हिसार का अग्रोहा धाम: जहां इतिहास और आध्यात्म के होते हैं दर्शन, तीन देवियां देती हैं आशीर्वाद, जानें कैसे करें यहां की यात्रा

हिसार का भव्य अग्रोहा धाम।
हरियाणा के हिसार जिले में स्थित अग्रोहा गांव सिर्फ एक स्थान नहीं, बल्कि एक जीवंत इतिहास और अटूट आस्था का प्रतीक है। महाभारत काल से संबंध रखने वाले इस प्राचीन स्थल को महाराजा अग्रसेन ने अपनी राजधानी बनाया था। आज यह अपनी कुलदेवी महालक्ष्मी को समर्पित भव्य अग्रोहा धाम के कारण पूरे विश्व में एक विशेष पहचान रखता है। यह धाम सिर्फ एक धार्मिक केंद्र नहीं बल्कि एक ऐसा स्थल है, जहां एक साथ इतिहास, संस्कृति और आध्यात्म के दर्शन होते हैं। यहां की हर ईंट और हर कोने में 5100 वर्ष से भी पुराने गौरवशाली अतीत की कहानियां समाई हुई हैं।
भव्य धाम का अद्भुत वास्तुशिल्प और धार्मिक महत्व
हिसार-सिरसा राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित अग्रोहा धाम अपनी अनूठी वास्तुकला के लिए जाना जाता है। इसे तीन प्रमुख भागों में बांटा गया है, जो हिंदू धर्म के तीन प्रमुख देवियों को समर्पित हैं। धाम के मध्य भाग में धन और समृद्धि की देवी मां लक्ष्मी विराजमान हैं। पश्चिमी हिस्सा विद्या और ज्ञान की देवी मां सरस्वती को समर्पित है, जबकि पूर्वी हिस्से में महाराजा अग्रसेन और उनके वंशजों की प्रतिमाएं स्थापित हैं।
धाम परिसर में एक विशाल और पवित्र सरोवर भी है, जिसे 41 पवित्र नदियों के जल से पावन किया गया है। यह सरोवर यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिए आस्था का एक महत्वपूर्ण केंद्र है। मंदिर के पीछे का हिस्सा रामेश्वर धाम कहलाता है, जहां एक ही स्थान पर बारह ज्योतिर्लिंगों के दर्शन होते हैं, जो भक्तों को रामेश्वरम् की आध्यात्मिक अनुभूति कराते हैं।
आस्था और भक्ति का केंद्र
अग्रोहा धाम में मुख्य मंदिरों के अलावा भी कई अन्य आकर्षण हैं जो इसे तीर्थयात्रियों और पर्यटकों के लिए खास बनाते हैं। यहां हनुमान जी की एक विशाल प्रतिमा स्थापित है, लेकिन एक विशेष मान्यता यह है कि यहां स्थित हनुमान जी की एक छोटी प्रतिमा जमीन से खुद प्रकट हुई थी। इसके अलावा, परिसर में कृष्ण लीला, गजमुक्तेश्वर, जमीन के नीचे बनी मां वैष्णो देवी की गुफा, तिरुपति बालाजी, भैरवनाथ और बाबा अमरनाथ की भी प्रतिमाएं मौजूद हैं, जो यहां आने वाले हर श्रद्धालु को अपनी ओर आकर्षित करती हैं। हर साल शरद पूर्णिमा के अवसर पर यहां एक भव्य मेला लगता है, जिसमें भाग लेने के लिए देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु और पर्यटक पहुंचते हैं।
इतिहास के साक्ष्य और पुरातात्विक खोज
अग्रोहा धाम के पास ही महाराजा अग्रसेन का एक ऐतिहासिक टीला है, जो अपने अंदर हजारों वर्ष पुराना इतिहास समेटे हुए है। पुरातत्व विभाग ने इस टीले का कई बार सर्वे और खुदाई की है। वर्ष 1839, 1903 और 1980 में हुई खुदाई में यहां एक बौद्ध स्तूप और एक प्राचीन हिंदू मंदिर के अवशेष मिले थे। हाल ही में 11 मार्च 2024 को हुए सर्वे में भी पुरातत्वविदों ने माना है कि यहां 5100 वर्ष से भी पुराने इतिहास के प्रमाण मिल सकते हैं।
यहां से मिले पुरातात्विक साक्ष्यों में कई प्राचीन सिक्के शामिल हैं, जैसे कि चार इंडो-ग्रीक सिक्के, एक पंच-मार्क सिक्का और 'अग्रोदका' अंकित 51 अन्य सिक्के। इसके अलावा, यहां से रोमन, कुषाण, यौधेय और गुप्त साम्राज्य से संबंधित चांदी और कांस्य के सिक्के भी पाए गए हैं। पत्थर की मूर्तियों के साथ-साथ लोहे और तांबे के उपकरण और अर्ध-कीमती पत्थरों के मोती भी इस जगह के समृद्ध ऐतिहासिक अतीत की गवाही देते हैं।
महाराजा अग्रसेन की उन्नत राजधानी रही
शास्त्रों के अनुसार महाराजा अग्रसेन का जन्म महाभारत से पहले हुआ था और उन्होंने पांडवों की ओर से युद्ध में भी भाग लिया था। उन्होंने अपने समय में अग्रोहा को एक ऐसी राजधानी बनाया था, जो किसी 'स्मार्ट सिटी' से कम नहीं थी। कहा जाता है कि माता महालक्ष्मी ने उन्हें तीन बार दर्शन दिए और उनके कुल को समृद्ध होने का वरदान दिया। इसी वजह से आज भी अग्रोहा के ज्यादातर लोग संपन्न और साधन-संपन्न हैं। इस स्थान को कई लोग दूसरा 'बैकुंठ धाम' भी कहते हैं।
यात्रा और आवास की सुविधा
अग्रोहा धाम तक पहुंचना बेहद आसान है। यह दिल्ली से करीब 200 किलोमीटर की दूरी पर है और यहां सड़क, रेल, हवाई मार्ग के साथ ही निजी वाहनों से आसानी से पहुंचा जा सकता है। हिसार रेलवे स्टेशन से यह धाम लगभग 25 किलोमीटर दूर है, जहां से स्थानीय परिवहन उपलब्ध है। यात्रियों की सुविधा के लिए धाम परिसर में रहने की भी उत्तम व्यवस्था है। यहां 200 रुपये से लेकर 1000 रुपये तक के किफायती और प्रतिष्ठित आवास उपलब्ध हैं। साथ ही, यहां पर आने वाले सभी तीर्थयात्रियों के लिए दिन-रात भंडारे का भी आयोजन होता है।
