यू-ट्यूबर ज्योति मल्होत्रा को झटका: हाईकोर्ट से जमानत याचिका खारिज, जांच में बाधा व सुरक्षा को माना खतरा

हिसार की यू-ट्यूबर ज्योति मल्होत्रा।
हरियाणा के हिसार से पाकिस्तान के लिए जासूसी करने के आरोप में गिरफ्तार की गई यू-ट्यूबर ज्योति मल्होत्रा की जमानत याचिका को हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया। जमानत याचिका को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि आरोपी के खिलाफ इलेक्ट्रॉनिक गजेट से बरामद फोरेंसिक मटेरियल व मल्टी-एजेंसी सेंटर खुफिया इनपुट और एक विदेशी अधिकारी के साथ संपर्कों की गतिविधियों से इसकी आशंका बनती है। आरोपी के जमानत पर रिहा होने से जांच में बाधा पहुंचा सकती है और सुरक्षा में भी खतरा हो सकता है।
प्रथम दृष्टयता में मामला गंभीर
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि रिकार्ड में प्रथम दृष्टता सरकारी गोपनीयता अधिनियम व बीएनएस प्रावधानों के तहत मामला गंभीर है। आरोपी के लेक्ट्रॉनिक गजेट से बरामद फोरेंसिक मटेरियल, एसएमएसी (मल्टी-एजेंसी सेंटर) खुफिया इनपुट और एक विदेशी अधिकारी के साथ संपर्कों की गतिविधियां से इसकी गंभीरता का भी पता चलता है। डिजिटल साक्ष्य के साथ छेड़छाड़ की सुविधा प्रदान कर सकती है, या अन्यथा सार्वजनिक हित और राष्ट्रीय सुरक्षा के विपरीत हो सकती है। न्यायालय ने कहा कि सार्वजनिक हित और राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी विचार विशेष महत्व रखते हैं, जहां आरोप, यदि सिद्ध हो जाएं तो, राज्य के संप्रभु हित को क्षति पहुंचाएंगे।
16 मई को हुई थी गिरफ्तारी
हिसार पुलिस ने ट्रैवल विद जेओ की संचालक हिसार निवासी ज्योति मल्होत्रा को 16 मई को आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम और भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के प्रावधानों के तहत गिरफ्तार किया था। मल्होत्रा फिलहाल न्यायिक हिरासत में हैं। अपने विस्तृत आदेश में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश डॉ. परमिंदर कौर की अदालत ने नियमित जमानत याचिका खारिज कर दी। डिजिटल साक्ष्य के साथ छेड़छाड़ की सुविधा प्रदान कर सकती है, या अन्यथा सार्वजनिक हित और राष्ट्रीय सुरक्षा के विपरीत हो सकती है। न्यायालय ने कहा कि सार्वजनिक हित और राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी विचार विशेष महत्व रखते हैं, जहां आरोप, यदि सिद्ध हो जाएं तो, राज्य के संप्रभु हित को क्षति पहुंचाएंगे।
यह बोला हाईकोर्ट
हाईकोर्ट ने कहा कि अदालतों को यह ध्यान रखना चाहिए कि जमानत देने से सार्वजनिक व्यवस्था या सुरक्षा को खतरा हो या आरोपी प्रक्रिया को विफल करने की स्थिति में हो तो उसे जमानत नहीं दी जानी चाहिए। ऐसे मामलों का अंततः परीक्षण किया जाना चाहिए और अभियुक्त को आरोपों का विरोध करने का अधिकार है। इसमें यह भी कहा गया कि जमानत पर विचार करते समय न्यायालय को उस स्तर पर उपलब्ध साक्ष्यों की समग्रता पर विचार करना चाहिए।
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