मेवाराम जैन की कांग्रेस में वापसी: अंदरूनी खींचतान तेज, सियासी तकरार बढ़ा, जानें क्या है पूरा मामला?

Mewaram Jain returns to Congress Poster controversy
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बाड़मेर में कांग्रेस दो धड़ों में बंटी, मेवाराम जैन की वापसी ने सियासी गरमाहट बढ़ाई। जानें अंदरूनी खींचतान, विरोध और गहलोत-चौधरी की जंग।

Rajasthan Politics: पूर्व विधायक मेवाराम जैन की कांग्रेस में वापसी ने राजस्थान में राजनीतिक गलियारों को गरमा दिया है। अब कांग्रेस के ही दो गुट आमने-सामने हो गए हैं। मेवाराम का कांग्रेस में स्वागत से पहले ही पोस्टर राजनीति शुरू हो गई है। बाड़मेर और बालोतरा के बीच बैनर और होर्डिंग्स लगाए गए हैं, जिसमें लिखा कि ‘बलात्कारी हमें स्वीकार नहीं’ और ‘महिलाओं का अपमान नहीं सहेगी बाड़मेर कांग्रेस’। यहां पढ़ें क्या है पूरा मामला?

दरअसल, पूर्व विधायक मेवाराम जैन का तथाकथित एक अश्लील वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था। जिसके बाद से उन्हें पार्टी ने निष्काषित कर दिया था। करीब बीस महीने बाद उनका निलंबन रद्द हुआ है। यह फैसला ऐसे वक्त में आया है जब पार्टी आगामी विधानसभा चुनावों की तैयारियों में जुटी है। ऐसे में जैन की वापसी को संगठन की मजबूती के रूप में देखा जा रहा है, लेकिन इससे संगठनात्मक विवाद भी गहराते चले जा रहे हैं।



चरित्रहीनता से समझौते की राजनीति नहीं करूंगा: हरीश चौधरी

बता दें, मेवाराम जैन को पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत गुट का समर्थन है, वहीं बायतु विधायक और मध्यप्रदेश कांग्रेस प्रभारी हरीश चौधरी नहीं चाहते कि जैन की कांग्रेस में वापसी हो। इसको लेकर चौधरी ने दिल्ली में हाईकमान से इस मुद्दे पर आपत्ति दर्ज कराई। इतना ही नहीं उन्होंने एक कार्यक्रम में मंच के दौरान ही कहा कि “चरित्रहीनता से समझौते की राजनीति नहीं करूंगा। यह सिर्फ व्यक्ति की नहीं, सिद्धांतों की बात है। अगर कोई इसे सही ठहराता है, तो स्पष्ट करे कि कांग्रेस किस दिशा में जा रही है।”

प्रदेश की राजनीति का नया अखाड़ा बना बाड़मेर

इधर, मेवाराम की कांग्रेस में वापसी होने पर समर्थकों में जबरदस्त उत्साह है। जगह-जगह पटाखे फोड़े गए और मिठाइयां बांटी गईं। समर्थकों ने इसे न्याय की जीत बताया। मेवाराम की कांग्रेस में वापसी तो हो गई है, लेकिन यह एक नई चुनौती बनकर उभरी है। अब देखना यह होगा कि आगामी चुनावों में यह अंदरूनी दरार पार्टी की रणनीति और एकजुटता पर क्या असर डालेगी? लेकिन एक बात तो तय है कि बाड़मेर अब राजस्थान की राजनीति का नया अखाड़ा बन चुका है।

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