कौन थे महंत राघवाचार्य?: 72 साल की उम्र में छूटी देह, सीकर में आज अंतिम यात्रा, CM भजनलाल ने जताया दुख

Mahant Raghavacharya Death
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Mahant Raghavacharya Death
Mahant Raghavacharya Death: सीकर के रैवासा धाम के पीठाधीश्वर के महंत राघवाचार्य का शुक्रवार सुबह निधन हो गया है। आज रैवासा में ही उनका अंतिम संस्कार होगा। सीएम भजनलाल शर्मा ने दुख जताया है।

Mahant Raghavacharya Death: सीकर के रैवासा धाम के पीठाधीश्वर के महंत राघवाचार्य का शुक्रवार सुबह निधन हो गया है। आज रैवासा में उनकी अंतिम यात्रा निकाली जाएगी। पीठाधीश्वर को सुबह बाथरूम में दिल का दौरा पड़ा। तुरंत सीकर हॉस्पिटल ले जाया गया। जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। राघवाचार्य जी वेदान्त विषय में गोल्ड मेडलिस्ट थे। उन्होंने राजस्थान संस्कृति अकादमी के अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया था। महंत राघवाचार्य जी की अंतिम यात्रा आज रायवासा में होगी।

सीकर के सबसे पुराने मंदिर के पीठाधीश्वर थे
महंत राघवाचार्य जी रायवासा के जांकिनाथ मंदिर के पीठाधीश्वर थे, जो सीकर का सबसे पुराना राम मंदिर है। यह मंदिर 1570 में बनाया गया था और इसे वैष्णव संप्रदाय के सबसे पुराने पीठों में से एक माना जाता है। इस स्थान पर अग्रदेवाचार्य महाराज ने विवाह और होली के लिए गीतों की रचना की थी, जिन्हें जनकपुर तक गाया जाता था। इस पीठ से मधुर पूजा का प्रचार भी हुआ था, और वैष्णव संप्रदाय के 37 में से 12 आचार्य पीठ इसी स्थान से निकले हैं।

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राम जन्मभूमि आंदोलन में रही अहम भूमिका
महंत राघवाचार्य का राम जन्मभूमि आंदोलन में बड़ा योगदान रहा। उन्हें अयोध्या में राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह में आमंत्रित किया गया था। वे इस आंदोलन से 1984 से जुड़े हुए थे। यह आंदोलन उनकी खराब स्वास्थ्य की वजहों में से एक था। उन्हें आंदोलन के दौरान दिन में 10 से अधिक बैठकों में शामिल होना पड़ता था, जिससे उनकी तबीयत बिगड़ने लगी थी।

यूपी के हमीरपुर में हुआ था जन्म
महंत राघवाचार्य जी का जन्म 8 सितंबर 1952 को उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले के वीरखेड़ा गांव में हुआ था। उन्होंने चित्रकूट से संस्कृत की पढ़ाई की और वाराणसी में 11 वर्षों तक वेदों का अध्ययन किया। 1981 में उन्हें वेदांत विभाग में सर्वोच्च अंक प्राप्त करने के लिए स्वर्ण पदक मिला। उन्होंने अखिल भारतीय संस्कृत प्रतियोगिता में भी स्वर्ण पदक जीता। 1983 में उन्होंने रायवासा धाम में शालिग्रामाचार्य जी से दीक्षा ली और 1984 में वे रायवासा पीठ के पीठाधिपति बने।

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