Narnaul: धनौंदा के एमएससी पास किसान ने रेतीले टीलों में उगाई स्ट्राबेरी, लाखों का कमा रहा मुनाफा 

Strawberry cultivation prepared by farmer Deepak in Dhanaunda
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धनौंदा में किसान दीपक की ओर से तैयार की गई स्ट्राबेरी की खेती।
गांव धनौंदा निवासी एमएससी पास किसान दीपक ने रेतीले टीलों पर स्ट्राबेरी की खेती कर किसानों को आकर्षित किया। निजी स्कूल में अध्यापन का कार्य छोड़ा और अब लाखों कमा रहे हैं।

Narnaul: कनीना उपमंडल के गांव धनौंदा निवासी एमएससी पास किसान दीपक ने रेतीले टीलों पर स्ट्राबेरी की खेती कर किसानों को आकर्षित किया। निजी स्कूल में अध्यापन का कार्य छोड़कर दीपक ने बागवानी विभाग से प्रशिक्षण लेकर कृषि कार्य शुरू किया, जो अब महारत हासिल कर रहा है। उनके पास चार कामगार कार्य कर रहे हैं। अब वह नौकरी करने वाला नहीं बल्कि नौकरी देने वाला है। पिछले करीब पांच वर्ष से बदलकर खेती कर रहा है, जिसका खासा फायदा मिल रहा है।

हिमाचल से लेकर आया था स्ट्राबेरी की पौध

किसान दीपक ने बताया कि उन्होंने हिमाचल प्रदेश से पौध लाकर एक एकड़ भूमि में स्ट्राबेरी की खेती की, जो बेहतरीन हालात में है। यह मार्च माह तक तैयार होगी। एक एकड़ स्ट्राबेरी पर तीन लाख रुपए की लागत आई थी, अब तक उनकी ओर से तीस हजार रुपए की बिक्री की जा चुकी है। इस खेती पर उन्हें एक लाख रुपए का मुनाफा होने की उम्मीद है। प्रदेश सरकार की ओर से भिवानी जिले के किसानों को 40 हजार रुपए प्रति एकड़ का अनुदान दिया जा रहा है, जबकि महेन्द्रगढ़ जिले के किसानों को अनुदान से वंचित रखा गया है। फसल को सर्दी से बचाने के लिए मल्चिंग विधि को अपनाया गया है। इसी विधि के अनुरूप उनकी ओर से तरबूज लगाया गया है। जिस पर बागवानी विभाग की ओर से 40 हजार रुपए प्रति एकड़ के हिसाब से अनुदान का प्रावधान है।

पूर्ण रूप से कर रहा प्राकृतिक खेती

प्रगतिशील किसान दीपक ने बताया कि वह पूर्ण रूप से प्राकृतिक खेती कर रहा है। जिसमें स्वयं की ओर से तैयार की गई वर्मी कम्पोस्ट खाद का इस्तेमाल किया जाता है। उनकी ओर से वर्मी कम्पोस्ट खाद चार बैड से बनाना शुरू किया था, आज उनके पास करीब 100 बैड बने हुए है, जिनसे वर्मी कंपोस्ट खाद तैयार की जा रही है। किसान की ओर से इस खाद की 700 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से बिक्री की जाती है। जिससे अच्छा खासा मुनाफा होता है। खाद को लेने किसान दूर-दूराज से आते है। प्रदेश सरकार की ओर से खाद का प्लांट लगाने पर लागत का 50 प्रतिशत अनुदान दिया जाता है। फसल में सिंचाई के लिए 75 फीसदी अनुदान पर सोलर सिस्टम लगाया हुआ है, जिससे बिजली का इंतजार नहीं करना पड़ता। मिनी स्प्रिंकलर सिस्टम से सिंचाई की जाती है जिससे बिजली व पानी दोनों की बचत होती है।

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