोजन में शामिल विधायकों ने आगामी चुनौतियों और चुनावी गणित पर मंथन किया।
सियासी हलकों में इसे 'ब्राह्मण कार्ड' के रूप में देखा जा रहा है, क्योंकि उत्तर प्रदेश के चुनाव में ब्राह्मण मतदाता हमेशा से निर्णायक भूमिका में रहे हैं।
विधायकों के बीच हुई इस गुफ्तगू ने स्पष्ट कर दिया है कि वे अब अपनी उपेक्षा बर्दाश्त करने के मूड में नहीं हैं और एकजुट होकर आने वाले समय में अपनी सियासी हिस्सेदारी की मांग करेंगे।
सियासी गलियारों में चर्चा और विपक्ष का रुख
इस सहभोज ने विपक्षी खेमे को भी हमलावर होने का मौका दे दिया है। समाजवादी पार्टी और अन्य विपक्षी दलों का कहना है कि भाजपा के भीतर अब जातिवाद की जंग खुलकर सामने आ गई है।
वहीं, भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के लिए यह स्थिति किसी चुनौती से कम नहीं है, क्योंकि ठाकुर और ब्राह्मण दोनों ही दल के मुख्य वोट बैंक माने जाते हैं।
विधायकों के इस 'डिनर डिप्लोमेसी' ने यह संदेश दे दिया है कि लखनऊ की सत्ता के गलियारों में अब अफसरों और नेताओं के बीच की खींचतान और बढ़ेगी, जिसका सीधा असर आने वाले समय में राज्य की राजनीति पर पड़ना तय है।
