गीता नगरी की एक और पहचान: कुरुक्षेत्र में मौजूद है सांची जैसा प्राचीन बौद्ध स्तूप, ह्वेनसांग ने भी किया था जिक्र

Buddhist Stupa
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कुरुक्षेत्र में मौजूद बौद्ध स्तूप। 

इतिहासकारों के अनुसार यह स्तूप सम्राट अशोक के काल का माना जाता है, जो बाद में कुषाण और गुप्त काल में भी उपयोग होता रहा। पुरातत्व विभाग अब इस ऐतिहासिक स्थल को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने पर काम कर रहा है। यह बौद्ध स्तूप कुरुक्षेत्र को गीता नगरी के अलावा एक नई और अनूठी पहचान दिला सकता है।

कुरुक्षेत्र को पूरी दुनिया में गीता नगरी के रूप में जाना जाता है, क्योंकि यहीं पर महाभारत का ऐतिहासिक युद्ध लड़ा गया था। भगवान श्री कृष्ण ने इसी धरती पर अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था, जो आज भी जीवन का सबसे बड़ा दर्शन माना जाता है। लेकिन, बहुत कम लोग यह जानते हैं कि कुरुक्षेत्र का इतिहास न केवल महाभारत तक ही सीमित नहीं है, यहां पर एक प्राचीन बौद्ध स्तूप भी है, जिसकी बनावट और ऐतिहासिकता देखने पर हमें मध्य प्रदेश के विश्व विख्यात सांची स्तूप की याद आ जाती है। यह बौद्ध स्तूप कुरुक्षेत्र के इतिहास में एक अनूठी पहचान जोड़ता है, जो सदियों से छिपा हुआ था।

ब्रह्म सरोवर और कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के बीच स्थित है स्तूप

यह प्राचीन बौद्ध स्तूप एक ऐसे स्थान पर स्थित है जो कुरुक्षेत्र की दो सबसे प्रमुख पहचानों के बीच आता है। विश्व-प्रसिद्ध ब्रह्म सरोवर और हरियाणा के सबसे पुराने शिक्षण संस्थानों में से एक कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय। यह स्तूप ब्रह्म सरोवर के पश्चिमी किनारे और विश्वविद्यालय के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में तीन एकड़ के विशाल क्षेत्र में फैला हुआ है। ब्रह्म सरोवर को एशिया का सबसे बड़ा मानव निर्मित तालाब माना जाता है, जिसका पौराणिक महत्व भी है, क्योंकि कहा जाता है कि इसका निर्माण स्वयं ब्रह्मा ने किया था। इन्हीं दो ऐतिहासिक स्थलों के बीच यह बौद्ध स्तूप शांत और सौम्य रूप में मौजूद है, जो अपनी पहचान की प्रतीक्षा कर रहा है।

चीनी यात्री ह्वेनसांग ने किया था इसका उल्लेख

कुरुक्षेत्र के इस बौद्ध स्तूप का इतिहास हजारों साल पुराना है। इतिहासकारों के अनुसार 7वीं शताब्दी में भारत आए प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपनी किताबों में इसका उल्लेख किया था। उन्होंने लिखा था कि कुरुक्षेत्र के इस क्षेत्र में कभी भगवान बुद्ध के अनुयायी रहा करते थे और उन्हीं के द्वारा इस स्तूप का निर्माण करवाया गया था। कुरुक्षेत्र के इतिहास के प्रोफेसर डॉ. अतुल यादव बताते हैं कि अभी तक इस स्तूप की पूरी तरह से खुदाई नहीं हो पाई है। अगर पुरातत्व विभाग सही तरीके से इसकी खुदाई करे, तो हमें इसके बारे में और भी महत्वपूर्ण जानकारियां मिल सकती हैं, जो कुरुक्षेत्र के प्राचीन इतिहास पर एक नया प्रकाश डाल सकती हैं।

सम्राट अशोक से लेकर राजा हर्षवर्धन तक का इतिहास

डॉ. अतुल यादव ने बताया कि जब हम इस बौद्ध स्तूप को देखते हैं तो इसकी बनावट और ईंटों से हमें सम्राट अशोक के समय की याद आती है। कुरुक्षेत्र का इतिहास केवल महाभारत तक सीमित नहीं है बल्कि यह सिंधु संस्कृति से भी जुड़ा हुआ है। यहां कई प्राचीन इमारतें और अवशेष मिलते हैं जो इस बात की पुष्टि करते हैं। इतिहासकारों का यह भी मानना है कि कुरुक्षेत्र के आस-पास तीन प्रमुख बौद्ध स्तूप थे। इनमें से एक यमुनानगर के चनेटी में, दूसरा करनाल जिले के असंध में और तीसरा कुरुक्षेत्र में मौजूद है।

इन स्तूपों के निर्माण काल भी अलग-अलग हैं। यहां मिली ईंटों के अध्ययन से पता चलता है कि यहां मौजूद अवशेष कुषाण काल से जुड़े हैं। वहीं एक अन्य स्तूप गुप्त काल का है जबकि एक अन्य स्तूप राजा हर्षवर्धन के समय का लगता है। ये अलग-अलग कालखंड इस बात के प्रमाण हैं कि कुरुक्षेत्र का इतिहास कई साम्राज्यों और संस्कृतियों का संगम रहा है।

सांची और कुरुक्षेत्र के स्तूप में ये है समानता

मध्यप्रदेश में स्थित सांची का बौद्ध स्तूप अपनी वास्तुकला और ऐतिहासिक महत्व के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। इसका निर्माण भी सम्राट अशोक ने करवाया था। सांची अपने कलात्मक प्रवेश द्वारों, अशोक स्तंभों और स्तूपों के लिए जाना जाता है। भारतीय राष्ट्रीय प्रतीक, चार शेरों वाला अशोक स्तंभ भी यहीं से लिया गया है। कुरुक्षेत्र के स्तूप की बनावट और उसके अशोक काल से जुड़ाव को देखते हुए, कई लोग इसे 'हरियाणा का सांची' कहते हैं। दोनों ही स्तूप बौद्ध धर्म के महत्वपूर्ण केंद्र रहे हैं और अपनी-अपनी जगह पर ऐतिहासिक महत्व रखते हैं। कुरुक्षेत्र का स्तूप भी उसी काल की कला और स्थापत्य का एक शानदार उदाहरण है, जिसे अभी तक उतनी पहचान नहीं मिल पाई है।

पर्यटन स्थल के रूप में उभरेगी नई पहचान

पिछले कुछ वर्षों से भारतीय पुरातत्व विभाग ने इस बौद्ध स्तूप को अपने अधीन ले लिया है और इसे एक प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने पर काम कर रहा है। इतिहासकारों का मानना है कि इस स्थल की सही तरीके से खुदाई और संरक्षण किया जाए, तो यहां से और भी महत्वपूर्ण पुरातात्विक साक्ष्य मिल सकते हैं। इसके बाद यह स्थल केवल इतिहासकारों के लिए ही नहीं, बल्कि आम पर्यटकों के लिए भी एक आकर्षण का केंद्र बन सकता है।

कुरुक्षेत्र की पहचान अभी तक महाभारत और गीता से जुड़ी हुई है, लेकिन इस प्राचीन बौद्ध स्तूप के विकसित होने से इसे एक नई ऐतिहासिक पहचान मिलेगी। इससे यहां पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी फायदा होगा। यह उम्मीद की जा रही है कि आने वाले समय में यह बौद्ध स्तूप कुरुक्षेत्र के गौरवशाली इतिहास को एक नया अध्याय देगा।

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