भारत भवन में कलावार्ता: 22 दिन में खजुराहो में तैयार हुआ था आदिवर्त संग्रहालय; जानें कौन क्या कहा

भोपाल: भारत भवन में शुक्रवार को आयोजित कलावार्ता श्रृंखला में पद्मश्री कलाकार हरचंदन सिंह भट्टी की कला यात्रा पर विस्तार से चर्चा की गई। मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित सिरेमिक आर्टिस्ट शंपा शाह ने कहा कि भट्टी जी असंभव को संभव करने वाले व्यक्तित्व थे। वर्ष 2011 में जब जनजातीय संग्रहालय बनाने की शुरुआत हुई, तब सिर्फ एक इमारत थी, लेकिन भट्टी जी ने उसे कला के मंदिर में बदल दिया।
1 हजार से अधिक कलाकारों ने 2 वर्ष में किया काम
शंपा शाह ने कहा कि मुझे जब इस संग्रहालय के निर्माण से जोड़ा गया तब में मानव संग्रहालय में काम करती थी। यह कार्य भी मेरे लिए कठिन था लेकिन भट्टी जी के साथ मिलकर इस कार्य को मूर्त रूप दिया गया। उन्होंने कहा कि संग्रहालय निर्माण के समय खाली पड़ी दीर्घाओं को किस तरह से जनजातीय कला बोध और देवलोक, संस्कृति से परिष्कृत किया जाए इस पर मंथन हुआ। इसके बाद भट्टी जी ने 1 हजार से अधिक लोक कलाकारों, आधुनिक कलाकारों की टीम तैयार की और महज 2 वर्षों में इस संग्रहालय को आकार दिया गया।

1992 से 2011 तक का लंबा कार्य रहा है भट्टी जी का
इस अवसर पर राहुल रस्तोगी ने कहा कि मैने वर्ष 1984 में आदिवासी बोली विकास कला अकादमी को ज्वाइन किया। जब तक अकादमी में कोई सक्रिय गतिविधियां नहीं थी। वर्ष 1986 में पहली बार हमने जनजातीय कलाओं पर केंद्रित लोकरंग समारोह की परिकल्पना की और इसे शुरू किया। उसके बाद भट्टी जी के साथ मिलकर उसे विस्तारित किया गया। उन्होंने कहा कि भट्टी जी के साथ 1990 में कार्य करना आरंभ किया।

भट्टी जी ने 1992 से 2011 तक एक जनजातीय कलाओं पर कार्य करने की एक यात्रा रही है । उन्होंने कहा कि पहली बार सूरजकुंड में बनाया गया मुख्यद्वार भट्टी जी द्वारा तैयार की गई पहली कृति थी जो आज भी अपनी खूबसूरती के लिए जानी जाती है। उन्होंने बताया कि वर्ष 1999 में खजुराहो में आदिवर्त संग्रहालय का मूल रूप महज 22 दिन में भट्टी जी के साथ मिलकर तैयार किया गया था। कार्यक्रम के अगले क्रम में सिरेमिक कलाकार देवीलाल पाटीदार ने भी भारत भवन में भट्टी जी के साथ किए गए कार्यों के अनुभवों को साझा किया।
