'Pride' शब्द को लेकर विवाद: इंदौर की कंपनी के सामने नहीं टिक पाई विदेश कंपनी; कोर्ट ने कहा- 'प्राइड' शब्द किसी की संपत्ति नहीं

Blenders Pride vs London Pride Case
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सुप्रीम कोर्ट।

Blenders Pride vs London Pride Case: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 'Pride' शब्द किसी एक कंपनी का नहीं है। जेके एंटरप्राइजेज की लंदन प्राइड ने 5 साल लंबी कानूनी लड़ाई जीतकर वैश्विक दिग्गज पर्नो रिकर्ड पर बड़ी जीत दर्ज की।

Blenders Pride vs London Pride Case: इंदौर की स्थानीय डिस्टिलरी जेके एंटरप्राइजेज ने वैश्विक शराब कंपनी पर्नो रिकर्ड (Blenders Pride निर्माता) के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में बड़ी जीत हासिल की है। यह फैसला भारतीय उद्यमशीलता की ताकत और आत्मनिर्भरता का प्रतीक बन गया है।

विवाद की शुरुआत

पर्नो रिकर्ड (Pernod Ricard) ने 2020 में इंदौर जिला न्यायालय में मुकदमा दायर किया था, जिसमें आरोप लगाया गया कि लंदन प्राइड नाम उसके लोकप्रिय ब्रांड ब्लेंडर्स प्राइड के ट्रेडमार्क का उल्लंघन करता है। कंपनी चाहती थी कि लंदन प्राइड को बाजार से हटा दिया जाए।

निचली अदालत से सुप्रीम कोर्ट तक की लड़ाई

  • इंदौर जिला न्यायालय ने जेके एंटरप्राइजेज के पक्ष में फैसला दिया।
  • इसके बाद पर्नो रिकर्ड ने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय का रुख किया, लेकिन वहां भी हार मिली।
  • अंत में कंपनी सुप्रीम कोर्ट गई, जहां 14 अगस्त 2025 को फैसला आया और उच्च न्यायालय का निर्णय बरकरार रखा गया।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला

सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने साफ कहा कि 'Pride' शब्द किसी एक कंपनी की संपत्ति नहीं है। लंदन प्राइड, ब्लेंडर्स प्राइड के ट्रेडमार्क का उल्लंघन नहीं करता और इसे स्वतंत्र रूप से इस्तेमाल किया जा सकता है।

जेके एंटरप्राइजेज की प्रतिक्रिया

कंपनी की निदेशक सलोनी छाबड़ा ने कहा, "यह केवल हमारी नहीं, बल्कि हर भारतीय उद्यमी की जीत है। हमने एक वैश्विक महाशक्ति के खिलाफ मजबूती से खड़े होकर साबित किया कि स्थानीय ब्रांड भी न्याय पा सकते हैं। यह फैसला आने वाले समय में अन्य भारतीय निर्माताओं को भी हिम्मत देगा।''


क्यों अहम है यह फैसला?

  • भारतीय ब्रांड्स को ग्लोबल कंपनियों के दबाव से राहत मिलेगी।
  • 'प्राइड' जैसे सामान्य शब्दों पर किसी का एकाधिकार नहीं रहेगा।
  • स्थानीय निर्माता आत्मविश्वास के साथ अपने ब्रांड बना और बचा सकेंगे।
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