मराठी एकता की हुंकार: महाराष्ट्र में 20 साल बाद एक मंच पर आए राज-उद्धव; जानिए हिंदी विवाद पर क्या बोले?

मराठी एकता की हुंकार: महाराष्ट्र में 20 साल बाद एक मंच पर आए राज-उद्धव; जानें हिंदी विवाद पर क्या बोले?
Maharashtra Hindi Dispute: महाराष्ट्र में हिंदी को तीसरी भाषा के तौर पर अनिवार्य किए जाने के सरकारी फैसले का व्यापक विरोध हो रहा है। मुंबई के वर्ली डोम में शनिवार (5 जुलाई 2025) को ‘मराठी एकता’ की ऐतिहासिक रैली में हुई। इसमें दो दशक बाद राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे एक मंच पर आए। इस 'विजय रैली' में न किसी पार्टी के झंडे में लगाए गए और न किसी राजनीतिक एजेंडे से जोड़ा गया। बल्कि मराठी अस्मिता और मातृभाषा की रक्षा का प्रतीक बताया गया है। रैली में कांग्रेस एनसीपी के नेता भी शामिल हुए।
क्या है विवाद की जड़?
महाराष्ट्र सरकार ने अप्रैल 2025 में कक्षा 1 से 5वीं तक हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य कर दिया है। नई नीति के तहत मराठी और अंग्रेजी मीडियम स्कूलों में भी हिंदी सीखना अनिवार्य किया गया है। राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) और उद्धव ठाकरे की शिवसेना (UBT) ने सरकार के इस फैसले पर आपत्ति जताई है।
राज्य सरकार ने हिंदी की अनिवार्यता वाला यह आदेश 29 जून को रद्द कर दिया है, लेकिन तब तक उद्धव-राज ठाकरे ने 5 जुलाई को साझा रैली की घोषणा कर दी थी। इसे अपनी जीत का प्रतीक बताते हुए 'विजय रैली' नाम दिया गया है।
राज ठाकरे बोले – झगड़े से बड़ा है महाराष्ट्र
- राज ठाकरे ने इस रैली में भावुक अंदाज़ में कहा, "मैंने कहा था झगड़े से बड़ा महाराष्ट्र है। आज हम दोनों एक मंच पर हैं, यह सिर्फ मराठी के लिए है। राजनीति नहीं है। उन्होंने चेताया कि सरकार अगर हिंदी थोपेगी तो "हमारे पास विधान भवन की नहीं, पर सड़कों की ताकत है।
- उद्धव ठाकरे ने भाषण में भाजपा पर निशाना साधा और कहा, "हमारे बच्चों की स्कूलिंग पर सवाल उठाने वाली भाजपा बताए कि नरेंद्र मोदी किस स्कूल में पढ़े? उन्होंने जोर देकर कहा कि, "एक संविधान, एक झंडा चाहिए, लेकिन ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के नाम पर हिंदू-मुसलमान करके देश को तोड़ा जा रहा है।
- राज ठाकरे ने स्पष्ट किया कि उन्हें हिंदी से दिक्कत नहीं है, लेकिन किसी भी भाषा को थोपा नहीं जा सकता। उन्होंने कहा, मराठा साम्राज्य के दौरान हमने मराठी किसी पर नहीं थोपी, फिर अब हम पर हिंदी क्यों?
- राज ठाकरे ने सवाल किया कि, "उत्तर प्रदेश, बिहार और राजस्थान में तीसरी भाषा क्या होगी? वहां कोई दूसरी भाषा सिखाई नहीं जाती तो महाराष्ट्र में ही यह प्रयोग क्यों?
- अपने चुटीले अंदाज में राज ने कहा, अगर कोई मराठी नहीं बोलता तो पीटने की जरूरत नहीं, लेकिन ड्रामा करता है तो कान के नीचे मारो... और वीडियो मत बनाओ।
दूसरे राज्यों के उदाहरण भी दिए
राज ने कहा कि आडवाणी, जयललिता, ए.आर. रहमान, और दक्षिण के कई नेता अंग्रेजी माध्यम से पढ़े हैं लेकिन किसी ने उनके मातृभाषा प्रेम पर सवाल नहीं उठाया। उन्होंने कहा, मेरे पिता श्रीकांत ठाकरे और बालासाहेब ठाकरे भी इंग्लिश मीडियम में पढ़े, लेकिन मराठी को कभी छोड़ा नहीं।
उद्धव बोले – मराठी ने हमें जोड़ा
उद्धव ठाकरे ने राज ठाकरे को भाई कहकर संबोधित किया और कहा कि "हमारी दूरियां मराठी ने मिटा दी हैं। जो पहले राजनीति हमें अलग कर गई थी, अब वही भाषा हमें फिर से जोड़ रही है।
- उद्धव ठाकरे ने कहा, आप (बीजेपी) ने पहले ही हमारा बहुत इस्तेमाल कर लिया है। बालासाहेब ठाकरे का समर्थन न मिलता तो महाराष्ट्र में आपको कौन जानता था।
- उद्धव ठाकरे ने कहा, हमें हिंदुत्व सिखाने वाले आप (बीजेपी) होते कौन हैं ? मुंबई में जब दंगे हो रहे थे, तब मराठी लोगों ने महाराष्ट्र के हर हिंदू को बचाया। चाहे वह कोई हो. अगर इसके लिए आप यदि मराठी लोगों को 'गुंडा' कहते हैं, तो हां हम 'गुंडा' हैं।
- उद्धव ठाकरे ने कहा, बीजेपी जब कहती है कि उन्हें एक संविधान, एक निशान और एक प्रधानमंत्री चाहिए तो उन्हें याद रखना चाहिए कि एक निशान तिरंगा है न कि बीजेपी का झंडा, जो बर्तन साफ करने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला कपड़े का टुकड़ा है।
- उद्धव ठाकरे ने कहा भाजपा वाले हमसे हमेशा पूछते हैं कि बीएमसी में अपने शासन के दौरान मराठी लोगों के लिए क्या किया। अब हम सवाल पूछते हैं कि पिछले 11 सालों से सत्ता में रहते आपने क्या किया?
- मुंबई के महत्वपूर्ण प्रतिष्ठानों को गुजरात में धकेल दिया। कारोबार गुजरात में शिफ्ट किए। बड़े कार्यालय गुजरात जा रहे हैं। हीरा कारोबार पहले ही गुजरात में चला गया। आपने महाराष्ट्र की रीढ़ तोड़ने की पूरी कोशिश की है।
- उद्धव ठाकरे ने कहा, हमारी ताकत हमारी एकता में है। जब भी कोई चुनौतीपूर्ण समय आता है, हम सब एक साथ रहेंगे। लेकिन हम सबको पता है कि जब चुनौतीपूर्ण समय बीत जाता है, तो हम सब अपने निजी हितों के लिए जाते हैं। इस बार यह नहीं होना चाहिए।
नेशनल एजुकेशन पॉलिसी के नियमों में संशोधन
सरकार ने हाल ही में गाइडलाइन बदली है कि अगर 20 से ज्यादा छात्र हिंदी के बजाय दूसरी भारतीय भाषा चुनते हैं तो स्कूल में शिक्षक नियुक्त किया जाएगा, नहीं तो ऑनलाइन माध्यम से वह भाषा पढ़ाई जाएगी। लेकिन विरोध करने वालों का कहना है कि यह “जबरदस्ती की नीति” है और हिंदी को अनिवार्य बनाना संविधान के मूल भाव के खिलाफ है।