कूटनीतिक दौरे का अंतिम पड़ाव: ताजमहल का दीदार करेंगे तालिबान के विदेश मंत्री मुत्ताकी, सुरक्षा के कड़े बंदोबस्त

अफगानी विदेश मंत्री की 9 अक्टूबर से 16 अक्टूबर की ये यात्रा, भारत और तालिबान के बीच संबंधों को आगे बढ़ाने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
आगरा : अफगानिस्तान के विदेश मंत्री मौलवी आमिर खान मुत्ताकी की सात दिवसीय भारत यात्रा अब अपने अंतिम चरण में है। इस यात्रा के दौरान दिल्ली में महत्वपूर्ण कूटनीतिक बैठकों और सहारनपुर के दारुल उलूम देवबंद में धार्मिक जुड़ाव के बाद, रविवार को उनका अंतिम पड़ाव आगरा है। मुत्ताकी के आगमन को लेकर आगरा में सुरक्षा व्यवस्था अभूतपूर्व रूप से बढ़ा दी गई है, विशेषकर ताजमहल के आसपास, जहां कड़ा सुरक्षा पहरा रहेगा। प्रशासन ने किसी भी स्थानीय व्यक्ति या मुस्लिम प्रतिनिधिमंडल को उनसे मिलने की अनुमति नहीं दी है, जिस पर स्थानीय धार्मिक नेताओं ने कड़ी नाराजगी व्यक्त की है। 9 अक्टूबर को शुरू हुई यह यात्रा, 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद किसी वरिष्ठ तालिबान नेता की पहली उच्च-स्तरीय भारत यात्रा है, जिसे दोनों देशों के बीच संबंधों को एक नया आयाम देने की दिशा में महत्वपूर्ण माना जा रहा है। मुत्ताकी 16 अक्टूबर को अफगानिस्तान लौटेंगे।
आगरा में सुरक्षा का अभेद्य घेरा
अफगान विदेश मंत्री मौलवी आमिर खान मुत्ताकी के आगरा दौरे को लेकर स्थानीय प्रशासन और पुलिस सहारनपुर में हुई हालिया हिंसा के मद्देनजर किसी भी अप्रिय घटना से बचने के लिए पूरी तरह से सतर्क है। ताजमहल के पास शिल्पग्राम से लेकर होटल ओबराय अमर विलास तक, पूरे रास्ते और परिसर को अभेद्य सुरक्षा घेरे में बदल दिया गया है।
जिला प्रशासन के अनुसार, मुत्ताकी रविवार सुबह 9 बजे देवबंद से सड़क मार्ग के जरिए आगरा पहुंचेंगे। सुबह 11 बजे से दोपहर 12 बजे तक उनका ताजमहल भ्रमण का कार्यक्रम है। इस दौरान, ताजमहल पर भारी पुलिस बल की तैनाती रहेगी और आम जनता के प्रवेश पर भी सख्ती बरती जाएगी।
इस उच्च-सुरक्षा व्यवस्था के बीच, शहर मुफ्ती मजीद रूमी के नेतृत्व में स्थानीय मुस्लिमों का एक प्रतिनिधिमंडल अफगान विदेश मंत्री से मिलकर उन्हें सम्मानित करना चाहता था। उन्होंने दोनों देशों के बीच धार्मिक और सांस्कृतिक संबंधों की दुहाई देते हुए मुलाकात की इजाजत मांगी, लेकिन प्रशासन ने सुरक्षा कारणों और 'किसी भी व्यक्तिगत मुलाकात की अनुमति न होने' का हवाला देते हुए इस अनुरोध को पूरी तरह से खारिज कर दिया। ताजमहल भ्रमण के बाद, मुत्ताकी होटल ओबराय अमर विलास में दोपहर का भोजन करेंगे और फिर दारुल उलूम जाएंगे, जिसके बाद वे आगे की यात्रा के लिए रवाना हो जाएंगे।
दिल्ली में कूटनीति और देवबंद में धार्मिक संबंध
मौलवी आमिर खान मुत्ताकी की यह सात दिवसीय भारत यात्रा बहुआयामी रही है। 9 अक्टूबर को नई दिल्ली पहुंचने के बाद उन्होंने भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर से मुलाकात की। यह मुलाकात तालिबान के सत्ता में आने के बाद दोनों देशों के बीच पहला इतना उच्च-स्तरीय संपर्क था। इस दौरान राजनीतिक, आर्थिक सहयोग, व्यापारिक मार्ग और क्षेत्रीय स्थिरता जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर विस्तार से चर्चा हुई। मुत्ताकी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में भारत से सामान्य और सकारात्मक संबंध बनाने की इच्छा व्यक्त की, साथ ही भारतीयों को अफगानिस्तान में काम करने का न्यौता भी दिया। यह यात्रा इस बात का संकेत है कि भारत, जिसने अभी तक तालिबान सरकार को आधिकारिक मान्यता नहीं दी है, काबुल के साथ एक 'वर्किंग रिलेशनशिप' स्थापित करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है।
अपनी कूटनीतिक बैठकों के बाद, मुत्ताकी शनिवार को उत्तर प्रदेश के सहारनपुर स्थित विश्व-प्रसिद्ध इस्लामी शिक्षण संस्थान, दारुल उलूम देवबंद पहुंचे। मुत्ताकी ने इस संस्थान को 'मादर-ए-इल्मी' बताते हुए अफगानिस्तान और देवबंद के उलेमाओं के बीच पुराने और गहरे शैक्षिक संबंधों को रेखांकित किया। दारुल उलूम में उनका भव्य स्वागत हुआ, जहां उन्होंने छात्रों के साथ बैठकर मुफ्ती अबुल कासिम नोमानी से हदीस का सबक पढ़ा और हदीस-ए-सनद की मानद उपाधि प्राप्त की, जिसके बाद वह अपने नाम के आगे 'कासमी' जोड़ सकेंगे। उनका यह दौरा तालिबान की वैचारिक जड़ों और धार्मिक परंपरा के स्रोत के साथ जुड़ाव को दर्शाता है, और भारत के मुस्लिम समुदाय के साथ संबंध बनाने की दिशा में एक रणनीतिक प्रयास भी माना जा रहा है।
अफगानिस्तान के विदेश मंत्री मौलवी आमिर खान मुत्ताकी की भारत यात्रा क्षेत्रीय कूटनीति के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह यात्रा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) द्वारा तालिबान नेताओं पर लगाए गए यात्रा प्रतिबंध से मिली विशेष छूट के कारण संभव हुई है। भारत ने यह छूट दिलवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो दोनों पक्षों के बीच बढ़ते विश्वास को दर्शाता है।
इस दौरे का मुख्य उद्देश्य आर्थिक संबंधों को बढ़ावा देना, व्यापार के रास्ते खोलना और अप्रत्यक्ष रूप से तालिबान शासन के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से राजनयिक मान्यता प्राप्त करने की दिशा में प्रयास करना है। भारत की तरफ से यह कदम अफगानिस्तान में मानवीय सहायता जारी रखने, भारतीय हितों की रक्षा करने, और क्षेत्र में पाकिस्तान की बढ़ती भूमिका को संतुलित करने के उद्देश्य से उठाया गया है। कई विश्लेषकों का मानना है कि इस दौरे से पाकिस्तान में बेचैनी बढ़ी है, क्योंकि भारत और तालिबान के बीच किसी भी तरह की नजदीकी इस्लामाबाद के क्षेत्रीय प्रभाव को कम कर सकती है। कुल मिलाकर, मुत्ताकी का यह दौरा न केवल भारत-अफगानिस्तान संबंधों को एक नई दिशा दे रहा है, बल्कि दक्षिण एशिया की राजनीति में भी एक नया अध्याय जोड़ रहा है। 16 अक्टूबर को उनकी वापसी से पहले, इस यात्रा से निकले परिणामों पर वैश्विक नजर बनी रहेगी।
