सिखों के नौवें गुरु का 350वां शहीदी वर्ष: गुरु तेग बहादुर का सम्मान बचाने सोनीपत के कुशाल सिंह दहिया ने कटवाया था शीश

सिखों के नौवें गुरु तेग बहादुर जी व सोनीपत के शहीद कुशाल सिंह दहिया।
हरियाणा विधानसभा में प्रस्ताव पास : हरियाणा के इतिहास में अमर बलिदान की कुछ ऐसी कहानियां हैं, जो सदियों बाद आज भी जिंदा है। ऐसी ही एक कहानी है सोनीपत के बड़खालसा गांव के शहीद कुशाल सिंह दहिया की। कुशाल सिंह दहिया ने 1675 में सिखों के 9वें गुरु तेग बहादुर साहिब जी के सम्मान की रक्षा के लिए अपना शीश न्योछावर कर दिया था। हरियाणा सरकार ने गुरु तेग बहादुर के 350वें शहीदी वर्ष को गरिमा और भावपूर्ण तरीके से मनाने का संकल्प लिया है। हरियाणा विधानसभा में इसे लेकर सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया गया। सीएम नायब सिंह सैनी ने विधानसभा में शहीद कुशाल सिंह दहिया को भी श्रद्धांजलि अर्पित की।
कश्मीरी पंडितों की रक्षा के लिए छेड़ा था युद्ध
विधानसभा में प्रस्ताव पढ़ते हुए सीएम नायब सिंह सैनी ने कहा कि श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी ने अपना जीवन मानवता की गरिमा और धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा के लिए न्योछावर किया था। कश्मीरी पंडित जबरन धर्म परिवर्तन पर जब गुरु साहिब से मदद की गुहार लगाने श्री आनंदपुर साहिब आए, तब गुरु साहिब ने अपने प्राणों का बलिदान देकर धर्म की रक्षा का निर्णय लिया ताकि वे सम्मान के साथ जी सकें। उन्होंने मुगल शासक औरंगजेब के इस फैसले के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंक दिया। इस लड़ाई में गुरु जी अपने शिष्यों के साथ पकड़े गए। धर्म परिवर्तन न करने पर उनके अनुयायी भाई मती दास जी को जीवित ही आरे से काटा गया, भाई सती दास जी को रुई में लपेटकर जला दिया गया तथा भाई दयाला जी को गर्म पानी की कढ़ाही में जिंदा उबाला गया था। उन्होंने अटूट विश्वास के साथ शहादत को गले लगाया। यह बलिदान उनके साहस और धर्म के प्रति दृढ़ निष्ठा का प्रतीक है।
11 नवंबर 1675 को गुरु तेग बहादुर का काटा गया था शीश
श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी ने धर्म व आस्था की स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा के लिए 11 नवंबर 1675 में दिल्ली के चांदनी चौक में अपना बलिदान दिया। मुगलों ने खौफ पैदा करने के लिए उनके शरीर के चार टुकड़े कर दरवाजों पर टंगवा दिए। तभी भारी अंधड़ आया और उनके अनुयायी पवित्र शरीर के टुकड़ों को लेकर वहां से फरार हो गए। इनमें से भाई जैता सिंह जी गुरु जी का शीश लेकर आनंदपुर साहिब जाने के लिए सोनीपत की ओर आ गए, लेकिन उनके पीछे भारी मुगल सेना थी। यहां आकर उन्होंने कुशाल सिंह दहिया के गांव में शरण ली।
गुरु जी का शीश बचाने दहिया ने अपना शीश कटवाया
बताया जाता है कि जब भारी मुगल सेना गांव के पास पहुंच गई तब गुरु जी का शीश बचाने के लिए ग्रामीणों में चिंता पैदा हो गई। ऐसे में कुशाल सिंह दहिया आगे और अपना बलिदान देने का प्रस्ताव रखा। उनका चेहरा कुछ हद तक गुरु तेग बहादुर जी से मेल खाता था। उन्होंने अपना शीश अपने ही बड़े बेटे के हाथों कटवाया और उसे सिख अनुयायी को सौंप दिया। मुगल सैनी भ्रम में आ गए और गुरु जी की जगह कुशाल सिंह दहिया का शीश लेकर चले गए। इस तरह गुरु जी के सम्मान की खातिर दहिया ने अपना सर्वोच्च बलिदान दिया और इतिहास में अमर हो गए। तब से उस गांव का नाम बड़खालसा पड़ गया।
कुशाल सिंह दहिया की याद में है मेमोरियल
बताया जाता है कि मुगल सेना ने सोनीपत के इस पूरे गांव को उजाड़ दिया था। बाद में युवा पीढ़ी को इतिहास से रूबरू कराने के लिए बड़खालसा मेमोरियल परिसर का निर्माण कराया गया। सरकार ने इसे सिख गुरु तेग बहादुर की शहादत का म्यूजियम बनवाया है। यह सिंघु बॉर्डर से कुछ ही दूरी पर स्थित है। यहां शहीद कुशाल सिंह दहिया की आदमकद प्रतिमा व शिलालेख स्थापित हैं, जो उनके बलिदान की गवाही दे रहे हैं।
गुरु तेग बहादुर जी का हरियाणा से गहरा नाता
हरियाणा विधानसभा ने श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी के 350वें शहीदी वर्ष के अवसर पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया। सीएम सैनी ने प्रस्ताव में कहा कि श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी का हरियाणा की भूमि से गहरा जुड़ाव रहा। अपनी यात्राओं के दौरान गुरु साहिब ने कुरुक्षेत्र, पिहोवा, कैथल, जींद, अंबाला, चीका और रोहतक में आकर इस भूमि को पवित्र किया और सत्य, सहनशीलता और निर्भयता का शाश्वत संदेश दिया। जींद में गुरुद्वारा श्री धमतान साहिब और गुरुद्वारा श्री मंजी साहिब और अंबाला में गुरुद्वारा श्री शीशगंज साहिब उनके आशीर्वाद और शिक्षाओं की हमें याद दिलाते हैं। उन्होंने कहा कि भाई जैता सिंह जी जब गुरु जी का शीश लेकर आनंदपुर साहिब के लिए निकले थे तो वे हरियाणा के सोनीपत, करनाल और अंबाला से होकर गए थे। यहां के लोगों ने उनका पूरा समर्थन किया था और शहादत की विरासत के साथ संबंध स्थापित किया था। उन्होंने कहा कि सदन का मानना है कि श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी के बलिदान के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि के रूप में उनकी अमर शिक्षाओं को हरियाणा प्रदेश के प्रत्येक नागरिक तक पहुंचाने की आवश्यकता है ताकि प्रदेश में आपसी सहयोग और भाईचारे की गौरवपूर्ण परंपरा अटूट रहे।
