Supreme Court: लंबे समय तक कैद, फिर निर्दोष साबित, SC ने मुआवजे के लिए नया कानून बनाने की दी राय

सुप्रीम कोर्ट ने नया कानून बनाने की अपील की।
Supreme Court: कई आपराधिक मामलों में आपने सुना होगा कि किसी व्यक्ति को लंबे समय तक सजा काटनी पड़ी हो, लेकिन बाद में उसे निर्दोष बताकर रिहा कर दिया गया हो। ऐसा ही एक मामला केरल से सामने आया है, जहां एक शख्स को ट्रायल कोर्ट ने एक प्रेमी जोड़े की हत्या और बलात्कार के मामले में दोषी ठहराया गया था। बाद में हाई कोर्ट ने सजा को बरकरार रखा था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को पलट दिया है।
14 साल बाद अब सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी शख्स को बेकसूर बताते हुए बरी कर दिया है। इस मामले पर फैसला सुनाते हुए देश की सर्वोच्च अदालत ने एक ऐसे कानून की जरूरत बताई, जो कैद में लंबा समय काट चुके बेगुनाहों को मुआवजा देने का मार्ग प्रशस्त करे। हालांकि कोर्ट ने ये भी कहा कि इस संदर्भ में फैसला लेना संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है। संसद को इस पर कानून बनाने पर विचार करना चाहिए।
'इस तरह की सजा अभियुक्त के लिए अन्याय'
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजय करोल, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने इस मामले में फैसला सुनाते हुए कहा, 'जिस मामले की कोई बुनियाद नहीं थी, उस मामले में किसी इंसान को सालों तक जेल में रखा गया। ये एक बड़ा अन्याय है। कोर्ट ने अमेरिका समेत कई देशों की जिक्र करते हुए कहा कि दूसरे देशों में अगर किसी शख्स को लंबे समय तक जेल में रखा जाता है और बाद में बरी कर दिया जाता है, तो सरकार की तरफ से उसे मुआवजा मिलता है, लेकिन हमारे देश में ऐसा कोई कानून अब तक नहीं है।'
सुप्रीम कोर्ट ने संसद से की ये अपील
इस मामले को देखते हुए कोर्ट ने ऐसे कानून की जरूरत बताई, जिसमें बेगुनाहों को मुआवजा दिया जा सके। सुप्रीम कोर्ट ने संसद से अपील की है कि वे इस तरह के मामलों के बारे में सोचें और इसके लिए कानून बनाएं, जिससे बेगुनाहों को उनकी क्षतिपूर्ति के लिए कुछ हद तक राहत दी जा सके। कोर्ट ने कहा कि इस तरह के फैसले लेना संसद का काम है और संसद को इस पर विचार करना चाहिए।
'पुलिस ने गैर-जिम्मेदाराना तरीके से जांच की'
SC ने साथ ही कहा कि इस मामले में पुलिस ने बेहद गैर-जिम्मेदाराना तरीके से जांच की। कोर्ट ने यहां तक कह दिया कि जेल में लंबा समय बिताने वाले ऐसे लोगों को मुआवजा मिलना चाहिए, जो सालों की सुनवाई के बाद बेगुनाह साबित हों। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने देशभर की पुलिस ट्रेनिंग में बदलाव और डीएनए जांच के लिए नई गाइडलाइन भी दी है।
क्या है पूरा मामला?
बता दें कि हम जिस शख्स की बात कर रहे हैं, उसका नाम कत्तावेल्लई उर्फ देवाकर है। साल 2011 में एक युवक और युवती अपने घर से भाग गए थे और कुछ दिनों बाद उनकी लाश मिली थी। पुलिस ने जल्दबाजी में जांच कर देवाकर को पकड़ लिया। बिना पुख्ता सबूतों के देवाकर पर आरोप लगाया गया कि उसने लड़की का बलात्कार कर दोनों की हत्या कर दी। इस मामले में केरल की ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट ने पुलिस की जांच पर भरोसा करते हुए देवाकर को मौत की सजा सुना दी। हालांकि देवाकर ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, तब असलियत सामने आई।
सबूतों में पाई गईं खामियां
सुप्रीम कोर्ट ने सबूतों की गंभीरता से जांच की। इसमें कई बड़ी खामियां पाई गईं। युवा जोड़े की हत्या में जिस हथियार का जिक्र किया गया, उस पर खून के कोई निशान नहीं मिले। न ही डॉक्टरों की तरफ से इस बात पर मुहर लगी कि जोड़े को लगी चोटें इसी हथियार से दी गई थीं। सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात ये थी कि कपड़ों पर खून, सीमेन तक नहीं मिला। साफ शब्दों में कहा जाए, तो सबूतों की हालत ऐसी थी कि इन पर भरोसा करते हुए किसी को फांसी की सजा देना पूरी तरह से गलत था।
डीएनए जांच के लिए बनाई गाइडलाइन
इसके अलावा कोर्ट ने डीएनए जांच को लेकर पुलिस की लापरवाही देखते हुए पूरे देश की पुलिस के लिए नए नियम बनाए हैं। अब पुलिस को डीएनए सैंपल इकट्ठा करने से लेकर उसे संभालने और जांच के लिए भेजने तक के लिए सावधानी बरतने के निर्देश दिए गए हैं। कोर्ट ने कहा कि डीएनए सैंपल को लेकर पुलिस ट्रेनिंग में बदलाव लाना भी जरूरी है।
पुलिस ट्रेनिंग में डीएनए सैंपल संभालने से लेकर आधुनिक जांच के तरीकों की पूरी जानकारी देना जरूरी है, ताकि भविष्य में कोई ऐसा बेगुनाह बिना गलती के सजा न काटे। डीएनए सैंपल के संदर्भ में दिए गए प्रमुख निर्देशों में ये भी साफ किया गया है कि सैंपल का रिकॉर्ड रखने वाले दस्तावेजों में मेडिकल प्रोफेशनल, जांच अधिकारी और स्वतंत्र गवाहों के हस्ताक्षर पदनाम समेत दर्ज होने चाहिए।
