Ahilyabai Holkar: शिव को समर्पित शासन, श्री हुजुर के नाम से शासनादेश; जानें कैसा था अहिल्याबाई का सुशासन मॉडल; PM मोदी ने जारी किया डॉक टिकट

Ahilyabai Holkar jayanti
Ahilyabai Holkar jayanti 2025: देवी अहिल्याबाई होलकर सिर्फ एक रानी नहीं, बल्कि वह नैतिकता, करुणा और सेवा के आदर्श नेतृत्व का प्रतीक थीं। आज उनके 300वीं जन्म जयंती पर प्रधानमंत्री मोदी ने भोपाल में डाक टिकट जारी की। बताया, लोकमाता अहिल्याबाई ने कैसे छोटे-छोटे प्रयासों से महिला सशक्तिकरण और सुशासन की मिसाल पेश की है। आइए जानते हैं लोकमाता अहिल्याबाई की शासन व्यवस्था और जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य।
इतिहासकारों के अनुसार, अहिल्याबाई ने होलकर राज्य को भगवान शिव को समर्पित कर खुद को उनकी सेविका घोषित कर दिया था। उनके शासनादेश ‘श्री हुजूर शिवशंकर आदेश’ के नाम से जारी होते थे। इससे उनका राज्य धर्मनिष्ठ ट्रस्ट का रूप ले लेता गया।
आज, भोपाल में लोकमाता देवी अहिल्याबाई महिला सशक्तिकरण महासम्मेलन के दौरान, लोकमाता अहिल्याबाई होल्कर की 300वीं जयंती के पावन अवसर पर माननीय प्रधानमंत्री श्री @narendramodi जी द्वारा @IndiaPostOffice का ‘स्मारक डाक टिकट’ जारी किया गया। pic.twitter.com/H0Li05d02X
— Madhya Pradesh Postal Circle (@CPMGMP) May 31, 2025
समाज सेवा में बदला अपना दर्द
पति की मृत्यु के बाद अहिल्याबाई ने अपने दुख को समाज सेवा में बदल दिया। देशभर के प्रमुख तीर्थस्थलों—काशी, सोमनाथ, मथुरा, रामेश्वरम—में मंदिरों का निर्माण और जीर्णोद्धार कर आध्यात्मिक धरोहर को सहेजा। उनकी न्याय त्वरित और पारदर्शी शासन शैली ने उन्हें प्रजाजन में लोकप्रिय बना दिया। नेहरू, सरोजिनी नायडू और हैदराबाद के निज़ाम जैसे नेता उनकी प्रशंसा करते थे। अहिल्याबाई होलकर का जीवन एक अमिट संदेश है: सच्चा नेतृत्व सेवा में निहित होता है, और शक्ति का सर्वोच्च रूप विनम्रता है।
लोकतंत्र के लिए खाका
अहिल्याबाई होल्कर ने विकेंद्रीकृत शासन मॉडल लागू किया। जिसमें न्याय, कल्याण और कराधान की देखरेख करने के लिए गांव के बुजुर्गों को सशक्त बनाया गया। हातोद, राऊ और महू जैसे गांव भागीदारी शासन के प्रतीक बन गए। समानता और सुलभता में निहित उनकी प्रणाली ने बाद में भारत के पंचायती राज ढांचे को प्रेरित किया, जो उनके स्थायी लोकतांत्रिक दृष्टिकोण को दर्शाता है।
जल ज्ञान की विरासत
अहिल्याबाई होल्कर के दूरदर्शी जल सुधारों ने अर्ध-शुष्क मालवा क्षेत्र में कृषि क्रांति लेकर आए। इंदौर के पास राजवाड़ा नहर का विस्तार कर वर्षा जल संचयन के लिए टैंक, बावड़ी और चेक डैम बनवाए। गांव-स्तर पर सिंचाई चैनल शुरू किए। नर्मदा और क्षिप्रा नदियों के किनारे तटबंधों ने बाढ़ को नियंत्रित करने में मदद की। इतिहासकार पल्लवी थेरगांवकर ने नोट किया कि इन नवाचारों ने न केवल फसल की पैदावार और ग्रामीण लचीलेपन को बढ़ाया, बल्कि कई संरचनाएं आज भी काम कर रही हैं।
सभी के लिए आश्रय और पोषण
अहिल्याबाई होल्कर ने राजवाड़ा, महेश्वर, उज्जैन, ओंकारेश्वर और प्रयागराज में तीर्थयात्रा और व्यापार मार्गों पर धर्मशालाएं और दान-पुण्य (अन्नदान) स्थापित करके करुणा को संस्थागत रूप दिया। जो हर जाति-धर्म के लोगों के लिए सर्वसुलभ होते थे। कारीगरों और बुनकरों को सशक्त कर इंदौर को वाणिज्यिक और प्रशासनिक केंद्र बनाया। पानी की कमी को दूर कर आधुनिक शहरी कल्याण की नींव रखी।
आध्यात्मिक नेतृत्व और मंदिर पुनरुद्धार
अहिल्याबाई होल्कर का शासनकाल भारत में आध्यात्मिक पुनर्जागरण के एक परिभाषित युग का प्रतीक है। उन्होंने पवित्र स्थलों को पुनर्जीवित करने और सांस्कृतिक निरंतरता को बनाए रखने के लिए शाही संसाधनों का उपयोग करते हुए, देश भर में मंदिरों के जीर्णोद्धार और निर्माण के लिए खुद को समर्पित कर दिया।
अहिल्याबाई होल्कर ने इन मंदिरों का कराया जीर्णोद्धार
- काशी विश्वनाथ मंदिर, वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
- द्वारकाधीश मंदिर, द्वारका (गुजरात)
- त्र्यंबकेश्वर शिव मंदिर, त्र्यंबक (महाराष्ट्र)
- ओंकारेश्वर मंदिर, ओंकारेश्वर (मध्य प्रदेश)
- अहिल्येश्वर मंदिर, महेश्वर (मध्य प्रदेश)
- राजराजेश्वर मंदिर, महेश्वर (मध्य प्रदेश)
- देवगुराड़िया मंदिर, इंदौर (मध्य प्रदेश)
विरासत जो आज भी कायम है
अहिल्याबाई का प्रभाव आज भी जीवंत है। इंदौर के आसपास उनके ग्राम सुशासन का मॉडल कायम है। इंदौर से 8 किमी दूर नेमावर रोड पर स्थित देवगुराड़िया शिव मंदिर, 7वीं शताब्दी का अखंड चट्टानी मंदिर है। 18वीं शताब्दी में अहिल्याबाई होल्कर द्वारा पुनर्निर्मित, यह गरुड़ तीर्थ के नाम से लोकप्रिय है। इसमें विशिष्ट गोमुख के आकार से जल निकलता है।
पेशवाओं को चेतावनी
अहिल्याबाई ने पेशवाओं को अंग्रेजों के बारे में चेतावनी देते हुए कहा, "बाघ जैसे अन्य जानवरों को ताकत या युक्ति से मारा जा सकता है, लेकिन भालू को मारना बहुत मुश्किल है। भालू तभी मरता है जब उसके चेहरे पर सीधा वार किया जाए; अन्यथा, एक बार पकड़े जाने पर, वह गुदगुदी करके मारता है। अंग्रेज ऐसे ही होते हैं - उन पर विजय पाना मुश्किल है।
राजवाड़ा का सिंधी शरणार्थी इतिहास
इतिहासकार जफर अंसारी के मुताबिक, राजवाड़ा के पास विभाजन के बाद सिंधी शरणार्थी बस गए थे। नगरपालिका अध्यक्ष बाबूलाल पटौदी ने 1956 में महारानी चंद्रावती बाई और महारानी इंदिरा बाई होल्कर के सहयोग से संगमरमर के चबूतरे पर देवी अहिल्याबाई की मूर्ति स्थापित कराई।
सोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार
अहिल्याबाई होल्कर को स्वप्न में जूनागढ़ के प्रभास पाटन में सोमनाथ के मूर्ति की जानकारी लगी। इस पर उन्होंने खंडहर हो चुके इस स्थान की बजाय पास में ही सोमनाथ का नया मंदिर बनवाया। बाद में भक्तिभाव से मूर्ति को पुनः स्थापित कराया।
इंदौर में विनम्र वापसी
अहिल्याबाई होल्कर 26 मई, 1784 को इंदौर पहुंचीं और पति खंडेराव, ससुर मल्हार राव और गौतम बाई होल्कर की समाधि के पास तंबू में रहने का निर्णय लिया। 26 दिन में उन्होंने सभी से संपर्क कर 10,000-12,000 लोगों के लिए नगर भोज भोज का आयोजन किया।
सार्वजनिक भलाई के लिए धन
खरगोन के तपदास और बनारसीदास बिना किसी उत्तराधिकारी के मर गए, तो उनकी विधवा भाभी ने अहिल्याबाई से उनकी संपत्ति पर स्वामित्व मांगा। अहिल्याबाई ने मना कर दिया और इसका उपयोग उन्होंने सार्वजनिक कल्याण के लिए करने को कहा। बाद में इस धन से कुंडा नदी पर घाट और मंदिर का निर्माण कराया गया।
अहिल्याबाई की संत जैसी सादगी
अहिल्याबाई की संत जैसी सादगी ने राघोबा पेशवा की पत्नी आनंदबाई को मोहित कर लिया। वह कोई आभूषण नहीं बल्कि सादे कपड़े पहनती थीं। उनका रंग गेहुँआ था फिर भी उनमें दिव्य कृपा झलकती थी। इस विनम्रता ने उस युग के सबसे शक्तिशाली राजघरानों को काफी प्रभावित किया।
अन्यायपूर्ण करों को अस्वीकारा
इंदौर और महेश्वर के बीच हाथ-झुलई कर वसूलने वाले मराठा सरदार गणपत राव ने अहिल्याबाई को कर देने की पेशकश की। उन्होंने इसे अस्वीकार करते हुए जन कल्याण में उपयोग करने के निर्देश दिए। बाद में इस राशि से जाम दरवाजा, जलाशय और अहिल्याबाई होल्कर तालाब का निर्माण कराया गया।
देवी अहिल्याबाई होल्कर की जीवन-चरित्र
जन्म: देवी अहिल्याबाई होल्कर का जन्म 31 मई, 1725 महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के चोंडी गांव में मराठी ब्राह्मण परिवार में हुआ। मल्हार राव होल्कर ने 1733 में उनकी बुद्धिमत्ता और चरित्र से इतना प्रभावित हुए कि 1735 में बेटे खंडेराव होल्कर के साथ उनका विवाह करा दिया।
शासन सत्ता और परिवार: मराठा अभियान में 1754 में कुंभेर की घेराबंदी के दौरान उनके पति खंडेराव होल्कर की मृत्यु हो गई थी। 1766 में उनके ससुर और गुरु मल्हार राव होल्कर का भी निधन हो गया। इसके तुरंत बाद इकलौते बेटे मालेराव होल्कर की भी मृत्यु हो गई। जिसके बाद देवी अहिल्या बाई ने 1767 में होल्कर राज्य की शासक बनीं। सिंहासन संभालते ही उन्होंने अपनी राजधानी महेश्वर स्थानांतरित कर दी।
सोच और सुशासन: अहिल्याबाई होल्कर ने 1767-1795 तक शासन किया। इस दौरान उन्होंने 8,527 मंदिरों और 950 किलों/धर्मशालाओं का निर्माण/पुनर्स्थापन किया। नहरों, तालाबों, सड़कों, बावड़ियों और विश्राम गृह बनवाए। 1780 में काशी विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण कराया। महिलाओं को रोजगार और सैन्य प्रशिक्षण देकर सशक्त बनाया। 1793 में विदेशी फ्रांसीसी और अमेरिकी कमांडरों के सैन्य प्रस्तावों को अस्वीकार कर दिया, युद्ध के बजाय शांति की पुष्टि की।
निधन और स्मारक: अहिल्याबाई होल्कर का 28 साल की शासन व्यवस्था के बाद 13 अगस्त, 1795 में महेश्वर में निधन हो गया। नर्मदा नदी के पास उनका अंतिम संस्कार किया गया। यहीं पर उनका स्मारक बना है।