अल-फलाह यूनिवर्सिटी में ED की 'सर्जिकल स्ट्राइक': आतंकी मॉड्यूल और फंडिंग पर शिकंजा, फरीदाबाद समेत 25 ठिकानों पर ताबड़तोड़ छापे

अल-फलाह यूनिवर्सिटी में जाने वाली गाड़ियों की चेकिंग हो रही।
हरियाणा के फरीदाबाद स्थित अल-फलाह यूनिवर्सिटी एक बड़े विवाद और जांच के केंद्र में आ गई है। दिल्ली में हुए हालिया विस्फोट के तार इस शैक्षणिक संस्थान से जुड़े होने के बाद, प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने मंगलवार सुबह यूनिवर्सिटी और उससे संबंधित ट्रस्टियों के 25 ठिकानों पर एक साथ छापेमारी की है। इस कार्रवाई ने यूनिवर्सिटी के वित्तीय और प्रशासनिक संचालन पर कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
सुबह 5 बजे शुरू हुई इस व्यापक जांच में ED की टीम ने यूनिवर्सिटी के एडमिनिस्ट्रेटिव ब्लॉक को तुरंत सील कर दिया है। इस दौरान हरियाणा के कार्यवाहक DGP ओपी सिंह भी स्थिति की संवेदनशीलता को देखते हुए यूनिवर्सिटी परिसर पहुंचे थे और कुछ देर रुकने के बाद वहां से चले गए। परिसर में आने और जाने वाले लोगों के वाहनों की सघन जांच की जा रही है। यह घटना सिर्फ एक शैक्षणिक संस्थान तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक जटिल आतंकी फंडिंग और 'व्हाइट-कॉलर टेरर मॉड्यूल' से जुड़ी हुई प्रतीत होती है, जिसकी परतें अब एक-एक करके खुल रही हैं।
संदेह के घेरे में अल-फलाह ट्रस्ट की संदिग्ध फंडिंग
ED की यह कार्रवाई मुख्य रूप से अल-फलाह ट्रस्ट और उससे जुड़े संगठनों की वित्तीय अनियमितताओं पर केंद्रित है। शुरुआती जांच में ट्रस्ट और उससे जुड़ी नौ संदिग्ध शेल कंपनियों में भारी गड़बड़ियां सामने आई हैं। इन सभी कंपनियों के पंजीकरण पते (Registration Addresses) समान थे।
जांच में पाया गया कि इन कंपनियों के बताए गए व्यावसायिक पते पर कोई वास्तविक दफ्तर या कामकाज नहीं मिला। कई अलग-अलग कंपनियों के लिए एक ही मोबाइल नंबर और ईमेल आईडी का उपयोग किया जा रहा था। बड़ी संख्या में ऑपरेशन चलाने का दावा करने के बावजूद, इन कंपनियों में कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) या राज्य कर्मचारी बीमा निगम (ESIC) का कोई रिकॉर्ड नहीं पाया गया। इसके अलावा, कंपनियों के डायरेक्टर्स और साइनट्रीज कई जगह एक ही व्यक्ति थे, और उनके ग्राहक को जानो (KYC) दस्तावेजों में बड़ी खामियां थीं। वेतन का भुगतान बैंकिंग चैनलों से बहुत कम किया गया था, और मानव संसाधन (HR) रिकॉर्ड भी नदारद थे।
इन सभी कंपनियों की पंजीकरण तारीखें, संपर्क नंबर और पता एक जैसा पाया गया। इन गंभीर विसंगतियों के चलते जांच एजेंसी को संदेह है कि इन शेल कंपनियों का उपयोग सिर्फ वित्तीय हेराफेरी या संदिग्ध फंडिंग के लिए किया जा रहा था। इसके अतिरिक्त, यूनिवर्सिटी के यूजीसी (UGC) और नैक (NAAC) मान्यता से जुड़े दावों में भी शुरुआती तौर पर गड़बड़ियां मिली हैं, जिसकी जांच संबंधित अधिकारियों के साथ मिलकर की जा रही है।
आत्मघाती हमलावर का चौंकाने वाला वीडियो आया सामने
इस बीच, दिल्ली ब्लास्ट से जुड़े आत्मघाती हमलावर डॉ. उमर का विस्फोट से पहले का एक चौंकाने वाला वीडियो सामने आया है। इस वीडियो में डॉ. उमर आत्मघाती हमलों की प्रकृति पर बात करते हुए दिखाई दे रहे हैं।
वीडियो में डॉ. उमर कहता है कि लोग आत्मघाती हमलों को ठीक से नहीं समझते। ये हमले लोकतंत्र के खिलाफ हैं और किसी भी अच्छे समाज में इन्हें सही नहीं ठहराया जा सकता। वि आगे कहता है कि आत्मघाती हमलों की सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि हमलावर को लगता है कि उसकी मौत तय है। इस सोच के कारण वह बहुत खतरनाक हो जाता है और उसे लगता है कि मौत ही उसका आखिरी ठिकाना है। डॉ. उमर के अनुसार ऐसा सोचना गलत है और यह जीवन, समाज और कानून के खिलाफ है।
यूनिवर्सिटी से मिली डायरी डिकोड
इस वीडियो के साथ ही नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (NIA) ने यूनिवर्सिटी से मिली डॉक्टरों की डायरी में लिखे सांकेतिक संदेशों को डिकोड कर लिया है। डॉ. उमर की 150 पन्नों की डायरी में ज्यादातर मैसेज नंबरों में लिखे थे, जिन्हें समझने के लिए फोरेंसिक लैब में क्रिप्टोग्राफिक एक्सपर्ट्स ने जांच की। दिल्ली पुलिस के एक अफसर के मुताबिक इस 'व्हाइट-कॉलर टेरर मॉड्यूल' की शुरुआत लगभग दो साल पहले हुई थी। डायरी में मिले 25 संदिग्धों के नामों में से 18 को हिरासत में लिया गया था, जिनमें से 8 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया है। डायरी में दिसंबर 2023 से पहले की कोई जानकारी नहीं है।
जांच का दायरा कैंपस से बाहर फैला, रिकॉर्ड जब्त
जांच एजेंसियां अब यूनिवर्सिटी कैंपस के बाहर भी सक्रिय हो गई हैं। NIA ने यूनिवर्सिटी प्रशासन से वर्ष 2019 से लेकर अब तक के सभी रिकॉर्ड, जिनमें भर्ती, हाजिरी, सैलरी और पहचान पत्र शामिल हैं, तत्काल मंगवा लिए हैं। इसमें सबसे महत्वपूर्ण कश्मीरी डॉक्टरों के नौकरी पर आने से जुड़े कागजात हैं।
शुरुआत में जांच अधिकारियों ने अल-फलाह यूनिवर्सिटी कैंपस के हॉस्टल और रिहायशी इलाके की ही तलाशी ली थी, लेकिन अब तलाशी का दायरा बढ़ाया गया है। अब दूसरे कोर्स में पढ़ने वाले स्टूडेंट्स और पढ़ाने वाले टीचर्स के प्राइवेट घरों में भी तलाशी शुरू कर दी गई है। एक छात्र के अनुसार, रात के वक्त पुलिस और अधिकारी आसपास के गांवों में किराए पर रहने वाले स्टूडेंट और फैकल्टी समेत तमाम स्टाफ से आधार कार्ड और अन्य डॉक्यूमेंट्स चेक कर रहे हैं।
उत्तर प्रदेश ATS भी कर रही जांच
जांच में यह भी पता चला है कि एक अन्य संदिग्ध डॉ. शाहीन सईद का पहले भी पासपोर्ट बना हुआ था और वह कई देशों में घूम चुकी है। अब वह अल-फलाह यूनिवर्सिटी के पास बनी एक मस्जिद के पते पर नकली तरीके से पासपोर्ट बनवाने की कोशिश कर रही थी। उत्तर प्रदेश एंटी टेररिस्ट स्क्वॉड (ATS) और केंद्रीय एजेंसियां इस मामले की जांच कर रही हैं और अब तक 24 से ज्यादा लोगों से पूछताछ हो चुकी है। इन सबके बीच, यूनिवर्सिटी की वेबसाइट तीन दिन बाद फिर से शुरू हो गई है, लेकिन यहां से नैक रैंकिंग समेत कई महत्वपूर्ण जानकारियां हटा दी गई हैं।
यह मामला भारत में 'व्हाइट-कॉलर' चरमपंथ के बढ़ते खतरे और शैक्षणिक संस्थानों के दुरुपयोग पर एक गंभीर चिंता पैदा करता है। जांच एजेंसियां इस पूरे नेटवर्क की जड़ तक पहुंचने की कोशिश कर रही हैं और आने वाले दिनों में और भी बड़े खुलासे की संभावना है।
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