हरियाणा: फुट रॉट बीमारी की चपेट में भेड़-बकरियां, कीचड़-गीले में तेजी से फैलता है संक्रमण

Foot-Rot
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हिसार : फुट रॉट बीमारी से पीड़ित भेड़।

प्रदेश के कई जिलों में भेड़ व बकरियां इन दिनों फुट रॉट बीमारी की चपेट में आ रही है। लुवास ने एडवाइजरी जारी कर पशुपालकों को अपने पशु गीले व कीचड़ से दूर रखने की सलाह दी है।

हरियाणा के कई जिलों में भेड़ और बकरियों में फुट रॉट (पैर सड़न) नामक संक्रामक बीमारी फैल रही है। हाल ही में सामने आए इन मामलों के साथ ही विशेषज्ञ भी सतर्क हो गए हैं। इस बीमारी में भेड़ व बकरियाों के पैरों में संक्रामक रोग हो जाता है। हाल के मानसून मौसम के कारण बने गीले व कीचड़युक्त वातावरण में फुट रॉट बीमारी के तेजी से फैलने की आशंका बढ़ गई है। यह रोग मुख्यतः डिकेलोबैक्टर नोडोसस एवं फ़्यूज़ोबैक्टीरियम नेक्रोफोरम नामक जीवाणुओं के संक्रमण से होता है, जो पशुओं के खुरों को प्रभावित करता है।यदि समय पर इसका उपचार न किया जाए, तो इससे पशुओं में लंगड़ापन, तेज दर्द और दूध व ऊन उत्पादन में भारी गिरावट हो सकती है। फुट रॉट के प्रमुख लक्षणों में चलने में कठिनाई, खुरों के आसपास सूजन व लालिमा, दुर्गंधयुक्त सड़न, खुर की ऊपरी सतह का अलग होना और कभी-कभी बुखार एवं बेचैनी देखी जाती है। हिसार, जींद व भिवानी में इस रोग के लक्षण देखने गए हैं। हरियाणा के साथ हरियाणा की सीमा पर राजस्थान में भी इसके लक्षण मिले है तथा हनुमानगढ़ व चुरू सबसे अधिक प्रभावित हैं।

विशेषज्ञ सक्रिय, पशुपालकों को सलाह

बरसात का मौसम जाने के बाद भेड़ व बकरियों में फुट रॉट बीमारी के बढ़ते मामलों को देखते हुए यहां के लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय (लुवास) ने पशुपालकों के लिए महत्वपूर्ण सलाह जारी की है।विश्वविद्यालय के पशु जन-स्वास्थ्य एवं महामारी विज्ञान विभाग के अध्यक्ष डॉ. राजेश खुराना ने बताया कि विश्वविद्यालय की विशेषज्ञ टीमें लगातार फील्ड में सक्रिय हैं और प्रभावित पशुओं की जांच एवं उपचार कर रही हैं। लुवास की ओर से पशुपालकों को सलाह दी गई है कि वे पशुओं के रहने के स्थान को साफ-सुथरा और सूखा रखें। नियमित रूप से फुट बाथ कराना अत्यंत आवश्यक है, जिसमें 10 प्रतिशत जिंक सल्फेट, 4 प्रतिशत फॉर्मेलिन या 0.5 प्रतिशत लाल दवा के घोल से खुरों की सफाई की जानी चाहिए। संक्रमित पशुओं को स्वस्थ पशुओं से अलग रखें, खुरों की नियमित सफाई करें और घावों को मक्खियों से सुरक्षित रखें। बीमारी के लक्षण दिखाई देने पर तुरंत निकटतम पशु चिकित्सक से संपर्क करें।

टीमें कर रही पहचान

डॉ. खुराना ने यह भी बताया कि विश्वविद्यालय की टीमें पीपीआर, चिचड़ी जनित रोग और आंतरिक परजीवियों से होने वाले अन्य संक्रामक रोगों की भी पहचान कर रहीं हैं। इसके साथ ही पशुपालकों को समय पर रोकथाम एवं बचाव संबंधी जानकारी प्रदान की जा रही है। फुट रॉट बीमारी से संबंधित लुवास के वैज्ञानिक डॉ. रमेश और डॉ. पल्लवी ने पशुपालकों से अपील की है कि वे इस बीमारी को फैलने से रोकने के लिए स्वच्छता, जैव-सुरक्षा एवं आवश्यक सतर्कता बरतें। अधिक जानकारी एवं सहायता के लिए पशुपालक विश्वविद्यालय में संपर्क कर सकतें हैं अथवा निकटतम पशु चिकित्सालय में जाकर परामर्श ले सकतें हैं।

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