खंडवा: पटरी पर खोए पांव, नारायण सेवा ने लौटाई उम्मीद, पढ़ें सुनील कुमार की कहानी

Sunil kumar khandwa
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खंडवा के सुनील कुमार ने रेलवे हादसे में दोनों पैर गंवा दिए थे। नारायण सेवा संस्थान ने उन्हें कृत्रिम अंग लगाकर फिर से चलने की उम्मीद दी। पढ़ें प्रेरणादायक कहानी।

MP News: रेलवे की पटरियों पर गिट्टी बिछाने और ट्रेनों की देखरेख का काम करने वाले सुनील कुमार की दुनिया एक ही झटके में बदल गई। खंडवा जिले के घाटड़ी गांव का यह 23 वर्षीय युवक, जो पिछले तीन वर्षों से एक ठेका कंपनी के साथ काम कर रहा था, कभी नहीं सोच सकता था कि उसकी जरा-सी असावधानी उसे अपंग बना देगी। सुनील कुमार ने हरिभूमि से बातचीत करते हुए अपनी पूरी कहानी बताई।

सुनील कुमार साल 2022 में एक स्टेशन पर जल्दबाजी में चलती ट्रेन से उतरते समय वह गिर पड़े। गिरते ही उनके दोनों पैर घुटनों से नीचे तक कट गए। यह हादसा न केवल सुनील के लिए बल्कि पूरे परिवार के लिए एक गहरे संकट की तरह आया। पिता दिहाड़ी मजदूर थे, मां घरेलू कामों में लगी रहती थीं, और दो छोटे भाई-बहन की पढ़ाई-लिखाई भी इसी परिवार पर निर्भर थी। गरीबी पहले से ही जीवन का हिस्सा थी, अब रोजगार का सहारा भी टूट गया।

सुनील की दुर्घटना के बाद घर की स्थिति काफी दयनीय हो गई। पिता अस्वस्थ होने के बावजूद काम की तलाश में इधर-उधर भटकते रहे। सुनील की पढ़ाई छठी क्लास तक ही सीमित रह गई थी। जीवन की राह मानो थम गई थी। लेकिन नियति ने एक नई दिशा दिखाई।

7 सितंबर को मिली नई उड़ान

सुनील ने बताया कि उन्हें मई 2025 में सोशल मीडिया से पता चला कि इंदौर में नारायण सेवा संस्थान द्वारा दिव्यांगजनों के लिए निःशुल्क कृत्रिम अंग प्रदान किए जाने वाला शिविर लगाया जा रहा है। परिचितों के सहारे सुनील वहां पहुंचे, जहां उनके कटे हुए पैरों का माप लिया गया। 7 सितम्बर को आयोजित शिविर में उन्हें नए कृत्रिम पांव लगाए गए। यह सिर्फ कृत्रिम अंग नहीं था। यह उनके जीवन की वापसी थी। अब वे फिर से चल सकते हैं, अपने परिवार का सहारा बन सकते हैं, और भविष्य के लिए आशा बुन सकते हैं।

सुनील भावुक होकर कहते हैं “जीवन में अचानक आया अंधकार इस संस्थान ने दूर कर दिया। अब मैं नए सिरे से भविष्य का ताना-बाना बुन सकूंगा। यह उपकार मैं कभी नहीं भूलूंगा।” यह कहानी केवल एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि उन असंख्य परिवारों की है जो विपरीत परिस्थितियों में भी उम्मीद की किरण खोजते हैं। नारायण सेवा संस्थान ने सुनील को केवल चलने की ताकत नहीं दी, बल्कि उनके जीवन में आत्मनिर्भरता और आत्मविश्वास की लौ फिर से जला दी।

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