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हरियाणा के सोनीपत लोकसभा चुनाव में भाजपा व कांग्रेस को जहां भीतरघात का भय सता रहा है, वहीं इनेलो को अपनी पुरानी साख वापस लाने का प्रेशर बना हुआ है। उधर जजपा को पिछले चुनाव की अपेक्षा बेहतर प्रदर्शन करने की उम्मीद है। अब देखना यह होगा कि चुनाव का परिणाम किस तरफ जाएगा।

दीपक वर्मा, सोनीपत: घर का भेदी लंका ढहाए, कहावत बहुत पुरानी है, लेकिन असरदार आज भी है। सोनीपत लोकसभा के रण में डटे धुरंधरों को परेशान भी कर रही है। विशेषतौर पर भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशियों को अपनों की नाराजगी का खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। खास बात यह है कि प्रत्यक्ष तौर पर गुटबाजी दिखाने वाली कांग्रेस के नेता फिलहाल तो सार्वजनिक मंचों पर एकजुट नजर आ रहे हैं। वहीं कड़े अनुशासन वाली पार्टी मानी जाने वाली भाजपा के कुछ नेता सार्वजनिक मंच भी सांझा करने से बच रहे हैं। राजनीतिक पंडितों की मानें तो भाजपा और कांग्रेस में भीतराघात दोनों ही प्रत्याशियों के लिये खतरनाक हो सकता है, लेकिन किस प्रत्याशी के लिए ज्यादा और किसके लिए कम खतरनाक होगा, ये चुनावी नतीजे ही बताएंगें।

इनेलो पर पुरानी साख लाने का दबाव, जजपा को अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद

बात करें जजपा और इनेलो की तो, इनेलो प्रत्याशी अपनी पार्टी की पुरानी साख वापस लाने के दबाव में हैं। जबकि जजपा प्रत्याशी पर पिछली बार के प्रदर्शन को बढ़ाने की उम्मीद है। हालांकि जजपा ने सोमवार को ही भूपेंद्र मलिक को अपना प्रत्याशी घोषित किया है। 2019 में जजपा की टिकट पर बरोदा से विधानसभा चुनाव लड़ चुके भूपेंद्र मलिक गांव भैंसवाल कलां के निवासी हैं और जजपा के राष्ट्रीय सचिव भी हैं। वहीं इनेलो अपनी टिकट पूर्व एसपी एवं द्रोणाचार्य अवार्डी अनूप दहिया को दे चुकी है। इसके अलावा कांग्रेस ने तीन दिन पहले ही सफींदों के पंडित सतपाल ब्रह्मचारी को टिकट दिया था, जबकि भाजपा ने काफी समय पहले ही राई से विधायक मोहन लाल बड़ौली को चुनावी रण में उतार दिया था।

भाजपा की दिक्कत, खुलकर सामने आ रही है कलह

सोनीपत लोकसभा चुनावों के अभी तक के प्रचार में सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि टिकट के दावेदार रह चुके दो-तीन नेता सार्वजनिक मंचों पर मोहन लाल बड़ौली के साथ मंच सांझा करने से कतरा रहे हैं। इसमें से एक नेता को सार्वजनिक मंच पर लाना भी खतरनाक हो सकता है। बड़े विवाद में फंसे होने के कारण ये नेता खुद भी दूर हैं। वहीं अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी से नेता बनने वाले भी बड़ौली से दूरी बनाए हुए हैं। अनुशासन प्रिय पार्टी के इन दावेदार नेताओं में से कुछ तो सार्वजनिक तौर पर बड़ौली के खिलाफ भी बोलते सुने गए हैं। हालांकि टिकट के दावेदारों में शामिल रहे पूर्व जिलाध्यक्ष तीर्थ राणा, आजाद नेहरा पूरी तरह से बड़ौली का साथ निभा रहे हैं।

कांग्रेस की कलह नहीं आ रही सामने

कांग्रेस ने जिस तरह से पंडित सतपाल ब्रह्मचारी को टिकट दिया है, उससे 79 दावेदारों में शामिल दो-तीन बड़े नाम रोष में हैं। इनमें से कुछ ने तो टिकट के चक्कर में ही कांग्रेस ज्वाइन की थी। कमाल की बात ये है कि कांग्रेस में गुटबाजी और फूट हमेशा ही सामने दिख जाती थी, लेकिन इस बार सार्वजनिक जगहों पर यह गुटबाजी दिखाई नहीं दे रही। हालांकि एक-दो दावेदार सतपाल ब्रह्मचारी के कार्यक्रमों से दूरी जरूर बनाए हुए हैं। इसके बावजूद जो ज्यादा हैवीवेट दावेदार थे, वे प्रत्याशी के साथ ही दिखाई दे रहे हैं।

इनेलो और जजपा की मेहनत कांग्रेस को नुकसान

इनेलो के प्रत्याशी अनूप दहिया हो या फिर हालिया घोषित जजपा के भूपेंद्र मलिक। ये दोनों ही प्रत्याशी जितनी भी मेहनत करेंगे, उतना ही कांग्रेस को नुकसान करेंगे। 2005 के बाद से जो वोट बैंक धीरे-धीरे अब कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक बन गया है। उस वोट बैंक में इनेलो व जजपा प्रत्याशी सेंधमारी कर सकते हैं। इसीलिए कांग्रेस प्रत्याशी को इन चुनावों में दोहरी मार से बचना होगा।

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