कैथल का वीर सपूत पंचतत्व में विलीन: लद्दाख में शहीद हुए थे संजय, पत्नी और बेटे ने दी अंतिम सलामी

Martyred soldier
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शहीद जवान को सलामी देती सेना की टुकड़ी। 

परिवार ने बताया कि लद्दाख में अत्यधिक ठंड और तूफान के कारण संजय के सिर में खून जम गया, जिससे उनकी शहादत हुई। वह 2004 में सेना में भर्ती हुए थे और परिवार के आग्रह के बावजूद देश सेवा के लिए दो साल और ड्यूटी पर रहने को इच्छुक थे। उनकी शहादत पर गांव में शोक के साथ गर्व का माहौल है।

लेह-लद्दाख में देश की सेवा करते हुए सर्वोच्च बलिदान देने वाले हरियाणा के वीर जवान संजय सिंह सैनी (39) आज अपने पैतृक गांव कवारतन, कैथल में पंचतत्व में विलीन हो गए। बुधवार को राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया। शहीद को उनके छोटे बेटे ने मुखाग्नि दी, जिसके बाद पूरा माहौल भारत माता की जय और शहीद संजय सिंह अमर रहें के नारों से गूंज उठा। इस दौरान हजारों नम आंखों ने अपने लाडले सपूत को अंतिम विदाई दी।

राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई

शहीद संजय सिंह सैनी का पार्थिव शरीर बुधवार दोपहर 3 बजे के बाद उनके पैतृक गांव कवारतन पहुंचा। जवान के अंतिम दर्शनों के लिए उनके घर पर कुछ देर के लिए पार्थिव शरीर को रखा गया था। इस दौरान परिवार और गांव के लोग अपने वीर सपूत को अंतिम बार देख सके। इसके बाद, एक विशाल अंतिम यात्रा शुरू हुई, जिसमें हजारों की संख्या में ग्रामीण, परिजन और स्थानीय नेता शामिल हुए। श्मशान घाट में शहीद जवान को उनकी पत्नी और बेटे ने सैन्य सम्मान के साथ सैल्यूट किया। इस दौरान मौजूद हर आंख नम थी, लेकिन हर चेहरे पर गर्व का भाव भी स्पष्ट झलक रहा था। संजय सेना की 10 सिख रेजिमेंट में तैनात थे।

ठंड में खून जमने से शहादत

परिवार के सदस्यों ने बताया कि लेह-लद्दाख जैसे अत्यधिक ऊंचाई वाले क्षेत्र में अचानक तूफान आने के बाद ठंड बहुत ज्यादा बढ़ गई थी। इसी अत्यधिक ठंड के कारण संजय के सिर में खून जम गया, जिससे उनके शरीर में रक्त का संचार रुक गया और वे वहीं शहीद हो गए। मंगलवार को उनका सेना के अस्पताल में पोस्टमॉर्टम कराया गया। बुधवार दोपहर को उनका पार्थिव शरीर हेलिकॉप्टर से चंडीगढ़ लाया गया, जिसके बाद सड़क मार्ग से पैतृक गांव लाया गया। उनके पिता का निधन मात्र 3 महीने पहले हुआ था। तब से वह छुट्टी लेकर गांव आए थे।

कहते थे...अभी 2 साल और सेवा करनी है...

शहीद संजय सिंह के बड़े भाई जागर सिंह ने बताया कि संजय 2004 में भारतीय सेना में भर्ती हुए थे और 2005 में उनकी ट्रेनिंग शुरू हुई थी। ड्यूटी को अब करीब 20 साल हो गए थे। परिवार के लोग जवान को रिटायरमेंट लेने को कहते थे, लेकिन वह हमेशा कहते थे अभी उनके 2 साल और बचे हैं, मुझे देश की सेवा करने दो। जागर सिंह ने बताया कि दो दिन पहले लेह-लद्दाख में अत्यधिक ठंड के कारण अचानक तूफान आ गया, जिसमें उनके भाई संजय के सिर में खून जम गया और रक्त संचार रुकने से उनकी शहादत हो गई। संजय का परिवार एक साधारण पृष्ठभूमि से था। उनके घर में पत्नी के अलावा 14 और 11 साल के दो बेटे, उनकी बुजुर्ग मां और बड़ा भाई हैं।

आखिरी बातचीत में कहा था- यहां सब ठीक है

शहीद संजय के चाचा शमशेर सिंह ने बताया कि तीन महीने पहले जब संजय के पिता का देहांत हुआ था, तब वह छुट्टी लेकर घर आए थे। परिवार की संजय से कई दिन पहले भी बातचीत हुई थी। उस आखिरी बातचीत में संजय ने परिवार को आश्वस्त करते हुए कहा था कि यहां सब कुछ ठीक है। गांव के सरपंच के पास सेना के उच्च अधिकारियों का फोन आया था, जिन्होंने ही संजय की शहादत की दुखद खबर दी। संजय सिंह सैनी का बलिदान देश हमेशा याद रखेगा।

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