Delhi History: पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन... अंग्रेज भी इसका इतिहास कभी भुला नहीं पाएंगे

Old Delhi Railway Station History
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पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन का इतिहास भूलाया नहीं जा सकता। 

दिल्ली की सीएम रेखा गुप्ता ने पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन का नाम महाराजा अग्रसेन रेलवे स्टेशन करने का आग्रह किया है। आजादी की लड़ाई में इस स्टेशन का कितना अहम योगदान था, चलिये बताते हैं...

दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने आज मंगलवार को रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव को पत्र लिखकर पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर महाराजा अग्रसेन रेलवे स्टेशन करने का आग्रह किया है। उनका कहना है कि महाराज अग्रसेन एक प्रतिष्ठित ऐतिहासिक व्यक्तित्व थे, जिनकी विरासत का भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास पर गहरा प्रभाव पड़ा है, विशेषकर दिल्ली पर। ऐसे में इस स्टेशन का नाम महाराजा अग्रसेन रेलवे स्टेशन किया जाना चाहिए। उधर, इस पत्र के सामने आने के बाद से सियासत होना भी तय है। बहरहाल, हम आपको आज पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के उस इतिहास से रूबरू कराने जा रहे हैं, जिसके लिए भारतीयों ने अंग्रेजों से लंबी लड़ाई लड़ी थी।

1854 में बना था दिल्ली रेलमार्ग का प्लान
ईस्ट इंडिया कंपनी का सामान कोलकाता बंदरगाह तक पहुंचता था। अंग्रेजों को ऐसा रेलमार्ग चाहिए था, जिससे सामान अलग-अलग शहरों से होता हुआ लाहौर तक पहुंच सके। इसकी जिम्मेदारी ईस्ट इंडिया रेलवे कंपनी के जनक रोनाल्ड मैक डोनाल्ड स्टीफंस ने संभाली थी। उन्होंने 1854 में पहली बार कोलकाता-दिल्ली-लाहौर को जोड़ने का प्रस्ताव ब्रिटिश अधिकारियों को सौंपा था। लेकिन, ब्रिटिश शासन ने इस रेलमार्ग को मंजूरी नहीं दी। इसकी बजाए कोलकाता-मेरठ-लाहौर रेलमार्ग का प्लान बनाकर भेज दिया गया। जब दिल्ली के व्यापारियों को यह बात पता चली तो उन्होंने प्रदर्शन करने शुरू कर दिए। करीब 9 साल तक लगातार प्रदर्शन होते रहे, लेकिन अंग्रेजों पर कोई असर नहीं हुआ।

यह थी अंग्रेजों के डर की पीछे की वजह
दरअसल, अंग्रेजों को डर था कि अगर कोलकाता और लाहौर को दिल्ली से जोड़ दिया तो क्रांतिकारियों का राजधानी तक पहुंचना आसान हो जाएगा। चूंकि अंग्रेजों को पहले से आशंका थी कि क्रांति हो सकती है, लिहाजा उन्होंने दिल्ली को इस रेलमार्ग के प्लान से हटा दिया था। 1857 में जब क्रांति हुई तो अंग्रेजों ने खुद को सही साबित पाया। ऐसे में कोलकाता-मेरठ-लाहौर रेलमार्ग पर ही फोकस रखा। लेकिन, दिल्ली के व्यापारी लगातार प्रदर्शन करते रहे कि अगर दिल्ली को रेलमार्ग से नहीं जोड़ा तो न केवल उन्हें बल्कि ईस्ट इंडिया कंपनी को भी नुकसान होना तय है।

9 साल बाद मिली मंजूरी
इस विवाद को सुलझाने के लिए 1863 में एक कमेटी गठित की गई। ईस्ट इंडिया कंपनी के बोर्ड ऑफ कंट्रोल के प्रेजिडेंट चार्ल्स वुड ने दोनों पक्षों की दलीलों को सुना। उन्होंने नारायण दास नागरवाला समेत अन्य व्यापारियों की चिंताओं को समझा और कोलकाता-दिल्ली रेलमार्ग को मंजूरी दे दी। इसके बाद 1864 से ही दिल्ली रेलवे स्टेशन का निर्माण शुरू हो गया।

अंग्रेज लगातार रचते रहे साजिश
1857 की क्रांति से अंग्रेज भड़के हुए थे। जब दिल्ली रेलवे स्टेशन को मंजूरी मिली तो भी एक साजिश रच दी गई। प्रस्ताव रखा गया कि दिल्ली रेलवे स्टेशन लाल किले के पास होना चाहिए। इसके लिए लाल किले के एक हिस्से को भी तोड़ा गया। जब लोगों ने इसका विरोध किया तो अंग्रेजों ने उन पर अत्याचार किया और वहां से पलायन करने को विवश कर दिया।

पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन कब शुरू हुआ
पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर पहली ट्रेन 1 जनवरी 1867 को पहुंची थी। उस वक्त पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन एक छोटे से भवन से संचालित हो रहा था। 1893 में इसके लिए नए भवन का काम शुरू हुआ। 1903 में वर्तमान स्वरुप में पुननिर्मित किया गया। दिल्ली में आज कुल 46 रेलवे स्टेशन है, लेकिन पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन अपने इतिहास की वजह से हमेशा याद किया जाता रहेगा।

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