विश्व साइकिल दिवस: आशा मालवीय ने 50,000 KM साइकिल चलाकर रचा इतिहास, देश की बनीं प्रेरणा

आशा मालवीय ने 50,000 KM साइकिल चलाकर रचा इतिहास, देश की बनीं प्रेरणा
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आशा बताती हैं कि उनके गांव में लड़कियों को आगे बढ़ते देखना लोगों को पसंद नहीं। लेकिन उनकी मां ने कभी उन्हें रूके नहीं दिया।

Bhopal: एक छोटे से गांव की बेटी जब बड़ा सपना लेकर निकली, तो न सिर्फ गांव की सोच बदली, बल्कि देशभर के लिए एक नई मिसाल बन गई। हम बात कर रहे हैं मध्यप्रदेश की आशा मालवीय की, जिन्होंने पुरुष प्रधान समाज की सोच को तोड़ते हुए अपनी मेहनत, हिम्मत और जज्बे से वो कर दिखाया जो लाखों लड़कियों के लिए प्रेरणा बन गया।

महिला सशक्तिकरण का उदाहरण
आशा बताती हैं कि उनके गांव में लड़कियों को आगे बढ़ते देखना लोगों को पसंद नहीं। लेकिन उनकी मां ने कभी उन्हें रूके नहीं दिया। पिता के बचपन में ही गुजर जाने के बाद मां ने दोनों बेटियों को ऐसा जीवन दिया जिसमें न कोई डर था और न ही सीमाएं। मां के समर्थन से आशा ने साइकिल चलाने को न सिर्फ अपनाया, बल्कि इसे महिला सशक्तिकरण का माध्यम बना दिया।

50,000 किमी की दूरी साइकिल चलाई
आज आशा मालवीय ने दो साल में लगभग 50,000 किमी की दूरी साइकिल से तय की है। हाल ही में उन्होंने कन्याकुमारी से सियाचिन और फिर सियाचिन से उमंगला दर्रा तक 17,500 किमी साइकिल चलाई, जो एक अद्भुत उपलब्धि है।

मेरा काम लोगों के लिए प्रेरणा
विश्व साइकिल दिवस के मौके पर जब हरिभूमि ने उन्हें चुना, तो उन्होंने मुस्कराते हुए कहा,"शायद मेरा ये काम मेरे गांव के लिए प्रेरणा बने और वहां की बेटियां भी आज़ादी से जी सकें।" आशा कहती हैं कि साइकिल चलाना उनके लिए सिर्फ एक शौक नहीं रहा, ये उनका पैशन बन चुका है।

सशक्त सेना, समृद्ध भारत
इसके पहले 2023 में उन्होंने देश के 28 राज्यों की यात्रा साइकिल से की, और अब तक कुल दूरी 42,000 किमी पार कर चुकी हैं। इस बार उनके मिशन का उद्देश्य है, "सशक्त सेना, समृद्ध भारत"।

आशा की कहानी सिर्फ पैडल मारने की नहीं, बल्कि समाज की रुकावटों को तोड़कर आगे बढ़ने की है। वो हर उस लड़की के लिए उम्मीद की किरण हैं जो अपने सपनों को उड़ान देना चाहती है।

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