जेल कर्मचारी से पर्वतारोही: झज्जर के राकेश कादियान ने फतह की यूरोप की सबसे ऊंची चोटी

झज्जर के राकेश कादियान यूरोप की सबसे ऊंची चोटी पर तिरंगा फहराने के बाद जश्न मनाते हुए।
नूंह जिला जेल के एक साधारण कर्मचारी राकेश कादियान ने अपनी असाधारण उपलब्धियों से पूरे देश का नाम रोशन किया है। अपने जुनून और दृढ़ संकल्प के बल पर उन्होंने न केवल यूरोप की सबसे ऊंची चोटी माउंट एलब्रुश को फतह किया है, बल्कि अब तक 8 दुर्गम पर्वतों पर भारतीय तिरंगा भी फहरा चुके हैं।
2018 में पर्वतारोहण की दुनिया में कदम रखा
झज्जर के बेरी गांव के रहने वाले राकेश कादियान ने साल 2018 में पर्वतारोहण की दुनिया में कदम रखा। दार्जिलिंग के एचएमआई संस्थान से बेसिक और एडवांस माउंटेन कोर्स पूरा करने के बाद उन्होंने उसी साल लेह लद्दाख की 6400 मीटर ऊंची माउंट कांग यात्से-1 चोटी पर चढ़ाई की। अपनी सरकारी नौकरी के साथ-साथ उन्होंने अपने जुनून को कभी मरने नहीं दिया। ड्यूटी के बाद वे घंटों मेहनत करते और अपनी फिटनेस पर ध्यान देते रहे। उनकी यह लगन और कड़ी मेहनत ही उनकी सफलता की नींव बनी।
माउंट एवरेस्ट और लंदन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड
राकेश कादियान की उपलब्धियों में एक और महत्वपूर्ण मील का पत्थर है माउंट एवरेस्ट और माउंट ल्होत्से की चढ़ाई, 45 साल की उम्र में सरकारी सेवा में रहते हुए उन्होंने इन दोनों विशाल चोटियों को फतह किया। इस असाधारण उपलब्धि ने उनका नाम लंदन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज कराया, जिससे वे दुनिया के पहले ऐसे सरकारी कर्मचारी बन गए, जिन्होंने इतनी कम उम्र में और सेवा में रहते हुए यह कारनामा कर दिखाया।
राकेश बताते हैं कि उन्होंने अपने सभी पर्वतारोहण अभियान निजी छुट्टियों का उपयोग करके किए हैं, 2003 में वार्डर के पद पर भर्ती हुए राकेश का प्रमोशन अभी तक नहीं हुआ है, लेकिन उनका सेवा रिकॉर्ड बेदाग है। वे हरियाणा जेल विभाग के पहले अंतरराष्ट्रीय पर्वतारोही हैं और उनका साहस और समर्पण अन्य कर्मचारियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
दुनिया के पहले पर्वतारोही बने
हाल ही में राकेश ने यूरोप की सबसे ऊंची चोटी माउंट एलब्रुश (5642 मीटर) और इसकी दूसरी सबसे ऊंची चोटी (5621 मीटर) पर भारतीय तिरंगा फहराकर एक नया इतिहास रचा है। 24 अगस्त को उन्होंने बेस कैंप से चढ़ाई शुरू की और सिर्फ 8 घंटे के भीतर दोनों चोटियों पर सफलता हासिल कर ली। इतने कम समय में दोनों चोटियां फतह करने वाले वे दुनिया के पहले पर्वतारोही हो गए हैं। उस वक्त का तापमान -25 डिग्री सेल्सियस था और हवा की गति 75 किलोमीटर प्रति घंटा थी। ऐसे खतरनाक मौसम में भी बिना किसी गाइड की मदद के उन्होंने यह चढ़ाई पूरी की जो उनके साहस और अनुभव का प्रमाण है।
जुनून और दृढ़ संकल्प की जरूरत
पर्वतारोहण एक बेहद जोखिम भरा खेल है, जहां मौत हमेशा साथ चलती है। राकेश कादियान इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं। वे कहते हैं जब हम किसी चोटी पर जाते हैं तो वापस घर लौटने की कोई गारंटी नहीं होती। अपने इस जुनून को पूरा करने के लिए उन्होंने अपनी जेब से 40 लाख रुपये से अधिक खर्च किए हैं। उनकी कहानी हमें सिखाती है कि सपने देखने और उन्हें पूरा करने के लिए सिर्फ जुनून और दृढ़ संकल्प की जरूरत होती है। राकेश कादियान जैसे लोग यह साबित करते हैं कि अगर आप ठान लें तो कोई भी चोटी आपकी पहुंच से बाहर नहीं है।
