High Court: सुरक्षा में देरी जीवन के मौलिक अधिकार का उल्लंघन, प्रेमी जोड़े की याचिका पर हाईकोर्ट सख्त

Punjab Haryana High Court: पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने एक प्रेमी जोड़े से जुड़े मामले पर सुनवाई करते हुए उनकी सुरक्षा को लेकर टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि प्रेमी जोड़े को सुरक्षा देने में देरी करना, उनके मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। कोर्ट का कहना है कि सुरक्षा का आवेदन मिलते ही, खासतौर से विवाह संबंधी मामलों में सुरक्षा देना जरूरी है।
जस्टिस प्रमोद गोयल का कहना है कि सुरक्षा के मामलों में स्टेट अथॉरिटी की जिम्मेदारी बनती है कि वे पहले सुरक्षा दें, उसके बाद यह पता लगाने की कोशिश करें कि कोई खतरा है या नहीं। कोर्ट के मुताबिक, अगर व्यक्ति द्वारा आवेदन देने के बावजूद खासतौर से विवाह के मामले में जल्द सुरक्षा नहीं दी जाती, तो ऐसी स्थिति में अधिकारियों को समय पर सुरक्षा प्रदान न करने और किसी अप्रिय घटना के घटित होने पर एक या दूसरी रिपोर्ट मांगने में उनकी निष्क्रियता के लिए जिम्मेदार ठहराया जाएगा।
कोर्ट में दी याचिका
बता दें कि कोर्ट में एक ऐसे कपल ने याचिका दायर की थी, जिन्होंने अपनी पसंद से शादी की थी। जोड़े ने दुल्हन के पिता और भाई से बचाने के लिए सुरक्षा प्रदान करने की मांग की थी। 19 अक्टूबर को इस मामले में प्रतिवेदन दिया गया था, लेकिन इस पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। सरकारी वकील ने अदालत को बताया कि प्रतिवेदन केवल एक दिन पहले मिला है, सही समय पर फैसला लिया जाएगा। वकील के इस जवाब पर कोर्ट ने असहमति जताई और इसे 'पूरी तरह से अनिर्णायक' बताया।
कोर्ट ने कहा, 'इस तरह के जवाब से SHO को यह फैसला लेने का विवेकाधिकार मिल गया कि संरक्षण दिया जाए या नहीं, जिसकी कानून अनुमति नहीं देता।' जस्टिस गोयल ने कहा, 'सुरक्षा के अनुरोध नौकरशाही की लालफीताशाही में नहीं उलझाए जा सकते।' उन्होंने कहा कि नोडल अधिकारी का कर्तव्य है कि आवेदन प्राप्त होते ही तुरंत सुरक्षा प्रदान करें और उसके बाद उचित जांच करें।
अदालत ने कहा कि जीवन को खतरे से जुड़े मामले में तुरंत फैसला लेना जरूरी है, इसमें देरी नहीं की जा सकती। सुरक्षा से मना करना नागरिक के जीवन के अधिकार का उल्लंघन है। पीठ ने आगे कहा, 'यदि कोई व्यक्ति अधिकारियों से संपर्क करने के बावजूद असुरक्षित रहता है, तो सुरक्षा का उद्देश्य असफल हो जाता है।'
न्यायमूर्ति ने और क्या कहा?
न्यायमूर्ति गोयल ने कहा कि कोर्ट ने बार-बार सम्मान-आधारित हिंसा के खतरे को पहचाना है। उन्होंने कहा कि ऐसे युवा लड़के-लड़कियां जो अपने माता-पिता की इच्छा या समाज द्वारा निर्धारित मानदंडों के खिलाफ जाकर विवाह करते हैं, उनके खिलाफ हिंसा होती है। कोर्ट हमेशा से समाज में व्याप्त सामाजिक-आर्थिक स्थिति से पूरी तरह परिचित रहा है। पीठ का कहना है कि अधिकारियों को अपने कार्यों की ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए।
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