यूरोप की सबसे ऊंची चोटी पर तिरंगा: हरियाणा का वो पर्वतारोही फिर करेगा कमाल, जिसे डॉक्टर ने कहा था नहीं बचेंगे पैर

Narendra Yadav
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पर्वतारोही नरेंद्र यादव। 

पद्मश्री संतोष यादव से प्रेरणा लेकर पर्वतारोहण शुरू करने वाले नरेंद्र ने 12 साल की उम्र से ही यह सफर शुरू किया था। अब तक वह 23 विश्व रिकॉर्ड बना चुके हैं और 'सेवन समिट्स' पूरा करने वाले सबसे कम उम्र के भारतीय पर्वतारोही बन गए हैं।

हरियाणा के पर्वतारोही नरेंद्र यादव एक बार फिर से इतिहास रचने को तैयार हैं। यूरोप की सबसे ऊंची चोटी माउंट एल्ब्रुस को तीसरी बार फतह करने के लिए वह 6 अगस्त को भारत से रूस के लिए रवाना होंगे। समुद्र तल से 18,510 फीट की ऊंचाई वाली इस चोटी पर इस बार उनकी यात्रा खास होने वाली है। नरेंद्र यादव अंतरराष्ट्रीय टीम का नेतृत्व कर 15 अगस्त यानी भारत की आजादी के दिन इस विशाल शिखर पर तिरंगा फहराकर भारत का गौरव बढ़ाएंगे।

यह उपलब्धि इसलिए भी ऐतिहासिक है क्योंकि 2017 और 2023 में पहले ही दो बार माउंट एल्ब्रुस को फतह कर चुके नरेंद्र तीसरी बार सफल होने पर ऐसा करने वाले पहले भारतीय पर्वतारोही बन जाएंगे।

फ्रॉस्टबाइट को मात देकर बने पर्वतारोही

नरेंद्र यादव का जीवन संघर्ष और दृढ़ संकल्प की एक प्रेरणादायक कहानी है। आज से चार साल पहले, एक पर्वतारोहण अभियान के दौरान वे फ्रॉस्टबाइट (अत्यधिक ठंड से शरीर के अंग का जम जाना) का शिकार हो गए थे। स्थिति इतनी गंभीर थी कि डॉक्टरों ने उनके पैर काटने तक की सलाह दे दी थी। दो साल के लंबे इलाज के बाद उनके पैरों की उंगलियां अब पूरी तरह से सीधी रहती हैं और मुड़ नहीं पाती हैं।

यह शारीरिक चुनौती भी उनके हौसले को नहीं तोड़ पाई। इस कठिनाई के बावजूद, नरेंद्र ने सात महाद्वीपों की सबसे ऊंची चोटियों को सफलतापूर्वक फतह किया है, जो उनके अदम्य साहस और दृढ़ता का प्रमाण है।

नरेंद्र का पर्वतारोहण का सफर

नरेंद्र यादव का जन्म रेवाड़ी जिले के नेहरूगढ़ गांव में हुआ था। उनके पिता कृष्ण कुमार सेना में सूबेदार के पद से रिटायर हुए हैं और उनकी पत्नी ज्योति यादव एक कंप्यूटर इंजीनियर हैं। उनका बड़ा भाई हरियाणा पुलिस में है।

बहन से मिली प्रेरणा

नरेंद्र बताते हैं कि उनकी मौसेरी बहन पद्मश्री संतोष यादव उनकी सबसे बड़ी प्रेरणा हैं। संतोष यादव दो बार माउंट एवरेस्ट फतह करने वाली पहली भारतीय महिला हैं। उनके 1992 और 1993 के पूरी तरह सफल रहे अभियानों ने नरेंद्र को पर्वतारोहण के क्षेत्र में उतरने को प्रेरित किया। संतोष ने ऐसा करके दुनिया की पहली महिला होने का रिकॉर्ड बनाकर पूरे विश्व को चौंका दिया, जिन्होंने 8848 मीटर की चोटी को दो बार फतह किया।

12 साल की उम्र से शुरू हुई यात्रा

नरेंद्र की पर्वतारोहण यात्रा 12 साल की उम्र में शुरू हुई थी। अब तक वे 23 विश्व रिकॉर्ड अपने नाम कर चुके हैं। दिसंबर 2024 में 30 वर्ष की उम्र में उन्होंने 'सेवन समिट्स' (सातों महाद्वीपों की सबसे ऊंची चोटियां) को पूरा करके सबसे कम उम्र के भारतीय पर्वतारोही होने का रिकॉर्ड बनाया। नरेंद्र ने दो बार माउंट एवरेस्ट पर भी चढ़ाई करके रिकॉर्ड बनाया है, जिसमें एक बार तो बिना किसी पूर्व अनुकूलन के मात्र 6 दिनों में माउंट एवरेस्ट में चढ़कर सबको चौंका दिया था।

सबसे कठिन मिशन

नरेंद्र के अनुसार अंटार्कटिका की सबसे ऊंची चोटी माउंट विंसन और उत्तरी अमेरिका की माउंट डेनाली उनके लिए सबसे कठिन मिशन थे। इन अभियानों में उन्हें माइनस 52 डिग्री सेल्सियस के तापमान में चढ़ाई करनी पड़ी। अंटार्कटिका में तो उन्हें लगभग एक क्विंटल वजन (ऑक्सीजन सिलेंडर, कैंपिंग और खाने का सामान) भी साथ लेकर चलना पड़ा था।

पर्वतारोहण के अलावा नरेंद्र सामाजिक अभियान से भी जुड़े हैं

रन फॉर राम : नरेंद्र ने “रन फॉर राम” नामक एक अल्ट्रा मैराथन अभियान चलाया है। इस अभियान के तहत वे देश के चार कोनों से अयोध्या तक दौड़ लगाकर प्रभु श्री राम को श्रद्धांजलि दे रहे हैं। अब तक वे रामेश्वरम, सोमनाथ और बूढ़ा अमरनाथ से अयोध्या तक कुल 6211 किलोमीटर की दौड़ पूरी कर चुके हैं, जिसमें वे प्रतिदिन लगभग 51 किलोमीटर दौड़ते हैं। उनकी अंतिम दौड़ अरुणाचल प्रदेश से अयोध्या तक जनवरी 2026 में शुरू होगी।

पर्वतारोहण की तैयारी और खर्च

पर्वतारोहण के लिए नरेंद्र को नामी कंपनियों से स्पॉन्सरशिप मिलती है, लेकिन शुरुआत में उन्होंने खुद पैसे खर्च किए थे। अब तक वे पर्वतारोहण पर 5 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च कर चुके हैं। किसी भी अभियान से पहले, वे 20 दिनों की गहन ट्रेनिंग करते हैं, जिसमें वजन के साथ चढ़ाई और कठिन परिस्थितियों का अभ्यास शामिल होता है।

भविष्य की योजनाएं

नरेंद्र का अगला सपना एक्सप्लोरर ग्रैंड स्लैम को पूरा करना है, जिसमें सातों महाद्वीपों की चोटियों के साथ-साथ उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव तक पहुंचना शामिल है। इसके अलावा, वे सातों महाद्वीपों के ज्वालामुखी पर्वतों पर भी चढ़ाई करके भारत का नाम विश्व में और भी रोशन करना चाहते हैं।

नरेंद्र यादव का जीवन दर्शाता है कि सच्ची लगन और हिम्मत के आगे कोई भी मुश्किल बड़ी नहीं होती। उनके ये कारनामे न सिर्फ भारत का गौरव बढ़ा रहे हैं, बल्कि लाखों युवाओं को अपने सपनों को पूरा करने के लिए प्रेरित भी कर रहे हैं।

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