धरोहरों के संरक्षण की पहल: कानोड व सोहना का किला, रेवाड़ी की छत्तरी बने प्रदेश के संरक्षित स्थल

महेंद्रगढ़ में कानोड और सोहना के प्राचीन किले।
हरियाणा सरकार ने प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में मौजूद प्राचीन धरोहरों को सहेजने की कवायद तेज कर दी है। ताकि उन्हें संरक्षण देकर देश व दुनिया के पर्यटन मानचित्र पर स्थापित किया जा सके। पर्यटन विभाग की पहल पर पुरातत्व विभाग द्वारा भेजे गए प्रस्ताव को मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने अपनी सहमति दे दी। जिसके बाद महेंद्रगढ़ के कानोड व सोहना के किलो के साथ प्रदेश के अलग अलग स्थलों को लेकर पुरातत्व विभाग ने अधिसूचना जारी कर दी। जिसके साथ ही प्रदेश में राज्य संरक्षित स्थलों की संख्या अब 66 हो गई है तथा प्रदेश के 20 और स्थलों को इस सूची में लाने की कवायद चल रही है। विरासत एवं पर्यटन मंत्री डॉ. अरविंद शर्मा ने इसकी पुष्टि की।
सौंदर्यकरण व संरक्षण का रास्ता साफ
पर्यटन मंत्री डॉ. अरविंद शर्मा ने बताया कि मुख्यमंत्री ने पुरातत्व विभाग के 6 प्रस्तावों को अपनी मंजूरी दी है। जिसके बाद अब राज्य संरक्षित सूची में शामिल किए गए नए स्थलों के संरक्षण व सौंदर्यकरण का रास्ता साफ हो गया है। उन्होंने बताया कि महेन्द्रगढ जिला में 18वीं शताब्दी में मराठा सेनापति तात्या टोपे द्वारा तैयार कानोड किला (महेन्द्रगढ किला), गुरूग्राम जिला में भरतपुर राजाओं द्वारा तैयार सोहना किला, पलवल जिला में प्राचीन बस्तियों अहरवां, आशा खेडा व कोडला खेडा व रेवाडी रियासत की धरोहर पांच छतरियों के समूह को राज्य संरक्षित स्थल के तौर पर प्रदेश सरकार द्वारा मंजूरी प्रदान की गई है। उन्होंने कहा कि शीघ्र इन धरोहरों के संरक्षण, सौंदर्यीकरण को लेकर विशेष कार्य योजना बनाई जाएगी, ताकि सभी धरोहरों और इतिहास को देश, दुनिया के सामने प्रस्तुत किया जा सके। अब प्रदेश में राज्य संरक्षित स्थलों की संख्या बढकर 66 हो गई है। इसमें वर्ष 2022 से अब तक 26 नई राज्य संरक्षित स्थल को मंजूरी मिली हैं, जबकि 20 धरोहरों को इस सूची में लाने के प्रस्ताव पर काम चल रहा है।
मराठा प्रभाव के विस्तार का प्रमाण
डॉ. अरविंद शर्मा ने बताया कि कानोड किला उत्तर भारत में मराठा प्रभाव के विस्तार का प्रमाण है। वर्ष 1860 में अंग्रेजों के शासन के दौरान किला व आसपास का इलाका पटियाला रियासत में शामिल होने के बाद पटियाला के महाराजा नरेन्द्र सिंह ने अपने पुत्र महेन्द्र सिंह के नाम पर किले का नाम बदलकर महेन्द्रगढ कर दिया था। यह किला राजपूत वास्तुकला, मुगल व मराठा शैलियों की सांस्कृतिक एवं राजनीतिक प्रभावों को सजीवटता प्रदान करता है। हरियाणा के सबसे पुराने किलों में शामिल सोहना किला मध्यकाल के सामरिक महत्व को दर्शाता है। राजपूत व मुगल स्थापत्य शैली के मिश्रण के अवशेष सोहना किला में पाए गए हैं। रेवाडी रियासत में पांच छतरियों के समूह का निर्माझा राव नंदराम के वंशजों द्वारा करवाया गया था। स्वतंत्रता सेनानी राजा राव तुलाराम के दादा राव तेज सिंह द्वारा वर्तमान छतरियों के स्थल पर उद्यान बनवाया गया था।
उन्होंने बताया कि शिल्प कौशल व संरचनात्मक अखंडता को दर्शाती इन छतरियों का स्वरूप इन्हें विशिष्टता प्रदान करता है। पलवल जिला के आशा खेडा स्थित पुरातात्विक स्थल पर प्राचीन काल में पांडवों की संस्कृति से जुडाव के साक्ष्य मिले हैं, जो कुषाण, गुप्त और मध्यकालीन काल के बाद से आधुनिक काल तक अस्तित्व में रहा। अहरवां में प्राचीन धूसर मृदभांड संस्कृति से पूर्व के लोगों के बसने की संभावना हैं। उन्होंने बताया कि कोडला खेडा में प्रारंभिक लौह युग के आवासों के संकेत और 1200-600 ईसा पूर्व के मिट्टी के बर्तन पाए जाते थे, जो बाद में चीनी मिट्टी की परंपराओं के माध्यम से विकसित हुए। इस टीले की उपस्थिति व्यापक ब्रजभूमि में संरचित गांवों व छोटे समुदायों की तरफ इशारा करती है।
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