पन्ना दुष्कर्म केस: नाबालिग को 'दुष्कर्मी' के घर भेजा, CWC अध्यक्ष समेत 10 पर FIR, कई अधिकारी भी फंसे

पन्ना दुष्कर्म केस: नाबालिग को 'दुष्कर्मी' के घर भेजा, CWC अध्यक्ष समेत 10 के खिलाफ FIR
Panna minor Dushkarm Case: मध्य प्रदेश के पन्ना जिले में नाबालिग से रेप के मामले में गंभीर लापरवाही सामने आई है। छतरपुर पुलिस ने सख्त एक्शन लेते हुए महिला बाल विकास अधिकारी, बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष-सदस्य, वन स्टॉप सेंटर के कर्मचारी समेत एक अन्य महिला के खिलाफ POCSO एक्ट, SC/ST एक्ट और BNS की धाराओं के तहत केस दर्ज किया है।
गंभीर लापरवाही
पुलिस के मुताबिक, बाल कल्याण समिति (CWC) ने नियमों को दरकिनार कर बलात्कार पीड़िता को परिजनों के सुपुर्द करने की बजाय के आरोपी के हवाले कर दिया। जिस कारण उसे दोबारा यौन शोषण का शिकार होना पड़ा। मामला उजागर हुआ तो न सिर्फ आरोपियों के खिलाफ एफआईआर हुई, बल्कि नाबालिग को पुन: वन स्टाप सेंटर भेजा गया।
किन-किन पर केस दर्ज हुआ?
बाल कल्याण समिति के सदस्य भानुप्रताप जड़िया, अंजली भदौरिया, आशीष बोस, सुदीप श्रीवास्तव और प्रमोद कुमार सिंह के खिलाफ POCSO एक्ट की धारा-17 के तहत केस दर्ज किया गया है। जबकि, वन स्टॉप सेंटर के की प्रशासक कविता पांडे, काउंसलर प्रियंका सिंह, केस वर्कर शिवानी शर्मा और महिला एवं बाल विकास अधिकारी अवधेश सिंह पर POCSO एक्ट की धारा 21, SC/ST एक्ट की धारा 4, BNS की धारा 199 और 239 का प्रकरण बनाया गया है। इसके अलावा अन्य महिला अंजली कुशवाहा के खिलाफ किशोर न्याय अधिनियम की धारा 82 के तहत केस फाइल हुआ है।
मामला कब और कैसे शुरू हुआ?
पन्ना जिले की 15 वर्षीय लड़की 16 जनवरी 2025 को स्कूल के लिए निकली, लेकिन लौटकर नहीं आई। 17 फरवरी 2025 को पुलिस ने उसे गुरुग्राम (हरियाणा) से बरामद किया। आरोपी के खिलाफ POCSO एक्ट का केस दर्ज कर उसे जेल भेज दिया। नाबालिग को बाल कल्याण समिति के समक्ष प्रस्तुत किया गया, जहां से उसे वन स्टॉप सेंटर भेजा गया।
गलत फैसला से दोबारा हुआ शोषण
CWC ने 29 मार्च 2025 को बिना सोशल इन्वेस्टिगेशन रिपोर्ट के नाबालिग को उसी आरोपी के घर भेज दिया। जो उसे भागकर ले गया था। बाद में कलेक्टर के हस्तक्षेप पर 29 अप्रैल को उसे दोबारा वन स्टॉप सेंटर भेजा गया। नाबालिग ने बताया कि इस दौरान उसके साथ कई बार बलात्कार हुआ है।
कैसे सामने आई पूरी सच्चाई?
छतरपुर एसपी अगम जैन के निर्देश पर एसडीओपी लवकुशनगर और थाना प्रभारी जुझारनगर ने मामले की जांच शुरू की। जांच में खुलासा हुआ कि CWC और महिला बाल विकास विभाग ने नियमों को ताक पर रखकर नाबालिग की सुरक्षा से खिलवाड़ किया। जिला कार्यक्रम अधिकारी ने भी FIR दर्ज कराने के बजाय मामले को दबाने की कोशिश की।
सोशल इन्वेस्टिगेशन रिपोर्ट क्यों ज़रूरी?
नियमों के अनुसार, बाल कल्याण समिति को कोई भी निर्णय लेने से पहले महिला बाल विकास विभाग से ‘सोशल इन्वेस्टिगेशन रिपोर्ट’ लेना जरूरी होता है। ताकि, बच्चे को जिस घर में भेजा जा रहा है, वहां उसकी सुरक्षा बनी रहे। इस मामले में न तो रिपोर्ट ली गई और न ही जांच की गई। लिहाजा, नाबालिग को दोबारा यौन शोषण का शिकार होना पड़ा।
