तीन बड़े ऑपरेशन, छह बार थैरेपी…: आखिरकार खुलीं भागीरथ की जन्म से जकड़ी उंगलियां

Rajasthan: बीकानेर जिले की श्रीडूंगरगढ़ तहसील के मूंडसर गांव के 15 वर्षीय भागीरथ मुंड की जिंदगी अंधेरे से उजाले की ओर लौट आई है। जन्म से दाएं हाथ की चारों उंगलियां पंजे से चिपकी होने के कारण भागीरथ बचपन से ही आत्मविश्वास खो बैठा था। खेलकूद में वह अक्सर किनारे बैठ जाता और कपड़ों में हाथ छिपाकर रोने लगता, क्योंकि साथी उसका मजाक उड़ाते।
भागीरथ के पिता मोहनराम पेशे से किसान थे। घर की आर्थिक स्थिति भी अच्छी नहीं थी। फिर भी पिता और मां ने इलाज के लिए बीकानेर, जयपुर और जोधपुर तक प्रयास किए, लेकिन हर जगह डॉक्टरों ने यही कहा “हाथ ठीक होगा या नहीं, गारंटी नहीं है।” लगातार निराशा से जूझ रहे परिवार को आशा की किरण तब दिखी, जब एक परिचित ने उन्हें उदयपुर स्थित नारायण सेवा संस्थान के बारे में बताया।
तीन ऑपरेशन हुए
जानकारी मिलते ही 29 जून 2024 को भागीरथ को संस्थान लाया गया। यहां डॉ. बी.एल. शिंदे ने जांच कर भरोसा दिलाया कि तुम्हारा हाथ ठीक होगा, चिंता की कोई जरूरत नहीं है। मैं गारंटी देता हूं। इस विश्वास ने परिवार की आंखों में आंसू ला दिए। इसके बाद 7 जुलाई 2024 को पहला, 6 मार्च 2025 को दूसरा और 3 जून 2025 को तीसरा ऑपरेशन किया गया।
बेटे को मिला नया जीवन: पिता
पैर की त्वचा प्रत्यारोपण और उंगलियों को अलग करने की जटिल प्रक्रिया के साथ छह बार की थैरेपी व ड्रेसिंग हुई। आखिरकार वह हाथ, जो जन्म से जकड़ा हुआ था, अब पूरी तरह खुल चुका है। भावुक पिता मोहनराम ने कहा कि यह संस्थान हमारे लिए भगवान से कम नहीं। बेटे को नया जीवन मिला है। भागीरथ ने भी गर्व महसूस करते हुए कहा कि अब मुझे हाथ छुपाना नहीं पड़ेगा, मैं भी दोस्तों के साथ खेल सकूंगा।
40 हजार से ज्यादा लोगों को मिला नया जीवन
संस्थान के अध्यक्ष प्रशांत अग्रवाल ने हरिभूमि से बातचीत में बताया कि तीन बड़े ऑपरेशनों के बाद भागीरथ का जन्म से जकड़ा हुआ हाथ जब खुला और उसके चेहरे पर मुस्कान लौटी, तो हमारे लिए वह पल किसी आशीर्वाद से कम नहीं था। हमारा संस्थान देशभर में नि:शुल्क चिकित्सा शिविरों और वर्ल्ड क्लास कृत्रिम अंग निर्माण के माध्यम से निरंतर दिव्यांगजनों की जिंदगी को नई दिशा देने का काम कर रहा है। बता दें, 1985 से स्थापित यह संस्थान अब तक 40,000 से अधिक कृत्रिम अंग निशुल्क प्रदान कर चुका है।
