World Record: यूरोप की सबसे ऊंची चोटी माउंट एल्ब्रुस पर तीसरी बार चढ़ने वाले पहले भारतीय बने हरियाणा के नरेंद्र यादव

15 अगस्त को माउंट एल्ब्रुस की चोटी पर तिरंगा फहराते नरेंद्र।
हरियाणा के रेवाड़ी के रहने वाले पर्वतारोही नरेंद्र यादव ने एक बार फिर भारत का नाम रोशन किया है। उन्होंने 15 अगस्त को सुबह 9:15 बजे यूरोप की सबसे ऊंची चोटी माउंट एल्ब्रुस पर तिरंगा फहराकर इतिहास रच दिया। चोटी पर पहुंचते ही उन्होंने 'जय श्री राम' और 'भारत माता की जय' का उद्घोष किया। अभियान के दौरान उन्होंने नशा मुक्ति का संदेश भी दिया। यह माउंट एल्ब्रुस पर उनकी तीसरी चढ़ाई थी और इस उपलब्धि के साथ वह इस चोटी पर सबसे ज्यादा बार चढ़ाई करने वाले पहले भारतीय बन गए हैं। यह उनके नाम 24वां विश्व रिकॉर्ड है।
माउंट एल्ब्रुस, जो काकेशस पर्वत श्रेणी का हिस्सा है, समुद्र तल से 18,150 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यह यूरोप और एशिया की सीमा पर है, लेकिन इसका पश्चिमी हिस्सा भौगोलिक रूप से यूरोप में आता है, इसीलिए इसे यूरोप की सबसे ऊंची चोटी माना जाता है।
-30 डिग्री तापमान में 12 सदस्यीय अंतरराष्ट्रीय दल का नेतृत्व किया
नरेंद्र यादव ने इस अभियान में 12 सदस्यीय अंतरराष्ट्रीय दल का नेतृत्व किया, जिसमें नेपाल, स्वीडन, रूस, बांग्लादेश, ऑस्ट्रेलिया और चिली के पर्वतारोही शामिल थे। अब उनका अगला लक्ष्य और भी अधिक चुनौतीपूर्ण है, जिसमें ज्वालामुखी पर्वतों की चढ़ाई शामिल है। इस कठिन पर्वतारोहण अभियान को पूरा करने के लिए नरेंद्र यादव और उनकी टीम को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
6 अगस्त को रूस पहुंचे और तैयारी शुरू की
रेवाड़ी के गांव नेहरूगढ़ के 30 वर्षीय पर्वतारोही नरेंद्र यादव 6 अगस्त को इस अभियान को लीड करने के लिए भारत से रूस रवाना हुए। नरेंद्र ने 2017 और 2023 में भी इस चोटी को फतह किया था, जिसके अनुभव के कारण उन्हें 7 देशों के पर्वतारोही दल का नेतृत्व करने का मौका मिला।
9 अगस्त से अभियान की शुरुआत
अभियान की शुरुआत 9 अगस्त को हुई, जिसमें पहले छह दिन कठिन प्रशिक्षण और acclimatization (जलवायु के अनुकूल ढलना) का दौर चला। इस दौरान दल के सदस्यों को विपरीत मौसम और भौगोलिक परिस्थितियों का सामना करने के लिए तैयार किया गया।
14-15 अगस्त की रात को अंतिम चढ़ाई
माउंट एल्ब्रुस के शिखर तक पहुंचने के लिए अंतिम चढ़ाई 14-15 अगस्त की रात 1 बजे बेस कैंप से शुरू हुई। इस समय हाड़ कंपा देने वाली ठंड थी। रात में चढ़ाई इसलिए शुरू की गई ताकि सुबह तक चोटी पर पहुंचकर उसी दिन वापस लौटा जा सके, क्योंकि बर्फीले तूफानों में फंसने का खतरा रहता है। अंतिम चढ़ाई के दौरान सभी प्रतिभागियों के पास 8 से 10 किलो वजनी सामान था।
बर्फीली हवा और हाड़ गलाती ठंड
रात में चढ़ाई शुरू करने पर तापमान -30 डिग्री सेल्सियस था। इससे भी मुश्किल 40 से 50 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलने वाली बर्फीली हवाएं थीं, जिसने एक-एक कदम बढ़ाना मुश्किल कर दिया था। ऐसे अभियानों में छोटी सी गलती भी जानलेवा साबित हो सकती है, और नरेंद्र के ऊपर पूरे दल की जिम्मेदारी थी। नरेंद्र का अनुभव यहां काम आया, क्योंकि वह पहले भी अंटार्कटिका की सबसे ऊंची चोटी माउंट विंसन और उत्तरी अमेरिका की माउंट डेनाली को फतह कर चुके हैं, जहां उन्हें -52 डिग्री सेल्सियस तापमान में चढ़ाई करनी पड़ी थी।
नशा मुक्ति का संदेश का दिया
15 अगस्त को सुबह 9:15 बजे दल शिखर पर पहुंच गया। शिखर पर पहुंचते ही नरेंद्र यादव ने तुरंत 'जय श्री राम' और 'भारत माता की जय' के नारे लगाए और तिरंगा फहराया। इसके बाद उन्होंने पंपलेट दिखाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी के 'नशा मुक्त हरियाणा-नशा मुक्त भारत' अभियान का संदेश दिया।
फ्रॉस्टबाइट से पीड़ित, फिर भी नहीं हारे
यह जानकर आश्चर्य होगा कि नरेंद्र यादव के पैर पर्वतारोहण के कारण फ्रॉस्टबाइट (शीतदंश) का शिकार हो चुके हैं। यह एक ऐसी स्थिति है जब त्वचा और उसके नीचे के ऊतक अत्यधिक ठंड से जम जाते हैं। फ्रॉस्टबाइट के कारण 2 साल तक उनका उपचार चला था। अब उनके दोनों पैरों की अंगुलियां मुड़ती नहीं हैं, केवल सीधी ही रहती हैं। एक समय तो डॉक्टरों ने उनकी उंगलियां काटने तक के लिए कह दिया था, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। वहीं किर्गिज गणराज्य के पर्वतारोहण और खेल चढ़ाई संघ ने नरेंद्र को उनकी उपलब्धि के लिए प्रमाण पत्र और मेडल से सम्मानित किया।
अगला लक्ष्य है एक्सप्लोरर्स ग्रैंड स्लैम
नरेंद्र यादव ने बताया कि उनका अगला लक्ष्य 'एक्सप्लोरर्स ग्रैंड स्लैम' पूरा करना है, जिसमें सातों महाद्वीपों की चोटियों के साथ-साथ उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव तक पहुंचना शामिल है। इसके अलावा वह सातों महाद्वीपों के ज्वालामुखी पर्वतों पर चढ़ाई कर भारत का नाम और ऊंचाई पर पहुंचाना चाहते हैं। उनका अगला अभियान अक्टूबर में शुरू होगा।
नरेंद्र को उनकी मौसी की बेटी और प्रसिद्ध पर्वतारोही संतोष यादव से प्रेरणा मिली। संतोष यादव ने दो बार माउंट एवरेस्ट को फतह कर दुनिया की पहली महिला होने का रिकॉर्ड बनाया था, जिन्होंने दो बार एवरेस्ट पर चढ़ाई की हो। संतोष की उपलब्धि ने ही नरेंद्र को इस क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया।
