Success Story: किसान के बेटे मोनू मीणा बने MBBS स्टूडेंट, मां और भाई के त्याग से छुई ऊंचाइयां

Monu Meena NEET 2025 Success Story
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मोनू मीणा

Success Story: राजस्थान के छोटे से गांव से निकले मोनू मीणा ने NEET 2025 में 748वीं रैंक हासिल कर MBBS में एडमिशन पाया। जानिए कैसे मां और भाई के त्याग से मिली सफलता।

Success Story: राजस्थान के बारां जिले के एक छोटे से गांव भडाडसूई से निकलकर मोनू मीणा अब सरकारी मेडिकल कॉलेज में MBBS की पढ़ाई करेगा और डॉक्टर बनेगा। मोनू, हिंदी माध्यम में पढ़ने वाला एक साधारण लड़का, जिसने असाधारण संघर्ष के बीच अपना रास्ता खुद बनाया। NEET 2025 में अपनी श्रेणी में 748वीं रैंक हासिल की है। लेकिन यह केवल सफलता की नहीं, संघर्ष, त्याग, और संकल्प की कहानी है।

बता दें, 2011 में मोनू के पिता का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया था। उस वक्त मोनू बहुत छोटा था। परिवार की सारी जिम्मेदारी आ गई उसकी मां श्रीमती कालावती बाई पर, जो खुद भी केवल एक छोटे से खेत में काम करके परिवार चलाती थीं। वही खेत, वही घर, वही आंसू लेकिन मां की आंखों में बच्चों को पढ़ाने की एक जिद हमेशा रही।

खुद का सपना त्याग छोटे भाई का सपना किया पूरा

इसके अलावा मोनू का एक बड़ा भाई भी है, जिसका नाम है अजय मीणा। अजय भी बायोलॉजी से 12वीं पास था और डॉक्टर बनना चाहता था। लेकिन जब घर की स्थिति ने इजाजत नहीं दी कि दोनों बेटों को कोचिंग कराई जा सके, तो अजय ने चुपचाप अपने सपने त्याग कर मोनू को डॉक्टर बनाने का फैसला लिया। जिसके बाद खुद B.Sc. करने लगा, ताकि छोटे भाई का सपना जिंदा रह सके।


मोनू ने 10वीं में 91.50% अंक लाकर अपनी प्रतिभा साबित कर दी थी। लेकिन जब कोचिंग की बात आई, तो आर्थिक स्थिति एक बड़ी दीवार थी। ऐसे में मोनू की मां ने Motion Education Kota से संपर्क किया। वहां उन्हें बताया गया कि राजस्थान सरकार की मुख्यमंत्री अनुप्रति कोचिंग योजना जैसे छात्रवृत्ति कार्यक्रम के तहत मोनू को बिना किसी शुल्क के 2 वर्षों तक कोचिंग और रहने खाने की सुविधा मिल सकती है।

कठिन संघर्ष से पाई सफलता

मोनू ने इसके लिए आवेदन किया और चयनित भी हो गया। वहां पहली मुलाकात कोचिंग के निदेशक एन.वी. सर से हुई, तो उन्होंने मोनू की आंखों में सपना देखा और उसके दिल में हिंदी माध्यम की झिझक। उन्होंने मोनू की सोच की दिशा ही बदल दी। कोचिंग के निदेशक एन.वी. ने कहा कि माध्यम नहीं, मेहनत मायने रखती है। जिसके बाद मोनू ने कठिन संघर्ष कर यह मुकाम हासिल किया।

मोनू की इस सफलता के बाद हरिभूमि ने बातचीत की, जिसमें छात्र ने खुलकर सवालों के जवाब दिया। डॉक्टर बनने के सपनों से लेकर कैसे संघर्ष किया, कौन-कौन साथ दिया। यहां पढ़ें मोनू से क्या बातचीत हुई?

सवाल- आज जब आप MBBS की पढ़ाई शुरू करने जा रहे हैं, तो अपने गांव के उन बच्चों को क्या संदेश देना चाहेंगे जो सीमित संसाधनों के कारण अपने सपनों से समझौता कर रहे हैं?

जवाब- अगर मैं कर सकता हूं तो आप क्यों नहीं?, मैं गांव के उन सभी बच्चों को कहना चाहता हूं कि संसाधनों की वजह से आप अपनी पढ़ाई मत छोड़िए। बल्कि इन चुनौतियों से निपटने का रास्ता निकालें। सरकार की भी कई स्कीम हैं, जिसका फायदा उठाकर आप अपने सपनों को पूरा कर सकते हैं।

सवाल- आपके जीवन में आपकी मां की भूमिका बेहद अहम रही है। अगर उन्हें एक बात कहनी हो, तो वो क्या होगी, जो शायद आपने कभी शब्दों में नहीं कही?

जवाब- मैं अगर यहां तक पहुंचा हूं तो मां के बदौलत ही, मां का सपना था कि मेरा बेटा बड़ा डॉक्टर बने। इसके लिए उन्होंने बहुत कुछ त्याग किया। मेरी मां के बिना यह संभव नहीं था। मेरी मां ही सबकुछ है।

सवाल- आपने जिस परिस्थिति में पढ़ाई की, वह बेहद कठिन थी। उस दौर में ऐसा कौन-सा पल था जब आपको लगा कि अब आगे नहीं बढ़ पाएंगे और आपने खुद को कैसे संभाला?

जवाब- ऐसा कई बार लगा कि अब इस परिस्थिति में पढ़ाई संभव नहीं है लेकिन मैनें खुद को संभाला और मेहनत करता रहा। क्योंकि मां का सपना पूरा करना था। जिसका परिणाम रहा कि कठिन समय से निकलकर परीक्षा पास की।

सवाल- आपके बड़े भाई ने अपना सपना छोड़कर आपको डॉक्टर बनाने का फैसला किया। उस त्याग को आप कैसे महसूस करते हैं? क्या कभी इस पर उनसे बात हुई?

जवाब- मेरे भाई भी डॉक्टर बनना चाह रहे थे लेकिन उन्होंने घर की परिस्थिति को देखते हुए अपना सपना त्याग दिया। उन्होंने अपने छोटे भाई यानी मुझे डॉक्टर बनाने का फैसला किया। जब मैं पहली बार गांव से कोटा गया तो मेरा भाई मेरे साथ कई दिनों तक रहा। मैं उनका एहसान कभी नहीं भूल सकता।

सवाल- हिंदी माध्यम के छात्र के तौर पर कोचिंग में आने पर क्या शुरुआती चुनौतियां थीं? कोचिंग संस्थान ने आपकी इस यात्रा में कैसे मदद की?

जवाब- शायद अगर मुझे कोचिंग संस्थान से सही मार्गदर्शन नहीं मिलता तो मैं यहां तक नहीं पहुंच पाता। कोचिंग ने हमारे सपनों को साकार करने में मदद की। जहां हिंदी माध्यम के छात्रों को काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, वहीं कोचिंग ने मेरा बहुत साथ दिया। मेरी सफलता पर मां-भाई के साथ ही कोचिंग का बहुत बड़ा योगदान है।

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