हाईकोर्ट का कड़ा रुख: जोर देकर कहा- नई इमारत सिर्फ चंडीगढ़ में ही बननी चाहिए, प्रशासन को 7 अगस्त को बुलाया

Punjab-Haryana High Court
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पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट। 

कोर्ट ने साफ कर दिया है कि वह किसी अन्य स्थान को लेकर पंजाब और हरियाणा के बीच कोई विवाद नहीं चाहता। चंडीगढ़ प्रशासन ने हाईकोर्ट के लिए आईटी पार्क में जमीन देने से इनकार कर दिया था, जिसके बाद कोर्ट ने प्रशासन की दलीलों पर तीखी टिप्पणी की।

पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने अपनी नई इमारत के लिए चंडीगढ़ में ही जगह देने की मांग पर जोर दिया है। इस मुद्दे पर कोर्ट ने अपनी स्थिति पूरी तरह से स्पष्ट कर दी है कि वह किसी अन्य स्थान को लेकर पंजाब और हरियाणा के बीच किसी भी विवाद का कारण नहीं बनना चाहता। चंडीगढ़ प्रशासन ने हाईकोर्ट के लिए आईटी पार्क में जमीन देने से इनकार कर दिया है, जिसके बाद कोर्ट ने सभी संबंधित पक्षों को 7 अगस्त को एक बैठक करके अन्य विकल्पों पर विचार करने और सुझाव सौंपने का आदेश दिया है।

यह मामला केवल एक नई इमारत का नहीं, बल्कि चंडीगढ़ की पहचान, शहर के भविष्य और दो राज्यों के बीच संबंधों का भी है। हाईकोर्ट की यह दृढ़ मांग यह दर्शाती है कि न्यायपालिका अपनी स्वायत्तता और स्थान के ऐतिहासिक महत्व को लेकर कितनी गंभीर है।

आईटी पार्क की जमीन का उपयोग केवल तकनीकी विकास के लिए निर्धारित

हाईकोर्ट ने जब चंडीगढ़ प्रशासन से आईटी पार्क में नई इमारत के लिए जमीन देने की बात कही, तो प्रशासन ने इसके खिलाफ कई दलीलें दीं। प्रशासन ने कहा कि आईटी पार्क की जमीन का उपयोग केवल तकनीकी विकास के लिए निर्धारित है और मास्टर प्लान में इसका लैंड यूज बदलना संभव नहीं है।

इसके अलावा, प्रशासन का तर्क था कि हाईकोर्ट परिसर के लिए जितनी बड़ी जमीन की आवश्यकता है, वह आईटी पार्क में उपलब्ध नहीं है। एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू यह भी था कि आईटी पार्क में बहुत ऊंची इमारतें नहीं बनाई जा सकतीं, क्योंकि यह क्षेत्र सुखना वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी के करीब है। ऊंची इमारतें पक्षियों के आवागमन को प्रभावित कर सकती हैं, जो पर्यावरण के लिए हानिकारक होगा।

कोर्ट की तीखी टिप्पणी

प्रशासन की दलीलों पर हाईकोर्ट ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि अगर आईटी पार्क बन सकता है, होटल ललित बन सकता है, तो हाईकोर्ट की इमारत क्यों नहीं बन सकती? कोर्ट ने यह भी कहा कि चंडीगढ़ प्रशासन को 60 के दशक की पुरानी सोच से बाहर आना चाहिए और शहर को भविष्य की जरूरतों के हिसाब से बसाना चाहिए।

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि उनकी यह मांग केवल मौजूदा जरूरतों के लिए नहीं है, बल्कि भविष्य की आवश्यकताओं को देखते हुए है। जजों के 85 मंजूर पदों को कल को बढ़ाकर 100 किया जा सकता है, ऐसे में पर्याप्त स्थान का होना बेहद जरूरी है। कोर्ट ने कहा कि वे अतिरिक्त भूमि सिर्फ अपने लिए नहीं, बल्कि न्याय व्यवस्था से जुड़े सभी लोगों के लिए मांग रहे हैं।

शहर में बढ़ती यातायात की समस्या पर भी चिंता व्यक्त की

हाईकोर्ट ने शहर में बढ़ती यातायात की समस्या पर भी चिंता व्यक्त की। कोर्ट ने कहा कि गेट 1 से लेकर रॉक गार्डन तक वाहनों की अत्यधिक भीड़ होती है, क्योंकि शहर का प्लान 60 के दशक में तैयार किया गया था और आज की स्थिति पूरी तरह से बदल चुकी है। कोर्ट ने सवाल उठाया कि जब मौजूदा दो रास्ते पर्याप्त नहीं हैं, तो तीसरा रास्ता क्यों नहीं बनाया जा सकता?

इस पर, चंडीगढ़ प्रशासन ने एक नया समाधान पेश किया। उन्होंने बताया कि पीजीआईएमईआर से सारंगपुर के बीच 4 लेन का एक नया फ्लाई ओवर बनाने का प्रस्ताव है। यह फ्लाई ओवर खुड्डा लोहरा के रास्ते से होकर निकलेगा, जिससे यातायात का दबाव कम होगा। प्रशासन ने बताया कि इस प्रस्ताव को चंडीगढ़ हेरिटेज कंजर्वेशन कमेटी की उप-समिति के पास भेजा गया है और निर्माण कार्य करीब डेढ़ साल में पूरा हो जाएगा।

हाईकोर्ट के लिए सारंगपुर में वैकल्पिक स्थान का प्रस्ताव दिया

चंडीगढ़ प्रशासन ने हाईकोर्ट के लिए सारंगपुर में एक वैकल्पिक स्थान का प्रस्ताव दिया है। यह एक महत्वाकांक्षी योजना है, जिसमें लगभग 42 लाख वर्ग फुट का कवर एरिया प्रस्तावित है। प्रशासन का दावा है कि यह जगह मौजूदा आवश्यकताओं से कहीं अधिक है और आगामी 50 वर्षों तक हाईकोर्ट की सभी जरूरतों को पूरा करने में सक्षम होगी। इस योजना में करीब 140 कोर्ट रूम बनाए जाने की योजना है।

हालांकि, हाईकोर्ट ने इस प्रस्ताव पर अभी तक कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया है। कोर्ट की प्राथमिकता यही है कि उसकी इमारत चंडीगढ़ की सीमा में ही रहे, ताकि दो राज्यों के बीच कोई नया विवाद खड़ा न हो। कोर्ट ने अपनी भावनाएं भी व्यक्त कर कहा कि वे इस इमारत से भावनात्मक रूप से जुड़े हुए हैं और इसे छोड़ना नहीं चाहते। न्यायपालिका और प्रशासन के बीच यह वार्तालाप दिखाता है कि कैसे एक आधुनिक शहर में विकास, विरासत और न्यायपालिका की जरूरतों के बीच संतुलन बनाना एक जटिल चुनौती है। 7 अगस्त की बैठक के बाद ही यह स्पष्ट हो पाएगा कि हाईकोर्ट की नई इमारत का भविष्य क्या होगा।

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