भोपाल नगर निगम की पहल: नींबू कचरे से बनेगा बायोएंजाइम, शुद्ध होगा पानी

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भोपाल नगर निगम नींबू के कचरे से बायोएंजाइम बनाकर जलस्रोतों को शुद्ध करेगा।

भोपाल नगर निगम नींबू के कचरे से बायोएंजाइम बनाकर जलस्रोतों को शुद्ध करेगा। यह योजना कचरे के पुनर्चक्रण और पर्यावरण संरक्षण की अनूठी पहल है।

Bhopal: मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में स्वच्छता और पर्यावरण संरक्षण को नया आयाम देने के लिए नगर निगम ने एक अनूठी योजना तैयार की है। इस योजना के तहत, पूजा-पाठ और घरेलू उपयोग के बाद बेकार हो चुके नींबू के कचरे को बायोएंजाइम में बदला जाएगा।

इस बायोएंजाइम का उपयोग शहर के जलस्रोतों को साफ करने में किया जाएगा, जिससे न केवल कचरे का पुनर्चक्रण होगा, बल्कि जल प्रदूषण को कम करने में भी मदद मिलेगी।

नगर निगम के अधिकारियों के अनुसार, भोपाल में रोजाना बड़ी मात्रा में नींबू का कचरा उत्पन्न होता है, खासकर मंदिरों और धार्मिक आयोजनों में। इस कचरे को अब तक नजरअंदाज किया जाता रहा है, लेकिन अब इसे उपयोगी संसाधन में बदलने की योजना है।

नींबू के छिलकों और अन्य जैविक कचरे से बायोएंजाइम बनाया जाएगा, जो प्राकृतिक और पर्यावरण-अनुकूल तरीके से जलस्रोतों को शुद्ध करने में प्रभावी है। यह बायोएंजाइम पानी में मौजूद हानिकारक बैक्टीरिया और प्रदूषकों को कम करने में मदद करता है।

इस पहल के तहत, नगर निगम शहर के विभिन्न वार्डों में नींबू कचरा एकत्रित करने के लिए विशेष केंद्र स्थापित करेगा। साथ ही, स्थानीय समुदायों और स्वयंसेवी संगठनों को इस अभियान से जोड़ा जाएगा। नगर निगम का दावा है कि यह योजना न केवल पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देगी, बल्कि शहरवासियों में स्वच्छता के प्रति जागरूकता भी पैदा करेगी।

इसके अलावा, यह पहल भोपाल को स्वच्छ और हरित शहर बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकती है। विशेषज्ञों का मानना है कि बायोएंजाइम का उपयोग नदियों, तालाबों और अन्य जलस्रोतों की गुणवत्ता सुधारने में कारगर होगा। शहरवासियों ने इस पहल का स्वागत किया है और इसे पर्यावरण के लिए एक सकारात्मक कदम बताया है।

बायोएंजाइम क्या है?

बायोएंजाइम (Bio-Enzyme) एक प्राकृतिक तरल पदार्थ होता है, जिसे फलों, सब्जियों या फूलों के छिलकों (जैसे नींबू, संतरा, अनार, केला आदि), गुड़/चीनी और पानी को मिलाकर फर्मेंटेशन (खमीर उठने की प्रक्रिया) से तैयार किया जाता है।

बायोएंजाइम कैसे बनता है?

  • 3 भाग जैविक कचरा (छिलके, सब्जी-फल का कचरा)
  • 1 भाग गुड़ या ब्राउन शुगर
  • 10 भाग पानी

इन्हें एक कंटेनर में मिलाकर 3–6 महीने तक रखा जाता है। इस दौरान इसमें सूक्ष्मजीव (micro-organisms) काम करके एक तरल तैयार करते हैं, जिसे बायोएंजाइम कहते हैं।

बायोएंजाइम का उपयोग कहां होता है?

  • साफ-सफाई: घर की फर्श, बर्तन, टॉयलेट और कपड़े धोने के लिए।
  • कृषि: प्राकृतिक कीटनाशक और खाद के रूप में।
  • पर्यावरण संरक्षण: पानी और मिट्टी को शुद्ध करने के लिए।
  • स्वच्छता अभियान: जलस्रोतों से बदबू, गंदगी और बैक्टीरिया कम करने के लिए।

बायोएंजाइम के फायदे

  • 100% प्राकृतिक और केमिकल-फ्री।
  • सस्ता और टिकाऊ विकल्प।
  • कचरे का पुनर्चक्रण (waste recycling)।
  • पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचता।
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