मोबाइल बैन, वेद अनिवार्य: सुबह चार बजे शंखनाद से शुरू होती है दिनचर्या, जहां तैयार हो रही संस्कारवान Gen Z

सुबह के चार बजे जैसे ही श्रीजड़खोर गोधाम के प्रांगण में शंख की ध्वनि गूंजती है, वैसे ही सफेद वस्त्रधारी छोटे-छोटे ब्रह्मचारी अनुशासित पंक्तियों में खड़े होकर वेद मंत्रों का उच्चारण करते हैं। यहां मोबाइल की घंटियों या सोशल मीडिया की कोई आवाज नहीं सुनाई देती, बल्कि बस वैदिक ऋचाओं की मधुर ध्वनि और गौशाला में बंधी गायों की रंभाहट गूंजती है।

आज की आधुनिक पीढ़ी जहां मोबाइल स्क्रीन और इंटरनेट की आभासी दुनिया में डूबी रहती है, वहीं राजस्थान के इस गुरुकुल में युवा संस्कारवान और धर्मनिष्ठ बनने की राह पर अग्रसर हैं। नेपाल में हाल ही में युवा पीढ़ी के उपद्रव की खबरें आई हैं, लेकिन यहां की युवा पीढ़ी वेदों और शास्त्रों से जुड़कर अपनी संस्कृति की रक्षा का संकल्प ले रही है। 15 वर्षीय ब्रह्मचारी आदित्य बताते हैं, “हमें मोबाइल की जरूरत नहीं, जो शिक्षा हमें यहां मिल रही है, वही हमारी सबसे बड़ी ताकत है।”

7 वर्षों का है पाठ्यक्रम
डीग के श्रीजड़खोर गोधाम में स्थित श्री गेणशदास भक्तमाली वेद विद्यालय सात वर्षों का पाठ्यक्रम संचालित करता है। इस विद्यालय में बटुक ब्रह्मचारियों को आश्रम में रखा जाता है जहां वे वेद, उपनिषद, पुराण, रामायण, महाभारत समेत अनेक धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन करते हैं। इसके साथ ही आधुनिक शिक्षा जैसे संस्कृत, हिंदी, अंग्रेजी और गणित भी पढ़ाई जाती है। विद्यालय में शिक्षा और भोजन दोनों निशुल्क प्रदान किए जाते हैं। इस विद्यालय का संचालन श्रीरैवासा धाम और वृंदावन धाम के प्रमुख आध्यात्मिक गुरुओं के मार्गदर्शन में होता है।
सप्ताह में 1 बार मिल सकते हैं अभिभावक
दिनचर्या बेहद अनुशासित होती है। सुबह ब्रह्ममुहूर्त में उठकर वेदाभ्यास, प्रार्थना, यज्ञ और योग ध्यान का अभ्यास किया जाता है। इसके अलावा गो सेवा, सफाई कार्य और पारंपरिक खेल भी शामिल हैं। इस गुरुकुल में मोबाइल, टीवी और कंप्यूटर पूरी तरह प्रतिबंधित हैं। बच्चों को सप्ताह में केवल एक बार फोन पर अभिभावकों से बात करने की अनुमति मिलती है और महीने में एक बार मुलाकात होती है। आचार्य बताते हैं कि प्रारंभ में मोबाइल न मिलने से बच्चों को थोड़ी परेशानी होती है, लेकिन जल्द ही वे इस अनुशासन के अभ्यस्त हो जाते हैं और यह उनकी सबसे बड़ी ताकत बन जाती है।

भोजन में सात्विकता का विशेष ध्यान रखा जाता है। यहां मुख्य आहार दूध, अनाज, फल और गोवृति प्रसाद होता है। मांस, मदिरा, जंक फूड और किसी भी प्रकार के व्यसनों पर पूरी तरह रोक है। स्वामी श्री राजेन्द्र दास जी महाराज का कहना है कि इस गुरुकुल का उद्देश्य धीरे-धीरे विलुप्त होती सनातन संस्कृति की रक्षा करना है। वे चाहते हैं कि आज की युवा पीढ़ी संस्कारवान बने और भविष्य में वे राष्ट्र के सच्चे धर्म रक्षक और सनातन संस्कृति के संरक्षक बनें। उनका विश्वास है कि जब देश को उनकी सबसे अधिक जरूरत होगी, तब ये युवा सबसे आगे खड़े होंगे।
