MP News: क्या फर्जी कोर्ट आदेश से आईएएस बने संतोष वर्मा? टाइपिस्ट की गिरफ्तारी से उठा सवाल

IAS संतोष वर्मा की पदोन्नति पर सवाल, फर्जी कोर्ट आदेश टाइप करने के आरोप में टाइपिस्ट गिरफ्तार।
भोपाल (एपी सिंह)। आईएएस अफसर संतोष वर्मा की पदोन्नति एक बार फिर गंभीर विवादों में घिर गई है। यह मामला एक कथित फर्जी अदालत आदेश से जुड़ा है, जिसके आधार पर राज्य प्रशासनिक सेवा (एसएएस) के अधिकारी रहे संतोष वर्मा को भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) में पदोन्नति मिली थी। अब इस प्रकरण में अदालत के एक टाइपिस्ट की गिरफ्तारी ने पूरे मामले को और संदिग्ध बना दिया है। 19 दिसंबर को पुलिस ने नीतू सिंह चौहान नामक कोर्ट टाइपिस्ट को गिरफ्तार किया है, जिस पर आरोप है कि उसने वह फर्जी आदेश टाइप किया था, जिसका फायदा संतोष वर्मा को पदोन्नति में मिला। पूछताछ के दौरान सामने आए तथ्यों के बाद पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर अदालत में पेश किया जहां से उसे रिमांड पुलिस को रिमांड पर दे दिया गया है।
आदेश की मूल हस्ताक्षरित प्रति आखिर है कहां
उससे पूछताछ में पुलिस अब यह जानने का प्रयास कर रही है कि फर्जी आदेश किस तरह तैयार किया गया, उसकी प्रतियां कैसे बनीं और सबसे अहम सवाल-उस आदेश की मूल हस्ताक्षरित प्रति आखिर है कहां। नीतू सिंह चौहान उस समय विशेष न्यायाधीश विजेंद्र रावत की अदालत में टाइपिस्ट के रूप में पदस्थ था, जब यह कथित फर्जी आदेश तैयार किया गया। वर्तमान में वह इंदौर की फैमिली कोर्ट में तैनात है। पुलिस और जांच एजेंसियों का कहना है कि जिस आदेश के आधार पर संतोष वर्मा को आईएएस के रूप में प्रमोशन मिला, वह अदालत के आधिकारिक रिकॉर्ड में कभी मौजूद ही नहीं था। इस मामले की जांच के लिए गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) ने वर्ष 2021 में कई अहम सबूत जब्त किए थे।
एसआईटी ने 2021 में जब्त किए थे कई अहम सबूत
पुलिस द्वारा जब्त सबूतों में तत्कालीन विशेष न्यायाधीश के कंप्यूटर सिस्टम और एक पेन ड्राइव शामिल थी। इन डिजिटल उपकरणों से दो अलग-अलग फैसलों की सॉफ्ट कॉपी मिली, जिससे यह संकेत मिला कि दस्तावेजों के साथ छेड़छाड़ की गई थी। हालांकि, चार साल बीत जाने के बावजूद उस फैसले की मूल हार्ड कॉपी, जिस पर न्यायाधीश के हस्ताक्षर होने चाहिए थे, अब तक बरामद नहीं हो सकी है। एसीपी कोतवाली विनोद दीक्षित के अनुसार तकनीकी जांच और प्रारंभिक पड़ताल से यह स्पष्ट हो चुका है कि फर्जी आदेश नीतू सिंह चौहान द्वारा ही टाइप किया गया था। इस गिरफ्तारी के बाद संतोष वर्मा की भूमिका, उनकी पदोन्नति की वैधता और पूरे प्रशासनिक तंत्र पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।
