पंचकूला हिंसा केस 2017: राम रहीम विवाद में हाईकोर्ट करेगी जनहित याचिका पर सुनवाई, मुआवजे की भी लड़ाई

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सिरसा डेरा प्रमुख राम रहीम को सजा सुनाए जाने के बाद हुई पंचकूला हिंसा में हाईकोर्ट करेगी सुनवाई।
डेरा सच्चा सौदा प्रमुख राम रहीम को 2017 में सजा सुनाए जाने के बाद पंचकूला में हिंसा भड़की थी। इस मामले में दायर जनहित याचिका पर हाईकोर्ट सुनवाई करेगी। इससे पीड़ितों को मुआवजे की आस जगी है।

पंचकूला हिंसा केस 2017 : डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम को अगस्त 2017 में दुष्कर्म के मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद भड़की हिंसा की गूंज अब भी अदालत में सुनाई दे रही है। पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट की फुल बेंच ने इस मामले से जुड़ी जनहित याचिका को बंद करने से इंकार कर दिया है। इस कदम से उन पीड़ितों में उम्मीद जगी है, जिनकी गाड़ियां, दुकानें और संपत्ति हिंसा के दौरान आग के हवाले कर दी गई थीं।

सरकार पर कर्फ्यू लागू नहीं कराने के आरोप

चीफ जस्टिस शील नागू, जस्टिस विनोद एस. भारद्वाज और जस्टिस विक्रम अग्रवाल की बेंच ने शुक्रवार को मामले की सुनवाई की। कोर्ट में याचिकाकर्ता रविंद्र सिंह ढुल की ओर से दायर याचिका पर बहस के दौरान सीनियर एडवोकेट अनुपम गुप्ता ने राज्य सरकार पर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि 2017 में जब पंचकूला में हजारों डेरा समर्थक इकट्ठा हुए, तब खुफिया एजेंसियों ने पहले से चेतावनी जारी की थी। इसके बावजूद पुलिस और प्रशासन ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया। गुप्ता ने तर्क दिया कि सरकार ने कर्फ्यू लागू नहीं किया और हालात बिगड़ने दिए। उनका आरोप है कि प्रशासन ने नागरिकों की सुरक्षा से अधिक प्राथमिकता डेरा प्रमुख और उसके अनुयायियों को बचाने पर दी।

32 मौतें और 118 करोड़ की क्षति

25 अगस्त 2017 को फैसले के दिन पंचकूला में हालात पूरी तरह बेकाबू हो गए थे। डेरा समर्थकों ने वाहनों, इमारतों और दुकानों को आग के हवाले कर दिया था। इस हिंसा में 32 लोगों की मौत हुई, जिनमें से ज्यादातर डेरा समर्थक थे। सरकारी अनुमान के मुताबिक लगभग 118 करोड़ रुपये की संपत्ति का नुकसान हुआ। भीड़ में कई लोग हथियारबंद भी थे।

मुआवजे और भरपाई पर बहस

हाईकोर्ट में सुनवाई का एक अहम मुद्दा यह रहा कि हिंसा से हुए नुकसान की भरपाई किस दायरे में की जा सकती है। अनुच्छेद 226 के तहत अदालत यह तय करेगी कि क्या दोषियों से सरकारी संपत्ति, निजी वाहनों, दुकानों और सुरक्षा बलों की तैनाती पर खर्च हुए पैसों की वसूली संभव है। अदालत ने यह भी कहा कि जो प्रश्न 2017 में उठाए गए थे, उनका निपटारा जरूरी है क्योंकि यह सीधे तौर पर शासन, प्रशासन और नागरिक सुरक्षा से जुड़े हैं।

पंजाब ने 169 करोड़ खर्च किए

पंजाब सरकार की ओर से एडिशनल एडवोकेट जनरल चंचल सिंगला ने कोर्ट को बताया कि पंजाब ने हिंसा को रोकने और सुरक्षा इंतजामों पर 169 करोड़ रुपये खर्च किए। इसमें से करीब 50 करोड़ रुपये केवल सीआरपीएफ की तैनाती पर खर्च हुए। उन्होंने कहा कि यह खर्च पंजाब के सामान्य कानूनों में कवर नहीं होता, इसलिए हाईकोर्ट को स्वतंत्र ट्रिब्यूनल गठित करने पर विचार करना चाहिए। कोर्ट ने पंजाब सरकार से शपथपत्र पर जवाब देने को कहा कि क्या इस खर्च की भरपाई किसी अन्य एजेंसी से मांगी गई है।

सरकार पर दबाव का लगाया आरोप

29 अगस्त 2017 को ही हाईकोर्ट ने आदेश दिया था कि पंजाब और हरियाणा में दर्ज सभी मामलों की जांच विशेष जांच दल SIT करेगी। साथ ही यह भी साफ किया गया था कि दोनों राज्य सरकारें अदालत की अनुमति के बिना किसी भी एफआईआर को वापस नहीं लेंगी। सुनवाई के दौरान एडवोकेट अनुपम गुप्ता ने दावा किया कि हरियाणा सरकार ने राजनीतिक दबाव में आकर डेरा समर्थकों को संरक्षण दिया। उनका कहना था कि प्रशासन ने संवैधानिक जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया और जनता की सुरक्षा की अनदेखी की। गुप्ता ने कहा कि यह मामला केवल एक धार्मिक संगठन या उसके प्रमुख का नहीं, बल्कि कानून व्यवस्था बनाए रखने में सरकार की भूमिका और जिम्मेदारी से जुड़ा है।

कोर्ट में उठे अहम सवाल

हाईकोर्ट की फुल बेंच के सामने कई अहम सवाल रखे गए, जिनमें यह भी शामिल था कि कानून व्यवस्था से जुड़े मामलों में क्या जनहित याचिका (PIL) दायर की जा सकती है?

हिंसा से हुए नुकसान की जिम्मेदारी किस पर तय होगी?

क्या सरकार और उसके अधिकारियों को भी जवाबदेह ठहराया जा सकता है?

क्या दोषियों से न केवल संपत्ति के नुकसान बल्कि सुरक्षा बलों की तैनाती पर हुए खर्च की भी वसूली हो सकती है?

आगे क्या होगा?

अप्रैल 2025 की पिछली सुनवाई में हाईकोर्ट ने साफ कर दिया था कि अब बार-बार तारीखें नहीं दी जाएंगी। कोर्ट ने कहा था कि पहले यह तय किया जाए कि 2017 में उठाए गए सवाल अभी भी प्रासंगिक हैं या नहीं। अब फुल बेंच ने याचिका को खारिज न करते हुए संकेत दिया है कि इस मामले में विस्तृत सुनवाई होगी। इससे प्रभावित लोगों को मुआवजा मिलने की उम्मीद जगी है और सरकार की भूमिका पर भी न्यायिक टिप्पणी आने की संभावना बढ़ गई है।

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