कपाल मोचन मेला: यमुनानगर का वो सूरजकुंड, जहां स्नान से नहीं होता सूर्य ग्रहण का असर, जानिए क्या है मान्यता

यमुनानगर में कपाल मोचन मेले के दौरान सूरजकुंड में स्नान करते लोग।
हरियाणा के यमुनानगर जिले में अंतर्राज्यीय ऐतिहासिक कपाल मोचन मेले की शुरुआत हो चुकी है। यह मेला देशभर के लाखों श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता है, जो यहां के पवित्र सरोवरों में आस्था की डुबकी लगाने पहुंचते हैं। व्यासपुर में कपाल मोचन स्थित सूरजकुंड सरोवर की महत्ता न केवल हरियाणा बल्कि पूरे देश में है। यह कुंड केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि सदियों पुराने इतिहास और पौराणिक कथाओं का साक्षी है।
युगों पुराने सरोवर की अद्भुत मान्यताएं
सूरजकुंड सरोवर की सबसे बड़ी पहचान उसकी प्राचीनता है। ऐसी मान्यता है कि यह कुंड द्वापर युग से भी पुराना है और इसकी उत्पत्ति सृष्टि के आरंभ काल से ही है। स्थानीय श्रद्धालुओं का कहना है कि यह एक ऐसा पवित्र स्थान है, जहां 33 कोटि देवी-देवता से लेकर सिखों के गुरु तक आते रहे हैं। यहां भगवान के साक्षात आने के भी कई साक्ष्य मिलते हैं, जो इस स्थान की दिव्यता को प्रमाणित करते हैं।
लाखों श्रद्धालु हर साल इस तीर्थ पर पहुंचते हैं, जहां वे पारिवारिक सुख-समृद्धि और विशेष रूप से पुत्र प्राप्ति की मनोकामना लेकर स्नान करते हैं। जिनकी इच्छाएं पूरी होती हैं, वे दोबारा यहां आकर स्नान करते हैं। मनोकामना पूरी होने की इस अटूट आस्था के कारण यह सरोवर पंजाब और अन्य पड़ोसी राज्यों के श्रद्धालुओं के बीच विशेष रूप से प्रसिद्ध है।
सूर्य ग्रहण का असर नहीं होने का दावा
इस कुंड की एक और अद्भुत मान्यता यह है कि सूरजकुंड में स्नान करने से सूर्य ग्रहण का कोई नकारात्मक असर नहीं होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सूर्य ग्रहण के दौरान भी यहां स्नान करना उतना ही फलदायी माना जाता है, जितना सामान्य दिनों में। यह विशेष विश्वास श्रद्धालुओं को हर मौसम और हर परिस्थिति में यहां आने के लिए प्रेरित करता है।
कर्ण और कुंती की कहानी से गहरा नाता
सूरजकुंड सरोवर का इतिहास महाभारत काल की एक महत्वपूर्ण घटना से जुड़ा हुआ है, जो इसे पुत्र प्राप्ति के लिए इतना पवित्र बनाता है। यह कहानी कुंती और दानवीर कर्ण से जुड़ी है। श्रद्धालुओं द्वारा पढ़े गए धार्मिक ग्रंथों से यह ज्ञात होता है कि जब कुंती केवल 14 साल की थीं, तब उन्होंने सूर्य देव की कठोर उपासना की थी। कुंती की भक्ति से प्रसन्न होकर सूर्य देव ने उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति का वरदान दिया। हालांकि, उस समय कुंती अविवाहित थीं। सामाजिक भय के कारण सूर्य भगवान ने कुंती से उस पुत्र को लकड़ी के बॉक्स में डालकर कुंड में छोड़ने के लिए कहा था।
श्रद्धा भाव से स्नान करते हैं दंपति
पौराणिक कथा के अनुसार कुंती ने उस पुत्र को लकड़ी के बॉक्स में रखकर इसी सूरजकुंड सरोवर में छोड़ दिया। बाद में एक भील ने उस बॉक्स को बाहर निकाला और उस बच्चे का पालन-पोषण किया। यही बालक आगे चलकर कर्ण के नाम से विख्यात हुआ। कर्ण इतना बलशाली और पराक्रमी था कि युद्ध में जिस तरफ उसका साथ होता था, जीत उसी पक्ष की होती थी। कर्ण की इसी बलशाली कहानी के कारण यह मान्यता बनी हुई है कि जो भी दंपति श्रद्धा-भाव से यहां आकर स्नान करते हैं और पुत्र प्राप्ति की कामना करते हैं, उनकी मनोकामना पूरी होती है।
श्रद्धालु करते हैं विशेष अनुष्ठान
सूरजकुंड सरोवर पर आने वाले श्रद्धालु यहां एक विशेष अनुष्ठान करते हैं। वे यहां स्थित कदम और बेरी के पेड़ पर धागा बांधकर अपनी मन्नतें मांगते हैं। यह प्रथा सदियों से चली आ रही है और इसे मनोकामना पूर्ति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है। यात्रीगण बसों में कीर्तन और गुरबाणी का जाप करते हुए यहां पहुंचते हैं, जो उनकी आस्था और भक्ति को दर्शाता है।
HSGMC प्रधान जगदीश सिंह झींडा ने कहा कि यहां आने वाले यात्री केवल दर्शन नहीं करते, बल्कि गुरु की वाणी से प्रेरणा लेकर लौटते हैं। कपाल मोचन का यह ऐतिहासिक तीर्थ स्थल, जिसकी महत्ता द्वापर युग से जुड़ी है, आज भी लाखों लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है, जो यह साबित करता है कि आस्था और इतिहास का यह संगम सदियों तक बना रहेगा।
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