'छड़ी पड़े छमाछम, विद्या आए धमाधम': हाईकोर्ट ने क्यों यह कहते हुए प्राचार्य और शिक्षकों पर दर्ज FIR को किया निरस्त

Gwalior High Court
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हाईकोर्ट ने प्राचार्य और शिक्षकों को सभी आरोपों से मुक्त कर दिया।
ग्वालियर हाईकोर्ट ने टेकनपुर के विवेकानंद स्कूल के प्राचार्य और शिक्षकों के खिलाफ धारा 306 के केस को निरस्त करते हुए कहा कि छड़ी पड़े छमाछम, विद्या आए धमाधम...स्कूल और गुरुकुल में इस तरह का शारीरिक दंड बच्चे में सुधार का तरीका था।

ग्वालियर। हाईकोर्ट की एकल पीठ ने टेकनपुर के विवेकानंद स्कूल के प्राचार्य और शिक्षकों के खिलाफ धारा 306 के केस को निरस्त करते हुए कहा कि छड़ी पड़े छमाछम, विद्या आए धमाधम...स्कूल और गुरुकुल में इस तरह का शारीरिक दंड बच्चे में सुधार का तरीका था। शिक्षक इस तरीकों को सुधार एक मात्र तरीका मानते थे। आज समय के साथ तरीके और कई चीजें बदली हैं। किशोर न्याय अधिनियम 2015 ने शारीरिक दंड पर रोक लगा दी है। मृतक बच्चे के परिवार को पीड़ा हुई है, लेकिन इस पीड़ा के बदले में दूसरों को दंडित नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने प्राचार्य और शिक्षकों को सभी आरोपों से मुक्त कर दिया। जस्टिस आनंद पाठक ने यह आदेश दिया है।

छात्र ने दोस्तों के साथ बाथरूम में पटाखा चला दिया
4 नवंबर 2022 को बिलौआ थाने में विवेकानंद स्कूल के प्राचार्य वीरेंद्र सिंह, उप प्राचार्य शंभूनाथ, शिक्षक शिल्पी सोलंकी पर 12वीं छात्र को आत्महत्या के लिए प्रेरित करने का केस दर्ज हुआ था। तीनों पर आरोप था कि छात्र को प्रताड़ित किया, जिसके चलते उसने आत्महत्या कर ली। हाईकोर्ट में प्राचार्य, उप प्राचार्य, शिक्षक की ओर से तर्क दिया कि मृतक छात्र काफी शरारती था। वह स्कूल में पटाखा लेकर आया और दोस्तों के साथ बाथरूम में पटाखा चला दिया। जिससे दीवार चटक गई।

इसलिए केस चलने लायक नहीं
शिक्षकों ने छात्र को बुलाकर कहा कि अपने माता-पिता को लेकर आएं, वह स्कूल में क्या शरारत करता है, उससे अवगत कराया जाएगा। सिर्फ इतनी सी बात छात्र से कही थी। सीसीटीवी फुटेज भी पेश किए। कोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ ऐसा कोई आरोप नहीं दिख रहा है, जिससे छात्र आत्महत्या जैसा कदम उठा सके। इसलिए केस चलने लायक नहीं है।

केस में तीनों में एक भी बात शामिल नहीं
हाईकोर्ट ने कहा कि आत्महत्या के लिए उकसाना, व्यक्ति को आत्महत्या के लिए प्रेरित करने की साजिश, जानबूझकर किसी कार्य या चूक के लिए आत्महत्या में सहायता करना। इस केस में तीनों बातों में एक भी बात शामिल नहीं है। इसलिए केस में जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। IPC में उकसाने वाले शब्द को परिभाषित नहीं किया है। दोषी ठहराने के लिए प्रत्यक्ष और सक्रिय भागीदारी आवश्यक है।

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