राजधानी का जेपी अस्पताल बदहाल: 400 से घटकर रह गए 250 बेड, मरीज बेहाल; किचन की हालत गंभीर

राजधानी के मॉडल अस्पताल की सांसें फूल रहीं- जेपी अस्पताल में सिस्टम बेदम
हरिभूमि इन्वेस्टिगेशन
बेदम सिस्टम से कराह रहा प्रदेश का मॉडल अस्पताल- 400 से घटकर रह गए सिर्फ 250 बेड, जेपी अस्पताल की "सांसें फूल रही हैं"
रिपोर्ट: सचिन सिंह बैस | भोपाल
राजधानी भोपाल का जेपी अस्पताल, जिसे कभी प्रदेश का मॉडल जिला अस्पताल कहा जाता था, अब बदहाली की नई मिसाल बन चुका है। हालत ऐसी कि यहां अब केवल सर्दी-खांसी, बुखार या मामूली चोट वाले मरीजों का ही इलाज हो पा रहा है। डायबिटीज, हृदय, किडनी और गंभीर बीमारियों के मरीजों को या तो लौटाया जा रहा है या रेफर कर दिया जाता है।
तीन साल में घट गईं 150 बेड- अब सिर्फ 250!
तीन साल पहले जेपी अस्पताल में 400 बिस्तर थे, लेकिन अब यह संख्या 250 पर सिमट गई है। महिला और प्रसूति वार्ड को काटजू अस्पताल शिफ्ट कर देने से हालात और बिगड़ गए।
दरअसल, नया अस्पताल "फंक्शनल" दिखाने के लिए पुराने जेपी अस्पताल के संसाधन काटजू को ट्रांसफर कर दिए गए, जिससे राजधानी के मुख्य अस्पताल की स्वास्थ्य सुविधाएं चरमराने लगीं।
पूरा सिस्टम आउटसोर्स- डॉक्टर नहीं, ऑपरेटर संभाल रहा मेडिकल बोर्ड
जेपी अस्पताल का पूरा संचालन आउटसोर्सिंग के भरोसे है। जिला मेडिकल बोर्ड की जिम्मेदारी किसी डॉक्टर की नहीं, बल्कि एक आउटसोर्स ऑपरेटर सोमनाथ दुबे के पास है। सफाई से लेकर मेडिकल स्टोर और फाइल सेक्शन तक सब ठेके पर हैं।अस्पताल की गंदगी और बदइंतजामी के बावजूद ठेकेदारों को पूरे भुगतान किए जा रहे हैं।
बजट भी है, खरीदी भी- फिर भी नहीं मिलती दवा!
अस्पताल को हर महीने औसतन 10 से 15 लाख रुपये का दवा बजट मिलता है, परंतु दवाओं की कमी हमेशा बनी रहती है। स्टोर शाखा से परचेज ऑर्डर जारी होते हैं, सामान आता नहीं, और भुगतान फिर भी हो जाता है।
कभी था मिसाल किचन, अब टूटी परंपरा
पूर्व अधीक्षक डॉ. वीणा सिन्हा, डॉ. आई.के. चुघ, डॉ. एम.के. सक्सेना और डॉ. अलका परगनिया के समय में जेपी अस्पताल का किचन पूरे प्रदेश में मशहूर था। पूर्व सीएम कैलाश जोशी, शिवराज सिंह चौहान, केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया तक यहां के भोजन की तारीफ कर चुके हैं।
अब हाल यह है कि “सब्जी है तो दाल नहीं, दाल है तो फल नहीं”- डाइट चार्ट सिर्फ कागजों में रह गया है।
मेडिकल बिलों में 76 लाख का घोटाला
अस्पताल की बिल्डिंग नई और चमकदार है, पर अंदर का सिस्टम भ्रष्टाचार से सड़ चुका है। एमआर सेक्शन भी आउटसोर्स कर्मचारियों के हवाले है। हाल ही में पीएचक्यू की एमआर शाखा में 76 लाख रुपये का मेडिकल बिल घोटाला उजागर हुआ है।
सीएमएचओ का एक्शन- फूड सैंपल, सफाई एजेंसी को नोटिस
नए प्रभारी सीएमएचओ डॉ. मनीष शर्मा ने पदभार संभालते ही 24 घंटे में दो बार निरीक्षण किया। रात में औचक निरीक्षण कर गंदगी पर सफाई एजेंसी को नोटिस दिया गया। किचन से फूड सैंपल लिए गए और खाद्य सुरक्षा अधिकारी को जांच के निर्देश दिए गए। अब रिपोर्ट का इंतजार है।
"बेहतर सुविधा के लिए लगातार प्रयास"
“अस्पताल की व्यवस्थाओं का निरीक्षण किया गया है। गंदगी मिलने पर नोटिस दिया गया है। मरीजों को बेहतर भोजन और सेवा मिले, इसके लिए हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं।”
-डॉ. मनीष शर्मा, प्रभारी अधीक्षक, जेपी अस्पताल
निष्कर्ष: राजधानी का मॉडल अस्पताल अब सिस्टम की लापरवाही का प्रतीक बन गया है। दवाएं नहीं, डॉक्टर कम, सफाई ठेके पर... और जवाबदेही गायब। जेपी अस्पताल अब इलाज से ज्यादा प्रशासनिक ‘एक्सपेरिमेंट’ का मैदान बन गया है।
