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दिल्ली नगर निगम के राजन बाबू टीबी अस्पताल में मरीजों के लिए दवाइयों की पिछले करीब छह माह से किल्लत है। इसके अलावा अस्पताल में एकमात्र अल्ट्रासाउंड मशीन भी सालों से खराब है।

Rajan Babu TB Hospital: दिल्ली नगर निगम के जीटीबी नगर, किंग्जवे कैंप स्थित राजन बाबू टीबी अस्पताल और राजन बाबू इंस्टीट्यूट ऑफ पल्मोनरी मेडिसिन एंड ट्यूबरकुलोसिस में टीबी मरीजों के लिए दवाइयों की पिछले करीब छह माह से किल्लत है। इसके साथ ही यहां अल्ट्रासाउंड मशीन खराब होने से यहां आने वाले जरूरतमंद मरीजों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। इसका खुलासा सामाजिक न्यायविद अशोक अग्रवाल ने किया है और इसे लेकर दिल्ली के उपराज्यपाल, मुख्य सचिव, दिल्ली नगर निगम आयुक्त और राजन बाबू टीबी अस्पताल प्रशासन को पत्र लिखा है।

इसके बाद हरकत में आए दिल्ली नगर निगम के प्राथमिक स्वास्थ्य विभाग प्रशासन ने मंगलवार को निगम मुख्यालय सिविक सेंटर में अपने सभी विभाग प्रमुखों को तलब किया है। बता दें कि अशोक अग्रवाल ने पत्र में लिखा है कि मैंने व्यक्तिगत रूप से इस टीबी अस्पताल का दौरा किया। इस दौरान मरीजों और डॉक्टरों से बातचीत की और मुझे पता चला कि तपेदिक (टीबी) रोग के इलाज के लिए आवश्यक दवाएं अस्पताल में उपलब्ध नहीं हैं और जब भी आपूर्ति आती है, तो आपूर्ति में कमी होती है। ऐसा पिछले 6 महीने से ज्यादा समय से चल रहा है। बताया गया है कि आवश्यक दवाएं उपलब्ध नहीं होने के कारण मरीजों का स्वास्थ्य दिन-ब-दिन बिगड़ता जा रहा है।

प्रतिदिन 600-700 ओपीडी मरीज हो रहे हैं प्रभावित

यह भी बताया गया कि इस कमी और अनुपलब्धता से प्रतिदिन 600-700 ओपीडी मरीज प्रभावित हो रहे हैं। आगे कहा गया है कि मेरे दौरे पर मुझे यह भी पता चला कि एमडीआरटीबी आईपीडी रोगियों को बाजार से दवाएं खरीदने के लिए मजबूर किया जाता है। यह एक बहुत ही गंभीर मामला है और दिल्ली उच्च न्यायालय की अवमानना के समान है क्योंकि दशकों पहले दिल्ली उच्च न्यायालय ने एमसीडी को अस्पताल में टीबी रोगियों को दवाओं की निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था। अतः आपसे अनुरोध है कि इस समस्या पर ध्यान दें और क्षय रोग से पीड़ित रोगियों को तत्काल दवाएँ उपलब्ध कराने के लिए आवश्यक दिशा-निर्देश जारी करें।

पिछले करीब ढाई वर्षों से कार्य नहीं कर रही है एकमात्र अल्ट्रासाउंड मशीन

वहीं, सोमवार को लिखे गए एक पत्र में कहा है कि राजन बाबू इंस्टीट्यूट ऑफ पल्मोनरी मेडिसिन एंड ट्यूबरकुलोसिस में यहां एकमात्र अल्ट्रासाउंड मशीन पिछले करीब ढाई वर्षों से अधिक समय से काम नहीं कर रही है। अस्पताल नई अल्ट्रासाउंड मशीनें खरीदना चाहता है, लेकिन संबंधित पंजीकरण का प्रमाण पत्र जारी न होने के कारण, अस्पताल गैर-कार्यात्मक अल्ट्रासाउंड मशीनों को नए से प्रतिस्थापित नहीं कर सकता है। यह चौंकाने वाली बात है कि इतना बड़ा अस्पताल बिना अल्ट्रासाउंड मशीन के है।

निजी केंद्रों से अल्ट्रासाउंड कराने को होना पड़ रहा मजबूर

इसी कारण राजन बाबू इंस्टीट्यूट ऑफ पल्मोनरी मेडिसिन एंड ट्यूबरकुलोसिस में पिछले ढाई साल से अधिक समय से अल्ट्रासाउंड मशीन खराब रहने के कारण गरीब मरीजों को निजी केंद्रों से अल्ट्रासाउंड कराने को मजबूर होना पड़ रहा है। यह प्रस्तुत किया गया है कि बाहर से किए गए अल्ट्रासाउंड के कारण, अस्पताल गरीब मरीजों पर वित्तीय बोझ डालता है और कभी-कभी धन की कमी के कारण गरीब मरीज निजी केंद्रों का रुख भी नहीं करते हैं। अस्पताल का यह इनकार स्वास्थ्य के अधिकार का उल्लंघन है।

प्रतिमाह बाहर से करीब 45 लाख रुपये के होते हैं अल्ट्रासाउंड

बताया गया कि वर्तमान में प्रतिदिन औसतन 25-30 टीबी रोगियों को डॉक्टर द्वारा अल्ट्रासाउंड की सलाह दी जाती है और एक अल्ट्रासाउंड की न्यूनतम लागत 5000 रुपये से कम नहीं है। 30 अल्ट्रासाउंड का मतलब है प्रति दिन डेढ़ लाख रुपये और प्रति माह 45 लाख रुपये। ये गरीब मरीज हैं जो टीबी जैसी बीमारी से भी पीड़ित हैं और अल्ट्रासाउंड के लिए कोई पैसा नहीं दे सकते। दूसरे शब्दों में, गरीब टीबी रोगियों को इलाज से वंचित कर दिया जाता है और यह मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।

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