फर्जी खेल प्रमाणपत्रों पर शिकंजा: 76 सर्टिफिकेट संदिग्ध मिलने पर हरियाणा सरकार सख्त, अब आधार और जन्मतिथि जरूरी

Fake sports certificate
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हरियाणा में फर्जी खेल प्रमाणपत्रों पर नकेल कसी। 

फर्जीवाड़े को रोकने के लिए अब खेल प्रमाणपत्र जारी करते समय आधार कार्ड नंबर, जन्मतिथि और माता-पिता का नाम दर्ज करना अनिवार्य होगा। यह कदम सुनिश्चित करेगा कि केवल असली और योग्य खिलाड़ियों को ही इसका लाभ मिले।

हरियाणा जिसे अक्सर 'खेलों की नर्सरी' कहा जाता है। अब यह एक ऐसे बड़े विवाद का केंद्र बन गया है जिसने राज्य में सरकारी नौकरियों के लिए खेल कोटे के दुरुपयोग को उजागर किया है। एक चौंकाने वाले खुलासे में हरियाणा ओलिंपिक एसोसिएशन ने पाया है कि सरकारी नौकरी पाने के लिए 76 खेल ग्रेडेशन सर्टिफिकेट संदिग्ध हैं। इस बड़े पैमाने पर हो रहे फर्जीवाड़े पर लगाम लगाने के लिए अब एसोसिएशन ने कड़े कदम उठाए हैं। यह पूरा मामला न केवल भ्रष्टाचार को उजागर करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि कैसे कुछ अधिकारी और व्यक्ति मिलकर योग्य खिलाड़ियों का हक छीन रहे थे।

खेल कोटे के तहत सरकारी नौकरियां देने की नीति बनाई

हरियाणा सरकार ने खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करने के लिए खेल कोटे के तहत सरकारी नौकरियां देने की एक नीति बनाई है। इस नीति के तहत खिलाड़ी अपने मेडल और भागीदारी के आधार पर ग्रेडेशन सर्टिफिकेट प्राप्त करते हैं, जो उन्हें नौकरी पाने में मदद करता है। लेकिन इस नीति का फायदा उठाकर कुछ लोगों ने फर्जी खेल प्रमाणपत्र बनवाने शुरू कर दिए। सरकार को लगातार इन फर्जीवाड़े की शिकायतें मिल रही थीं, जिसके बाद तत्कालीन खेल महानिदेशक संजीव वर्मा ने मामले की जांच कराई।

जांच में जो सामने आया वह बेहद चौंकाने वाला था। खेल निदेशालय की ग्रेडेशन वेरिफिकेशन कमेटी ने 76 खेल ग्रेडेशन सर्टिफिकेट को संदिग्ध पाया। हैरानी की बात यह है कि ये सभी सर्टिफिकेट 2018 से 2022 के बीच जारी हुए थे। कमेटी ने इन सभी प्रमाणपत्रों को फर्जी मानते हुए उन्हें रद्द करने की सिफारिश की है।

अधिकारी भी फर्जी प्रमाणपत्रों के गोरखधंधे में शामिल पाए गए

इस मामले का सबसे गंभीर पहलू यह है कि जिन अधिकारियों को इन फर्जी प्रमाणपत्रों को रोकने और रद्द करने का जिम्मा सौंपा गया था, वे खुद इस गोरखधंधे में शामिल पाए गए। जांच में पाया गया है कि खेल उप निदेशक भी ग्रेड सी और ग्रेड डी के फर्जी सर्टिफिकेट जारी करने में संलिप्त थे। खेल उप निदेशक मंजीत सिंह ने अंबाला, रोहतक, गुरुग्राम और हिसार के खेल उप निदेशकों को 76 खिलाड़ियों की एक सूची भेजी, जिनके प्रमाणपत्रों को नियमों के विरुद्ध पाया गया है। यह दिखाता है कि कैसे कुछ भ्रष्ट अधिकारियों ने मिलकर पूरी व्यवस्था को कमजोर कर दिया था।

फर्जीवाड़े पर नकेल कसने की नई पहल

इस बड़े खुलासे के बाद, हरियाणा ओलिंपिक एसोसिएशन ने तुरंत कार्रवाई की है। संघ ने राज्य की सभी खेल एसोसिएशनों और जिला खेल अधिकारियों को सख्त निर्देश जारी किए हैं। अब किसी भी खिलाड़ी का खेल प्रमाणपत्र जारी करते समय कुछ महत्वपूर्ण जानकारी दर्ज करना अनिवार्य होगा। जैसे आधार कार्ड नंबर, जन्म तिथि और माता-पिता का नाम।

इसके अलावा, मेरिट में आने वाले खिलाड़ियों के प्रमाणपत्रों की सही तरीके से जांच की जाएगी और तभी उनका वितरण किया जाएगा। इस पहल से फर्जीवाड़ा करने वालों के रास्ते बंद हो जाएंगे और केवल वास्तविक और योग्य खिलाड़ियों को ही उनका हक मिल पाएगा।

काफी पुरानी है खेल कोटे से सरकारी नौकरी देने की नीति

हरियाणा में खेल कोटे से सरकारी नौकरी देने की नीति काफी पुरानी है। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने ओलिंपिक, कॉमनवेल्थ और एशियाई खेलों के विजेताओं को सीधे पुलिस में डीएसपी, इंस्पेक्टर और सब-इंस्पेक्टर लगाने की शुरुआत की थी। इसके बाद मनोहर लाल की सरकार ने इस नीति में बदलाव किए और एचसीएस जैसे पदों पर भी सीधी भर्ती का निर्णय लिया।

मनोहर पार्ट-टू सरकार में खेल विभाग में ही डिप्टी डायरेक्टर के नए पद सृजित किए गए थे। अब मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी की सरकार ने भी कई विभागों में खेल कोटे की नौकरियां बहाल कर दी हैं। जिन खिलाड़ियों के प्रमाणपत्र अब रद्द होंगे, उन्हें हरियाणा की 25 मई 2018 को अधिसूचित संशोधित खेल नीति के अनुसार अपना प्रमाण पत्र फिर से बनवाना होगा।

जिलेवार फर्जीवाड़े का जाल

यह फर्जीवाड़ा केवल कुछ जिलों तक सीमित नहीं था, 15 जिलों के जिला खेल अधिकारियों को भी इन संदिग्ध प्रमाणपत्रों वाले खिलाड़ियों की सूची भेजी गई है। इन जिलों में भिवानी, चरखी दादरी, फरीदाबाद, फतेहाबाद, हिसार, झज्जर, जींद, कैथल, करनाल, कुरुक्षेत्र, नारनौल, पलवल, पानीपत, रोहतक और सोनीपत शामिल हैं।

कुल 76 संदिग्ध प्रमाणपत्रों में से 27 खिलाड़ियों के पास ग्रेड-सी के सर्टिफिकेट थे, जबकि बाकी के पास ग्रेड-डी के सर्टिफिकेट थे। यह संख्या दर्शाती है कि यह समस्या कितनी व्यापक थी।

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