छिंदवाड़ा सिरप कांड: दिग्विजय सिंह ने बीजेपी पर लगाए गंभीर आरोप, उपमुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ला से मांगा इस्तीफा

छिंदवाड़ा सिरप कांड: दिग्विजय सिंह ने शनिवार को भोपाल में अपने निवास पर प्रेस कांफ्रेंस आयोजित की।
भोपाल। मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में जहरीले कोल्ड्रिफ कफ सिरप से 26 मासूम बच्चों की मौत के बाद राज्य की राजनीति में भूचाल मच गया है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने इस मामले को “भ्रष्टाचार और लापरवाही का घिनौना उदाहरण” बताया है। उन्होंने भोपाल स्थित अपने निवास पर शनिवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में उप मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री राजेंद्र शुक्ला से तुरंत इस्तीफे की मांग की।
"486 गुना जहरीला सिरप बच्चों को दिया गया”
दिग्विजय सिंह ने कहा कि 2 सितंबर से अब तक परासिया क्षेत्र में कोल्ड्रिफ सिरप से 26 बच्चों की जान गई है। जांच में पाया गया कि इसमें डायथिलीन ग्लाइकोल (DEG) की मात्रा 48.6% थी, जबकि स्वीकृत सीमा सिर्फ 0.1% है यानी 486 गुना ज्यादा जहर।
उन्होंने आरोप लगाया कि “2 अक्टूबर को स्वास्थ्य मंत्री राजेंद्र शुक्ला ने इस दवा को क्लीन चिट दी थी, जबकि रिपोर्ट पहले से बताती थी कि यह जहरीली है। क्या ऐसे व्यक्ति को पद पर बने रहने का हक है?”

भ्रष्टाचार और चंदे का खेल: कांग्रेस का आरोप
पूर्व सीएम ने कहा कि भाजपा ने फार्मा कंपनियों से 945 करोड़ रुपए का चंदा इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए लिया। इनमें 35 ऐसी कंपनियां थीं, जिनकी दवाएं गुणवत्ता परीक्षण में फेल हुईं। उन्होंने इसे “चंदा दो, धंधा लो” की नीति बताया और कहा कि सत्ता व पूंजी के गठजोड़ से नकली दवाओं का कारोबार फल-फूल रहा है।
राज्य स्वास्थ्य समिति और केंद्र सरकार पर सवाल
दिग्विजय ने कहा कि राज्य स्वास्थ्य समिति (जिसके प्रमुख मुख्यमंत्री और सह-अध्यक्ष स्वास्थ्य मंत्री हैं) ने गुणवत्ता नियंत्रण की जिम्मेदारी नहीं निभाई। उन्होंने सवाल उठाए कि टेंडर प्रक्रिया में Drug Master File या European Pharmacopoeia Certificate की अनिवार्यता के बावजूद जहरीली दवा बाजार में कैसे पहुंच गई?
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जे.पी. नड्डा से भी उन्होंने तीखे सवाल पूछे-
- गाम्बिया और उज्बेकिस्तान हादसों के बाद भी DEG कंटेमिनेशन क्यों नहीं रोका गया?
- CDSCO ने सिर्फ 9% फैक्ट्रियों का निरीक्षण किया और 36% फेल पाईं, फिर कार्रवाई क्यों नहीं हुई?
- जन विश्वास अधिनियम 2023 में जेल हटाकर सिर्फ जुर्माना क्यों रखा गया?
- दवा रिकॉल में 42 दिन की देरी क्यों हुई?
- क्या फार्मा कंपनियों से मिले चंदे के बदले नियामक संस्थाओं को निष्क्रिय रखा गया?
रिपोर्टों से पुष्ट दावे
दिग्विजय सिंह ने कहा कि उनके सभी आरोप दस्तावेजों पर आधारित हैं। उन्होंने तमिलनाडु ड्रग्स कंट्रोल डिपार्टमेंट की 3 अक्टूबर 2025 की रिपोर्ट, CDSCO सर्कुलर (4 अक्टूबर), नागपुर GMC की ऑटोप्सी रिपोर्ट, और CAG ऑडिट रिपोर्ट (2023) का हवाला दिया। उनके अनुसार, यह मामला “कमीशनखोरी और सिस्टमैटिक भ्रष्टाचार” का स्पष्ट उदाहरण है।
अब आगे क्या होगा?
छिंदवाड़ा सिरप कांड ने न केवल राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोली है, बल्कि दवा नियमन और सरकारी जवाबदेही पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। अब देखना यह होगा कि कांग्रेस के आरोपों पर सरकार क्या जवाब देती है और क्या कोई जिम्मेदारी तय होती है या नहीं।
