शक्ति और आस्था: कुरुक्षेत्र के आदि शक्तिपीठ श्री देविकूप भद्रकाली मंदिर में कीजिए विशेष पूजा

कुरुक्षेत्र का भद्रकाली मंदिर।
हरियाणा के कुरुक्षेत्र में स्थित श्री देविकूप भद्रकाली मंदिर, हिंदू धर्म के सबसे पूजनीय और प्राचीन तीर्थस्थलों में से एक है। धार्मिक श्रेणी में यह मंदिर न केवल आस्था का केंद्र है, बल्कि इसे 'सावित्री पीठ', 'देवी पीठ', 'कालिका पीठ' या 'आदि पीठ' जैसे कई अन्य नामों से भी जाना जाता है। इस शक्तिपीठ का विशेष महत्व इसकी पौराणिक कथाओं और महाभारत काल से इसके गहरे जुड़ाव के कारण है।
शक्तिपीठ की पौराणिक कथा
भद्रकाली मंदिर को 52 पवित्र शक्तिपीठों में से एक माना जाता है, जो देवी भगवती की शक्ति का प्रतीक हैं। शास्त्रों के अनुसार, यह स्थान उस समय अस्तित्व में आया जब देवी भगवती ने अपने पति, भगवान शिव के अपमान को सहन न कर पाने के कारण 'सती' होकर अपने प्राण त्याग दिए।
देवी के मृत शरीर को हृदय से लगाए हुए, व्यथित भगवान शिव पूरे ब्रह्मांड में घूमने लगे। इस भयावह दृश्य और सृष्टि के संतुलन को बनाए रखने के लिए, भगवान विष्णु ने अपने 'सुदर्शन चक्र' का उपयोग किया और सती के मृत शरीर को 52 भागों में काट दिया। वे भाग जहां-जहां गिरे, वे स्थान पवित्र 'शक्तिपीठ' कहलाए। यह मान्यता है कि कुरुक्षेत्र स्थित श्री देविकूप भद्रकाली मंदिर में ही माता सती का दाहिना घुटना गिरा था, जिसके कारण यह स्थान अत्यंत पवित्र माना जाता है।
महाभारत से जुड़ाव
इस मंदिर का इतिहास केवल सती की गाथा तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह महाभारत की ऐतिहासिक भूमि से भी जुड़ा हुआ है। पौराणिक आख्यानों में कहा गया है कि महाभारत का महायुद्ध शुरू होने से पहले, विजय का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए, पांडवों ने भगवान कृष्ण के साथ यहां देवी भद्रकाली की पूजा-अर्चना की थी।
देवी से आशीर्वाद प्राप्त करने के बाद पांडवों ने अपने विजय रथों के घोड़े देवी को दान कर दिए थे। इसी प्राचीन घटना ने मंदिर में एक अनूठी और गहरी परंपरा को जन्म दिया है, जो आज भी कायम है।
मनोकामना पूर्ण होने पर घोड़ों का दान
पांडवों द्वारा रथों के घोड़े दान करने की परंपरा के सम्मान में, आज भी भक्तगण अपनी इच्छाएं पूरी होने के बाद चांदी, मिट्टी या अन्य धातुओं से बने घोड़ों को देवी को अर्पित करते हैं। यह दान भक्त की क्षमता और श्रद्धा पर निर्भर करता है। यह रीति-रिवाज मंदिर की पहचान बन गई है और दूर-दूर से श्रद्धालु इस अनूठी परंपरा को निभाने के लिए यहां आते हैं।
इसके अतिरिक्त, बाल्यकाल में भगवान श्रीकृष्ण और उनके बड़े भाई बलराम का मुंडन (टोंसूर) समारोह भी इसी पवित्र देविकूप भद्रकाली मंदिर में संपन्न हुआ था, जो इस स्थल के धार्मिक महत्व को और भी बढ़ाता है।
मंदिर तक पहुंचने के साधन
कुरुक्षेत्र एक प्रमुख धार्मिक और ऐतिहासिक केंद्र होने के कारण देश के महत्वपूर्ण शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।
• वायुमार्ग (Airways): मंदिर तक पहुंचने के लिए निकटतम हवाई अड्डे दिल्ली (लगभग 160 किलोमीटर दूर) और चंडीगढ़ में स्थित हैं। इन हवाई अड्डों से कुरुक्षेत्र के लिए टैक्सी और परिवहन सेवाएं आसानी से उपलब्ध हैं।
• रेलमार्ग (Railways): कुरुक्षेत्र जंक्शन रेलवे स्टेशन मुख्य दिल्ली-अंबाला रेलवे लाइन पर स्थित है। यह स्टेशन देश के सभी महत्वपूर्ण शहरों से रेल मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है। शताब्दी एक्सप्रेस जैसी प्रमुख ट्रेनें भी यहां रुकती हैं, जिससे भक्तों के लिए यात्रा सुगम हो जाती है।
• सड़कमार्ग (Roadways): कुरुक्षेत्र राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 1 (NH-1) से पिपली नामक स्थान से लगभग 6 किलोमीटर की दूरी पर है। हरियाणा रोडवेज और अन्य पड़ोसी राज्य परिवहन निगमों की बसें कुरुक्षेत्र को दिल्ली (160 किमी), चंडीगढ़, अंबाला (40 किमी) और करनाल (39 किमी) जैसे शहरों से लगातार जोड़ती हैं।
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