MP के दो पैरालिंपियन लौटाएंगे अर्जुन अवॉर्ड, सरकार पर वादाखिलाफी का आरोप; जानें मामला

MP Paralympian: Kapil Parmar and Prachi Yadav
mp news: मध्यप्रदेश के दो पैरा ओलिंपिक खिलाड़ी, जिन्होंने प्रदेश और देश का नाम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रोशन किया, अब सरकारी उपेक्षा से परेशान होकर अर्जुन अवॉर्ड लौटाने का फैसला कर चुके हैं। पैरालिंपियन कपिल परमार और प्राची यादव का कहना है कि प्रदेश सरकार ने उन्हें सरकारी नौकरी और आर्थिक मदद का वादा किया था, लेकिन यह वादा एक साल बाद भी अधूरा है। दोनों खिलाड़ियों का आरोप है कि वे लगातार मंत्री और अफसरों के चक्कर लगा रहे हैं, लेकिन सिर्फ आश्वासन ही मिल रहा है।
कपिल परमार का छलका दर्द
कपिल परमार, जिन्होंने पेरिस पैरालिंपिक 2024 में ब्रॉन्ज मेडल जीता था, बताते हैं कि उन्हें अर्जुन अवॉर्ड मिलने पर गर्व था, लेकिन अब हालात ऐसे हैं कि वे इसे लौटाने को मजबूर हैं। कपिल कहते हैं,“सरकार ने एक करोड़ रुपये और गैजेटेड ऑफिसर की नौकरी देने का वादा किया था। एक साल बाद भी कुछ नहीं मिला। नौकरी के चक्कर में मेरी प्रैक्टिस बर्बाद हो रही है।”
उन्होंने बताया कि अगर OGQ (Olympic Gold Quest) और TOPS (Target Olympic Podium Scheme) जैसी संस्थाओं का साथ नहीं होता, तो वे आज खेल छोड़ चुके होते।
आंख का इलाज तक खुद कराया
प्राची यादव, जिन्होंने पैरा ओलिंपिक 2022 में गोल्ड मेडल जीता था और विक्रम अवॉर्ड व अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित हुईं, उन्होंने भी आरोप लगाए। प्राची कहती हैं- पेरिस में रेस के दौरान मेरी आंख का कार्निया ब्लास्ट हो गया था। इलाज के लिए सरकार से मदद मांगी, लेकिन कोई सहयोग नहीं मिला। अपनी जेब से इलाज कराया।
उन्होंने बताया कि सरकार ने उन्हें एक करोड़ रुपये और नौकरी देने का वादा किया था। पीडब्ल्यूडी में क्लर्क की नौकरी ऑफर की गई थी, लेकिन उन्होंने इसे ठुकराकर बेहतर पद की मांग की थी। सरकार ने आश्वासन तो दिया, लेकिन आज तक अमल नहीं किया।
सरकारी वादाखिलाफी से टूट रहा भरोसा
कपिल और प्राची का कहना है कि अन्य राज्यों के पैरालिंपिक खिलाड़ी अच्छे पदों पर कार्यरत हैं, जबकि मध्यप्रदेश में खिलाड़ियों को केवल कोरे वादे ही मिलते हैं। लगातार भोपाल में चक्कर लगाने से उनकी लॉस एंजिल्स ओलिंपिक 2028 की तैयारी प्रभावित हो रही है।
कपिल ने अपनी आर्थिक स्थिति बताते हुए कहा –“मेरे पिता ठेले पर चाय बेचते थे, मां घरों में काम करती थीं। दोस्तों और संस्थाओं की मदद से यहां तक पहुंचे। अब नौकरी के लिए भटकना पड़ रहा है।”
खेल नीति पर उठे सवाल
यह मामला केवल कपिल और प्राची का नहीं है, बल्कि उन सभी खिलाड़ियों के लिए चिंता का विषय है जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतते हैं और फिर भी सरकारी मदद के लिए तरसते हैं।
