Syringe History: इंजेक्शन के डर से कांपते लोग...जानवरों के मूत्राशय से बनी पहली सिरिंज, जानें इतिहास

Syringe History
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सिरिंज का इतिहास।
History Of Syringe: आज के समय में जिस सिरिंज का इस्तेमाल करके इंजेक्शन लगाया जाता है। वह एक समय में जानवरों के हड्डियों से बनता था। समय के साथ सिरिंज में बदलाव किए गए। पढ़ें सिरिंज का पूरा इतिहास...

History Of Syringe: हम सभी ने अपने जीवन में कभी न कभी अस्पताल में इंजेक्शन जरूर लगवाया है, कभी बुखार की वजह से, तो कभी वैक्सीनेशन के लिए। हालांकि जिसे लोग इंजेक्शन कहते हैं, वह एक मेडिकल प्रोसीजर है, जिसमें मरीज के शरीर में दवा को इंजेक्ट किया जाता है। वहीं, जिस सुई का इस्तेमाल करके दवा डाली जाती है, उसे सिरिंज कहा जाता है, जो कि एक मेडिकल इंस्ट्रूमेंट है।

आज के समय में देश के अंदर अलग-अलग तरह के कई अलग-अलग साइज में सिरिंज उपलब्ध है, लेकिन जब इसका आविष्कार नहीं हुआ था। तब कैसे इंजेक्शन लगाया जाता था? आखिर कैसे हुई थी सिरिंज की खोज? क्या है इसके पीछे का इतिहास? नीचे पढ़ें सिरिंज का इतिहास...

सिरिंज होता क्या है?

सिरिंज का इतिहास जानने से पहले समझ लेते हैं कि सिरिंज होता है और कैसे काम करता है। अस्पताल में डॉक्टरों द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला सिरिंज एक मेडिकल इंस्ट्रूमेंट है, जिससे लिक्विड को व्यक्ति के शरीर में इंजेक्ट किया जाता है। इसके अलावा शरीर से खून निकालने के लिए भी इसका इस्तेमाल होता है। सिरिंज एक बेलनाकार ट्यूब की तरह दिखाई देता है, जिसमें एक प्लंजर लगा होता है।

यह प्लंजर दवा को खींचने और छोड़ने में मदद करता है। सिरिंज के सबसे निचले हिस्से में नीडल यानी सुई लगाई जाती है, जिससे निकाला और बदला जा सकता है। सिरिंज में बैरल लगा होता है, जो पारदर्शी होता है। इससे उसमें निकाली गई दवाई का देखा जा सकता है। साथ ही उसके ऊपर दवाओं की मात्रा लिखी होती है।

मौजूदा समय में प्लास्टिक की सिरिंज का इस्तेमाल किया जाता है, जबकि इससे पहले कांच की सिरिंज का इस्तेमाल किया जाता था। हालांकि प्लास्टिक ज्यादा सस्ता और डिस्पोजेबल होता है, जिसकी वजह से प्लास्टिक सिरिंज का ज्यादातर इस्तेमाल किया जाता है।

क्या है सिरिंज का इतिहास?

सिरिंज का इतिहास बहुत ही ज्यादा पुराना है। वर्तमान समय में इस्तेमाल किए जाने वाले सिरिंज का आविष्कार साल 1853 में हुआ था। हालांकि इससे पहले भी अलग-अलग रूपों में सिरिंज का इस्तेमाल किया जाता था। माना जाता है कि चिकित्सा के जनक ग्रीक फिजिशियन 'हिप्पोक्रेट्स' ने सबसे पहला सिरिंज का इस्तेमाल किया था। हालांकि उनके द्वारा इस्तेमाल की गई सिरिंज तकनीकी रूप से ठीक नहीं थी।

इंडियन जर्नल ऑफ फिजियोलॉजी एंड फार्माकोलॉजी के अनुसार, एनीमा के लिए हिप्पोक्रेट्स जानवरों के मूत्राशय, हाथीदांत या फिर बांस के से बनी सिरिंज का इस्तेमाल किया करते थे। नेशनल लाइब्रेरी ऑफ साइंस के अनुसार, 11वीं सदी में मिस्र के अम्मार इब्न अली अल-मौसिली एक हाइपोडर्मिक सिरिंज जैसे उपकरण का इस्तेमाल करते थे। वह एक नेत्र रोग विशेषज्ञ थे, जो मोतियाबिंद हटाने के लिए इस उपकरण का इस्तेमाल करते थे।

17वीं सदी से शुरू हुआ बदलाव

17वीं सदी के मध्य में सिरिंज के इस्तेमाल में बदलाव शुरू हुआ। 1656 में ब्रिटेन के आर्किटेक्ट और फिजिसिस्ट क्रिस्टोफर रेन ने जानवरों की नसों में ड्रग्स डालने के लिए सिरिंज जैसी तकनीक का इस्तेमाल किया था। उन्होंने जानवरों के मूत्राशय (पेशाब की थैली) और हड्डी के ट्यूब से सिरिंज का उपयोग किया था।


इसके बाद 1796 में ब्रिटिश फिजिशियन एडवर्ड जेनर ने दुनिया का पहला वैक्सीन बनाया। उन्होंने 8 साल के लड़के के शरीर में कट लगाकर वैक्सीन इंजेक्ट किया। हालांकि यह तकनीकी रूप से इंजेक्शन नहीं था। फिर 1844 में आयरिश सर्जन फ्रांसिस रेंड ने दुनिया की पहली खोखली सुई (निडिल) की खोज की। आयरिश ने एक कैनुला और ट्रोकार का इस्तेमाल करके शरीर में दवा डालना शुरू किया।

1853 में बना आधुनिक सिरिंज

निडिल की खोज होने के बाद वैज्ञानिकों और डॉक्टरों ने अलग-अलग प्रयोग किए। फिर साल 1853 में स्कॉट के फिजिशियन अलेक्जेंडर वुड ने प्लंजर जोड़कर पहली कांच की सिरिंज बनाई। जब वुड ने कांच की सिरिंज बनाई, उसी समय फ्रांस के सर्जन चार्ल्स प्रवाज ने भी एक उपकरण बनाया, जो चांदी से बना हुआ था। उसमें एक प्लंडर लगा हुआ था और एक स्क्रू की मदद से शरीर के अंदर दवा को इंजेक्ट किया जाता था।

वुड ने अपनी सिरिंज का इस्तेमाल एक मरीज को दवा देने के लिए किया था, जबकि चार्ल्स ने एक भेड़ पर अपनी सिरिंज की टेस्टिंग की थी। इसके कारण वुड की सिरिंज को ज्यादा बेहतर माना गया। बता दें कि अभी के समय में जो सिरिंज इस्तेमाल की जाती है, वो लगभग वुड द्वारा बनाई गई सिरिंज जैसी ही है। उन्होंने कांच से सिरिंज बनाई थी, लेकिन अब प्लास्टिक का इस्तेमाल किया जाता है।

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