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Suresh Pachuri Interview: वरिष्ठ नेता सुरेश पचौरी ने क्यों छोड़ी कांग्रेस? भाजपा का क्यों थामा दामन? प्रधान संपादक डॉ. हिमांशु द्विवेदी से हुई खास बातचीत में पचौरी ने किए खुलासे। देखें वीडियो

Suresh Pachuri Interview: कांग्रेस के पूर्व वरिष्ठ नेता और साढ़े 4 दशक तक कांग्रेस की पहचान बने सुरेश पचौरी ने पिछले दिनों भाजपा का दामन थाम लिया था। वे 1972 से राजनीति में सक्रिय हैं। उनकी सबसे बड़ी खास बात यह भी है कि वे बिना चुनाव जीते भी देश के दो-दो बार केंद्रीय मंत्री बने। वे 2007 में मप्र कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष भी बने। वरिष्ठ नेता सुरेश पचौरी ने कहा की वे भाजपा को मध्य प्रदेश की सभी 29 सीटों पर विजयी देखना चाहते हैं और देश में बीजेपी को 400 पार। इसके अलावा उन्होंने कहा कि मैं आज महसूस कर रहा हूं कि कांग्रेस पार्टी उस विचारधारा से भटक गई है। ये जो फैसला मैंने लिया, वह किसी अवसरवादिता से नहीं लिया।

पढ़िए सुरेश पचौरी से  ‘हरिभूमि’ और ‘आईएनएच’ न्यूज चैनल के प्रधान संपादक डॉ. हिमांशु द्विवेदी की खास बातचीत के प्रमुख अंश... 

सवाल:  कांग्रेस में आपके साथ ऐसा क्या हुआ, जो आपको भाजपा जॉइन करने पर मजबूर कर दिया? 
जवाब:
मैंने जब राजनीति में प्रवेश किया तो मेरा ध्येय था देश और समाजसेवा का। इसके लिए मैंने उस समय माना कि कांग्रेस पार्टी एक उपयुक्त पार्टी है। क्योंकि पंडित जवाहर लाल नेहरू, श्रीमती इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की थिंकिंग थी कि देश अवसरवादी नहीं, बल्कि समाजसेवा के साथ आगे बढ़े। मेरी राजनीति की शुरूआत 1972 में ब्लॉक कांग्रेस अध्यक्ष के रूप से हुई थी। इस राजनैतिक यात्रा में संघर्ष मेरी कार्यशैली रही है। मैं जिस उद्देश्य से कांग्रेस पार्टी में काम कर रहा था, उसमें मैं आज महसूस कर रहा हूं कि कांग्रेस पार्टी उस विचारधारा से भटक गई है। ये जो फैसला मैंने लिया, वह किसी अवसरवाद का नहीं है। 2007 में कांग्रेस कमेटी का प्रदेशाध्यक्ष बना। इसके बाद 2010 से मुझे धैर्य रखने के लिए कह दिया गया। जबकि मैं चैन से नहीं बैठ सकता था, इसलिए मैंने यह कदम उठाया। पार्टी को मेरे अनुभवों का लाभ लेना चाहिए था।   

सवाल:  आप नेहरू, इंदिरा और राजीव की नीतियों से प्रभावित थे, लेकिन उसे भाजपा देश के लिए ठीक नहीं बताती है। फिर उनके साथ शामिल होने की वजह?
जवाब:
सवाल किसी एक फैसले का नहीं है। सवाल कांग्रेस कौन से राजनैतिक और सामाजिक फैसले ले रही है? धर्म के मामले में कांग्रेस क्या फैसले ले रही है? जब राममंदिर प्राण-प्रतिष्ठा की बात आई तो उन्होंने निमंत्रण पत्र को ठुकराया। दूसरा, कांग्रेस के दौर में मंदिर का ताला खुला। मंदिर का शिलान्यास भी राजीव गांधी के समय हुआ। इसके बाद कांग्रेस ने फैसला लिया कि जो सुप्रीम कोर्ट या दोनों पक्षों की सहमति से होगा, वह हमें मान्य होगा। जब सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया तो उसने स्वागत किया, लेकिन प्राण प्रतिष्ठा से दूर बनाई। जबकि मैंने उसी समय पार्टी नेतृत्व से कहा था कि यह राजीव गांधी का स्टैंड रहा है, इसलिए निर्णय पर पुनर्विचार करना चाहिए। 

सवाल: कांग्रेस पार्टी छोड़ने की मुख्य वजह? पार्टी की नीतियों के भटकाव या नेताओं के व्यवहार के कारण? 
जवाब:
पार्टी छोड़ने के कारणों में यह दोनों चीजें शामिल हैं। नीति और विचारधारा से कांग्रेस पार्टी भटक गई, ये एक कारण। दूसरा, जो अभी और इसके पूर्व में प्रदेश का नेतृत्व कर रहे थे, उनका व्यवहार हमारे साथ षड़यंत्रकारी रहा। मैं 2010 से इस षड़यंत्र का शिकार हो रहा हूं और बोलते हैं कि आप धैर्य रखिए, तो मैं कब तक धैर्य रखूं। मैं भी इंसान हूं। भावुक हूं और काम करने वाला व्यक्ति हूं। आप मुझे कब तक धैर्य रखने की बात करते रहेंगे। मैं कब तक आहत होता रहूंगा। कमलनाथ के लिए दरवाजे क्यों नहीं खुले, यह एक राज है और इसे राज ही रहने दीजिए। इसकी खोज आप ही कीजिए।   

सवाल: आप जब आहत थे, दुखी थे तो इस दुखी मन की आवाज को भाजपा के किस नेता ने सुना? 
जवाब:
मैं स्पष्ट कर दूं कि जब मेरे साथ ये दुर्व्यवहार हो रहा था, तो मुझे भाजपा में प्रवेश की कोशिश 2014 से हो रही थी। 2014 में नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने तो मुझे प्रदेश की या देश की भाजपा लीडरशिप प्रभावित कर रही थी, लेकिन मैं धैर्य रखना चाहता था। इसके पूर्व 2009 में मुझे लोकसभा टिकट की मनाही हुई तो तत्कालीन प्रदेश की भाजपा की लीडरशिप द्वारा डायरेक्ट संपर्क किया गया था। जब धैर्य की सीमा टूट गई, तो मेरे पास इसके बिना कोई चारा नहीं बचा था। क्योंकि मैं कोई ऐसा व्यक्ति नहीं हूं कि चुपचाप घर बैठ जाऊं। मुझे भाजपा में प्रवेश कराने की पहल दिल्ली से हुई। इसके बाद सम्मानजनक ढंग से मेरी ज्वानिंग हुई। अभी तक जो मेरे साथ इनका व्यवहार है, वह बहुत सम्मानजनक लग रहा है।

सवाल: अब आगे सुरेश पचौरी क्या देख रहे हैं। कहां का राज्यपाल या राज्यसभा सदस्य?
जवाब:
लगता है आप ट्रेक से बाहर जा रहे हैं। सुरेश पचौरी को कभी पद की लालसा नहीं रही। ना कांग्रेस में मैंने कभी कुछ मांगा और ना यहां मांगने की इच्छा है। सवाल इस बात का है कि मैं साधारण कार्यकर्ता के रूप में अपने आपको व्यस्त रखना चाहता हूं। अभी भाजपा में मेरी उम्र एक महीने की भी नहीं हुई, तो मुझे गलत फहमी नहीं पालना चाहिए। जीतू पटवारी को अपनी पार्टी की चिंता करना चाहिए बजाए इसके कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ गए लोगों की कि कुछ को छोड़कर बाकी कहां गायब हो गए। ठीक है जिसको जो कहना है कहे, मैं हल्की भाषा का इस्तेमाल नहीं करना चाहता हूं।   

सवाल: लोकसभा चुनाव में आप क्या देख रहे हैं? क्या परिणाम आएंगे? 
जवाब:
वैसे इस बार के लोकसभा चुनाव में प्राथमिकता बदली हुई है। प्राथमिकता है कि देश का परिदृश्य क्या होगा और देश की बागडोर किसके हाथों में सौंपी जाए? तो लोग इस नतीजे पर पहुंचे कि देश आत्मनिर्भर भारत आगे बढ़े। भारत सुरक्षित रहे। गरीबों का हित और हो। नारी की सुरक्षा हो। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का नाम और आगे बढ़े। भारतीय संस्कृति की रक्षा हो। इसके लिए अगर कोई उपयुक्त नेता है, तो उसका नाम नरेंद्र मोदी है। दूसरी बात है पार्टी की। 10 साल से लोग भाजपा को काम करते हुए देख रहे हैं। जिसने असरदार, दमदार और जानदार तरीके से काम किया है और उपलब्धियां हांसिल कीं। वहीं दूसरी तरफ है कांग्रेस पार्टी। जिनकी गठबंधन में शामिल पार्टियों में सीट बंटवारे को लेकर लड़ाई चल रही है। उनका भगवान श्रीराम के मामले में मतव्य ठीक नहीं है। डीएमके के नेता भगवान श्रीराम पर टिप्पणी कर रहे हैं। सपा ने कारसेवकों पर गोलियां चलवाईं। मैं भाजपा को प्रदेश की सभी सीटों पर विजयी देखना चाहता हूं और देश में 400 पार।

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