‘उद्घोष’ का दूसरा दिन: भोपाल जनजातीय संग्रहालय में 10 राज्यों के लोक व युद्धकला नृत्य की धूम, देखें तस्वीरें

Second day of Udghosh: Folk and martial arts dances of 10 states in Bhopal Tribal Museum, see photos
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भोपाल जनजातीय संग्रहालय में 10 राज्यों के लोक व युद्धकला नृत्य की धूम

भोपाल के मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में ‘उद्घोष’ समारोह के दूसरे दिन 10 राज्यों की सांस्कृतिक व युद्धकला नृत्य प्रस्तुतियों ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। पंजाब का गतका, मणिपुर का थांग-टा, ओडिशा का पइका नृत्य और तमिलनाडु का सिलंबम आकर्षण रहे।

मधुरिमा राजपाल, भोपाल। मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में आयोजित तीन दिवसीय ‘उद्घोष’ सांस्कृतिक समारोह के दूसरे दिन देश की सांस्कृतिक विविधता और युद्धकला की झलक देखने को मिली। देश के 10 राज्यों से आए कलाकारों ने अपनी शानदार प्रस्तुतियों से दर्शकों को रोमांचित कर दिया।

कार्यक्रम में पंजाब का गतका, मणिपुर का थांग-टा, सागर का अखाड़ा नृत्य, ओडिशा का पइका नृत्य, उत्तरप्रदेश का पाई डंडा नृत्य और तमिलनाडु का सिलंबम विशेष आकर्षण का केंद्र रहे। इन नृत्यों में जहां लोक जीवन की झलक देखने को मिली, वहीं परंपरागत मार्शल आर्ट और युद्धकला कौशल का भी शानदार प्रदर्शन किया गया।


पंजाब का गतका: सिख युद्धकला का शानदार प्रदर्शन

“सवा लाख से एक लड़ाऊं, चिड़ियन ते मैं बाज तुड़ाऊं, तबै गुरु गोबिंद सिंह नाम कहाऊं...” सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह की ये पंक्तियां गतका नृत्य के दौरान गूंजीं, जो सिख युद्धकला का प्रतीक है। पगड़ी पहने, हाथों में तलवार लिए सिख युवाओं ने गतका के माध्यम से अपनी शक्ति, साहस और कौशल का प्रदर्शन किया।

इस प्रस्तुति में तलवारों और ढालों के साथ किए गए करतबों ने दर्शकों को रोमांचित कर दिया। गतका, जो सिख समुदाय की आत्मरक्षा और युद्ध कौशल की कला है, ने दर्शकों को संकट के समय दीन-दुखियों की रक्षा के गुरु गोबिंद सिंह के संदेश को जीवंत रूप में प्रस्तुत किया।


मणिपुर का थांग-टा: प्राचीन मार्शल आर्ट की अनूठी प्रस्तुति

मणिपुर से आए मुतुम लोम्बूचा सिंह और उनकी टीम ने थांग-टा की शानदार प्रस्तुति दी। यह मणिपुर का प्राचीन मार्शल आर्ट है, जिसमें तलवार और भाले का उपयोग होता है। इस नृत्य में गति, संतुलन और लय का समन्वय देखते ही बनता था। थांग-टा ने मणिपुरी संस्कृति की समृद्ध परंपरा और युद्ध कौशल को जीवंत कर दिया। दर्शकों ने इस प्रस्तुति को खूब सराहा और तालियों की गड़गड़ाहट से स्वागत किया।


पाई डंडा और सिलंबम: बुंदेलखंड और तमिलनाडु की सांस्कृतिक झलक

उत्तरप्रदेश के महोबा से आई टीम ने ‘पाई’ डंडा नृत्य प्रस्तुत कर बुंदेलखंड की लोक परंपरा को जीवंत किया। डंडों के साथ नाचते और करतब दिखाते युवाओं की हर प्रस्तुति पर दर्शकों ने तालियां बजाकर उनका उत्साह बढ़ाया। वहीं, तमिलनाडु की टीम ने सिलंबम नृत्य प्रस्तुत किया, जिसमें लाठी और युद्ध तकनीकों का उपयोग कर गति और लय का अनूठा संगम देखने को मिला। सिलंबम ने तमिलनाडु की प्राचीन युद्धकला को प्रभावी ढंग से दर्शाया।


सागर का अखाड़ा और उड़ीसा का पइका नृत्य: शौर्य और पराक्रम का प्रदर्शन

सागर की टीम ने अखाड़ा नृत्य की प्रस्तुति दी, जिसमें एक-दूसरे को पटकनी देते हुए और अस्त्र-शस्त्रों का उपयोग करते हुए युवाओं ने शौर्य और पराक्रम का प्रदर्शन किया। यह प्रस्तुति दर्शकों के लिए रोमांचकारी थी। वहीं, उड़ीसा के पइका नृत्य ने वहां की युद्धकला और सांस्कृतिक परंपराओं को उजागर किया। इन प्रस्तुतियों ने दर्शकों को भारत की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक समृद्धि से रूबरू कराया।


सांस्कृतिक एकता का प्रतीक बना उद्घोष

‘उद्घोष’ समारोह ने भारत की सांस्कृतिक विविधता को एक मंच पर लाकर देश की एकता और अनेकता को दर्शाया। विभिन्न राज्यों की इन प्रस्तुतियों ने दर्शकों को न केवल मनोरंजन प्रदान किया, बल्कि भारतीय मार्शल आर्ट और लोक नृत्यों की समृद्ध परंपरा से भी परिचित कराया। यह आयोजन सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने और अगली पीढ़ी तक पहुंचाने का एक अनूठा प्रयास साबित हुआ।

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